द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपनिवेशवाद का अंत - एशिया और अफ्रीका | UPSC Notes

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपनिवेशवाद का अंत – एशिया और अफ्रीका पर विशेष ध्यान

उपनिवेशवाद क्या है?

उपनिवेशवाद (Colonialism) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कोई शक्तिशाली देश दूसरे कमजोर देश या क्षेत्र पर अधिकार जमाकर उसे अपने आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक नियंत्रण में ले लेता है। इस प्रक्रिया में मूल देश की संस्कृति, संसाधन और शासन प्रणाली पर बाहरी शक्तियाँ प्रभाव डालती हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपनिवेशवाद का अंत - एशिया और अफ्रीका | UPSC Notes

उपनिवेशवाद ने एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। यूरोपीय शक्तियाँ जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल, नीदरलैंड्स और बेल्जियम ने 18वीं से लेकर 20वीं सदी तक इन क्षेत्रों में अपना वर्चस्व बनाया।

द्वितीय विश्व युद्ध और उपनिवेशवाद का पतन

युद्ध के बाद वैश्विक स्थिति में बदलाव

1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध ने दुनिया को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से झकझोर दिया। यूरोपीय ताकतें जैसे ब्रिटेन और फ्रांस, जो पहले दुनियाभर में उपनिवेश बनाते जा रहे थे, अब खुद युद्ध से कमजोर हो चुकी थीं।

दूसरी ओर, एशिया और अफ्रीका के देशों में राष्ट्रवाद की भावना तेज हो गई थी। लोगों को यह समझ में आ गया कि अगर यूरोपीय देश खुद अपनी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं, तो वे हमारे शासक कैसे हो सकते हैं?

एशिया में उपनिवेशवाद का अंत

1. भारत (1947)
भारत उपनिवेशवाद के अंत का सबसे बड़ा उदाहरण है। 200 सालों के ब्रिटिश शासन के बाद, गांधीजी, नेहरू, पटेल जैसे नेताओं के नेतृत्व में देश को आज़ादी मिली। भारत की स्वतंत्रता ने दूसरे एशियाई देशों को भी प्रेरित किया।

2. इंडोनेशिया (1949)
यह देश लंबे समय तक डच उपनिवेश रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने कब्ज़ा किया और फिर 1945 में इंडोनेशिया ने स्वतंत्रता की घोषणा की। आखिरकार 1949 में नीदरलैंड्स ने इसे मान्यता दी।

3. वियतनाम (1954)
फ्रांस के अधीन रहा यह देश लंबे समय तक संघर्ष करता रहा। हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनाम ने स्वतंत्रता प्राप्त की और बाद में यह देश अमेरिका के साथ भी युद्ध में गया।

4. अन्य देश
म्यांमार और श्रीलंका (1948) – ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुए।
मलेशिया (1957) – ब्रिटेन से शांति पूर्वक स्वतंत्रता मिली।

अफ्रीका में उपनिवेशवाद का अंत

1. घाना (1957)
घाना पहला उप-सहारा अफ्रीकी देश था जिसे स्वतंत्रता मिली। क्वामे एनक्रूमा के नेतृत्व में यह आंदोलन सफल रहा।

2. अल्जीरिया (1962)
फ्रांस के खिलाफ लड़े गए 8 साल लंबे युद्ध के बाद अल्जीरिया को स्वतंत्रता मिली। यह संघर्ष बहुत हिंसक और जटिल था।

3. कांगो और नाइजीरिया (1960)
कांगो को बेल्जियम से 1960 में स्वतंत्रता मिली लेकिन इसके बाद देश में आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया।
नाइजीरिया ने भी ब्रिटेन से 1960 में ही स्वतंत्रता प्राप्त की।

डिकोलोनाइजेशन के मुख्य कारण

आर्थिक कमजोरी
युद्ध के बाद यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। वे अब अपने उपनिवेशों को बनाए रखने में सक्षम नहीं थे।

राष्ट्रवाद का उदय
भारत से लेकर अफ्रीका तक हर जगह स्वतंत्रता आंदोलन ज़ोर पकड़ चुका था। लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना जाग चुकी थी।

संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय दबाव
1945 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र (UN) ने उपनिवेशवाद का खुलकर विरोध किया और हर देश को आत्मनिर्भर बनने का अधिकार दिया।

नई महाशक्तियाँ – USA और USSR
अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही उपनिवेशवाद के खिलाफ थे और वे स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन करते थे। खासकर शीत युद्ध के दौर में यह प्रतिस्पर्धा और बढ़ गई थी।

UPSC के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
  • यह टॉपिक GS Paper 1 (World History) का हिस्सा है।
  • भारत की स्वतंत्रता का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव समझना ज़रूरी है।
  • Post-colonial developments को समझना भी UPSC Mains में काम आता है।
  • यह टॉपिक निबंध और इंटरव्यू में भी पूछा जा सकता है।

निष्कर्ष

द्वितीय विश्व युद्ध ने केवल सीमाएं नहीं बदलीं, बल्कि पूरी दुनिया में उपनिवेशवाद के खिलाफ क्रांति ला दी। एशिया और अफ्रीका के देशों ने अपने हक के लिए आवाज़ उठाई और आज़ादी प्राप्त की। यह न सिर्फ राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण युग था।

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आज जब हम स्वतंत्र भारत या घाना, इंडोनेशिया जैसे देशों को देखते हैं, तो हमें याद आता है कि आज़ादी की कीमत संघर्ष से चुकानी पड़ी थी। यह इतिहास UPSC की तैयारी के लिए नहीं, बल्कि हमारी सोच को मजबूत बनाने के लिए भी जरूरी है।

क्या आपने कभी सोचा है कि उपनिवेशवाद का अंत हमारे समाज पर कैसे प्रभाव डालता है?
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