राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण तथा नये राष्ट्रों का गठन - letest education

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण

भूमिका  

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण विश्व युद्धों का एक महत्वपूर्ण परिणाम था। यह प्रक्रिया तब शुरू हुई जब पुराने राष्ट्रों को विघटित किया गया या उनकी सीमाओं को बदलकर नई सीमाएँ बनाई गईं। 20वीं सदी के पहले भाग में, दुनिया ने दो विश्व युद्ध देखे, जिनके बाद राजनीतिक और भौगोलिक परिवर्तनों की लहर आई।

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण तथा नये राष्ट्रों का गठन - letest education

विश्व युद्धों का प्रभाव  

पहला विश्व युद्ध (1914-1918) और दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945) केवल सैन्य संघर्ष नहीं थे, बल्कि ये राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्यों में गहरा परिवर्तन लाने वाले घटनाक्रम थे। इन युद्धों के परिणामस्वरूप कई साम्राज्य समाप्त हो गए, जिससे नई सीमाएँ निर्धारित की गईं। 

उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का विघटन हुआ, जिसके फलस्वरूप चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया और पोलैंड जैसे कई नए राष्ट्रों का गठन हुआ। ये परिवर्तन न केवल भौगोलिक थे, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी व्यापक प्रभाव डाले।

नये राष्ट्रों का गठन  

दूसरे विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र के गठन और उपनिवेशवाद के अंत के साथ, नए राष्ट्रों का उदय हुआ। एशिया और अफ्रीका में कई उपनिवेश स्वतंत्र हुए, जिससे राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण हुआ। 

भारत और पाकिस्तान का विभाजन (1947) एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने दक्षिण एशिया में नई सीमाएँ निर्धारित कीं। यह विभाजन न केवल भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसके साथ सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित हुआ। लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हुए और यह विभाजन आज भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है।

समकालीन परिप्रेक्ष्य  

आज, राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण एक सतत प्रक्रिया है, जो भू-राजनीतिक संघर्षों, आंतरिक तनाव और सामाजिक आंदोलनों से प्रभावित होती है। यह प्रक्रिया न केवल भौगोलिक बदलाव लाती है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव डालती है। 

उदाहरण के लिए, मध्य पूर्व में सीमा निर्धारण और नए देशों का गठन अभी भी विवाद का कारण बना हुआ है, जहां अनेक संघर्षों ने राष्ट्रीय सीमाओं को चुनौती दी है।

निष्कर्ष  

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण एक जटिल प्रक्रिया है, जो इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ पर होती है। यह केवल भौगोलिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि नए राष्ट्रों के गठन और सांस्कृतिक पहचान के विकास का भी एक माध्यम है। विश्व युद्धों के बाद की इस प्रक्रिया ने वैश्विक राजनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह आज भी जारी है। 

आज हम इस पुनः निर्धारण को एक नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं, जिसमें न केवल भू-राजनीतिक घटनाएँ शामिल हैं, बल्कि मानवता के लिए समानता और स्थिरता की खोज भी महत्वपूर्ण है। 

Important short questions and answers 

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण क्या है?

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण वह प्रक्रिया है, जिसमें युद्धों या राजनीतिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप देशों की सीमाओं को दोबारा तय किया जाता है। यह पुरानी सीमाओं को बदलकर नई सीमाओं का निर्माण करता है।

राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण क्यों हुआ?

विश्व युद्धों के बाद कई साम्राज्य टूट गए और उपनिवेशवाद समाप्त हो गया, जिससे नए राष्ट्रों का उदय हुआ और सीमाओं का पुनः निर्धारण आवश्यक हो गया।

राष्ट्रीय सीमाओं के पुनः निर्धारण का मुख्य कारण क्या था?

20वीं सदी में हुए दो विश्व युद्धों के बाद राजनैतिक और भू-आर्थिक बदलावों ने साम्राज्यों के विघटन और नये राष्ट्रों के गठन को बढ़ावा दिया, जिससे सीमाओं का पुनः निर्धारण हुआ।

विश्व युद्धों का राष्ट्रीय सीमाओं पर क्या प्रभाव पड़ा?

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई साम्राज्य खत्म हुए, जिनसे नई सीमाएँ निर्धारित की गईं और स्वतंत्र राष्ट्रों का गठन हुआ, जैसे ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के विघटन के बाद चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड जैसे देशों का गठन हुआ।

उपनिवेशवाद के अंत से सीमाओं का पुनः निर्धारण कैसे हुआ?

उपनिवेशवाद के अंत से एशिया और अफ्रीका में कई उपनिवेश स्वतंत्र हुए, जैसे भारत और पाकिस्तान का विभाजन, जिसने इन क्षेत्रों में नई सीमाओं का निर्धारण किया।

समकालीन युग में राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण क्यों महत्वपूर्ण है?

आज के समय में, राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः निर्धारण संघर्षों और सामाजिक आंदोलनों से जुड़ा हुआ है, जो न केवल भौगोलिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव भी डालता है।

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