एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी आंदोलन - 1945–1960

 एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी आंदोलन: एक नया सवेरा

आपने शायद ये सुना होगा कि आजादी का संघर्ष एक लंबे समय की कहानी है। एशिया और अफ्रीका जैसे महाद्वीपों में राष्ट्रवादी आंदोलन इसी संघर्ष का प्रतीक हैं। 20वीं सदी में, इन देशों में लोग गुलामी की जंजीरों को तोड़ने और अपने अधिकारों को पाने के लिए एकजुट हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने कई यूरोपीय शक्तियों को एशिया से बाहर कर दिया, और इस घटना ने एशियाई देशों में उम्मीद की किरण जगाई। जैसे ही जापान ने 1945 में आत्मसमर्पण किया, इन देशों में स्थानीय जनता ने यूरोपीय औपनिवेशिक शासन को स्वीकारने के बजाय आजादी के लिए आवाज बुलंद की।  

एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी आंदोलन - 1945–1960

आइए इस प्रेरणादायक सफर के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गौर करते हैं।  

द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव

द्वितीय विश्व युद्ध ने न केवल दुनिया के राजनीतिक नक्शे को बदला, बल्कि एशिया और अफ्रीका के लोगों में एक नई “जागरूकता” और “स्वतंत्रता की ललक” भी पैदा की। युद्ध के दौरान, जापान ने एशिया के कई हिस्सों से ब्रिटिश, फ्रेंच, और डच शक्तियों को बाहर कर दिया। अब जब युद्ध के बाद जापान हटा, तो लोगों में यह भावना घर कर गई कि वो भी अपने बल पर स्वतंत्र रह सकते हैं।  

“एशिया में राष्ट्रवादी आंदोलन”

चलिए, पहले एशिया पर नज़र डालते हैं, जहां कई देशों में स्वतंत्रता आंदोलन उभरकर आए। 

भारत का स्वतंत्रता संग्राम

आपने भारत का नाम सुना ही होगा। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, और सुभाष चंद्र बोस जैसे महान नेताओं के नेतृत्व में भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित था। 1947 में भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, और ये सफलता एशिया के अन्य देशों के लिए एक मिसाल बन गई।

(1) इंडोनेशिया का संघर्ष

   द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंडोनेशिया जापान के अधीन था, लेकिन युद्ध के बाद इंडोनेशियाई जनता ने 17 अगस्त 1945 को अपनी आजादी की घोषणा कर दी। यद्यपि डच सरकार वापस लौटना चाहती थी, इंडोनेशियाई जनता के संघर्ष ने उन्हें 1949 में स्वतंत्रता दिलाई।

(2) वियतनाम का संघर्ष

   वियतनाम में फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पाने का संघर्ष काफी लंबा था। 1945 में हो ची मिन्ह ने स्वतंत्रता की घोषणा की, और अंततः 1954 में फ्रांसीसी शासन को छोड़ना पड़ा। 

(3) अफ्रीका में राष्ट्रवादी आंदोलन

अब बात करते हैं अफ्रीका की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहाँ भी एक नई सोच और एकता का जन्म हुआ। लोग अपनी संस्कृति, परंपरा और “स्वशासन” को पुनः प्राप्त करने के लिए आंदोलन करने लगे। 

(4) घाना का आंदोलन

घाना पश्चिम अफ्रीका का पहला ऐसा देश बना जिसने ब्रिटिश शासन से 1957 में स्वतंत्रता पाई। यहाँ के नेता क्वामे एनक्रूमा ने लोगों को एकजुट किया और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।

(5) अल्जीरिया का स्वतंत्रता संग्राम

फ्रांस से आजादी पाने के लिए अल्जीरिया में 1954 से 1962 तक संघर्ष चला, जिसमें कई लोगों ने अपनी जान गंवाई। अंततः 1962 में अल्जीरिया को स्वतंत्रता मिली।

(6) केन्या का मऊ मऊ आंदोलन

केन्या में ब्रिटिश शासन के खिलाफ मऊ मऊ आंदोलन चला। इसके परिणामस्वरूप 1963 में केन्या को आजादी प्राप्त हुई।

राष्ट्रवादी आंदोलनों के प्रमुख कारण

इन आंदोलनों के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण भी थे।  

1. आर्थिक शोषण

यूरोपीय शासकों ने स्थानीय संसाधनों का जमकर शोषण किया, जिससे स्थानीय जनता में असंतोष बढ़ा और वे स्वतंत्रता की ओर प्रेरित हुए।

2. सांस्कृतिक अपमान

यूरोपीय शासक स्थानीय संस्कृति को तुच्छ समझते थे, जिससे लोग अपनी “सांस्कृतिक पहचान” को बनाए रखने के लिए संघर्ष करने लगे।

3. द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव

युद्ध ने लोगों को यह एहसास दिलाया कि अगर वो एकजुट हो जाएं, तो उन्हें कोई गुलाम नहीं बना सकता।

4. अंतर्राष्ट्रीय समर्थन

संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने इन आंदोलनों का समर्थन किया, जिससे इन आंदोलनों को और बल मिला।

निष्कर्ष

एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी आंदोलनों ने केवल स्वतंत्रता नहीं दिलाई, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि जब लोग एकजुट होकर अपने हक के लिए खड़े होते हैं, तो बदलाव संभव है। ये आंदोलन सिर्फ स्वतंत्रता की नहीं, बल्कि “मानव गरिमा” और “समानता” की भी कहानी है।

इस तरह से एशिया और अफ्रीका के राष्ट्रवादी आंदोलन आज भी दुनिया को प्रेरित करते हैं कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, हिम्मत और एकजुटता से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।

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