पानीपत का द्वितीय युद्ध के कारण और परिणाम (5 नवंबर 1556)

पानीपत का द्वितीय युद्ध (1556) 

पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवंबर 1556 को दिल्ली के पास पानीपत में लड़ा गया था। यह युद्ध मुगल सम्राट अकबर और अफगान शासक हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) के बीच हुआ था। इस युद्ध ने भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना और अकबर के शासन की शुरुआत को चिह्नित किया।

पानीपत का द्वितीय युद्ध की पृष्ठभूमि

हुमायूँ की मृत्यु,1555 में, हुमायूँ की मृत्यु के बाद, उसका बेटा अकबर गद्दी पर बैठा। अकबर उस समय केवल 13 वर्ष का था, और उसे उसके संरक्षक बैरम खान का समर्थन प्राप्त था।

हेमू का उदय

 हेम चंद्र विक्रमादित्य, जिसे हेमू के नाम से भी जाना जाता है, एक शक्तिशाली अफगान सेनापति था। शेर शाह सूरी और उसके पुत्र इस्लाम शाह के शासनकाल में हेमू ने कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य पदों पर कार्य किया। इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद, हेमू ने खुद को दिल्ली और उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों का शासक घोषित किया।

पानीपत का द्वितीय युद्ध के कारण 

पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556 में हुआ था और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे। इस युद्ध के कारणों को राजनीतिक, सैन्य, और सामाजिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है। यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

(1) सत्ता का संघर्ष

हुमायूँ की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया था। हेमू ने इस अवसर का लाभ उठाया और दिल्ली पर कब्जा कर लिया। उसने खुद को हिंदवी स्वराज का राजा घोषित किया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

(2) अकबर का शासन

बैरम खान, जो अकबर के संरक्षक और प्रधान सेनापति थे, ने अकबर के लिए मुग़ल साम्राज्य को पुनः स्थापित करने की योजना बनाई। हेमू को हराना और दिल्ली पर फिर से कब्जा करना इसका मुख्य उद्देश्य था।

(3) बैरम खान का संरक्षकत्व

बैरम खान, अकबर के संरक्षक और प्रधान सेनापति बैरम खान ने अकबर के लिए मुग़ल साम्राज्य को पुनः स्थापित करने की योजना बनाई। उन्होंने हुमायूँ की मृत्यु के बाद अकबर की ओर से शासन चलाया और मुगल साम्राज्य को स्थिर करने के लिए हेमू को हराना आवश्यक समझा।

(4) राजनीतिक और क्षेत्रीय प्रभुत्व की होड़

दिल्ली और आगरा का महत्व, दिल्ली और आगरा का क्षेत्र राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। इन क्षेत्रों पर नियंत्रण का मतलब था उत्तर भारत की सत्ता पर प्रभुत्व। हेमू ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था और मुग़लों को इसे पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता थी।

(5) मुगल साम्राज्य का विस्तार

अकबर की स्थिति मजबूत करना, अकबर के शासनकाल के प्रारंभ में ही उसकी स्थिति को मजबूत करना आवश्यक था। बैरम खान ने हेमू के खिलाफ युद्ध करके अकबर के शासन को स्थिर करने और मुग़ल साम्राज्य का विस्तार सुनिश्चित करने का निर्णय लिया।

पानीपत का द्वितीय युद्ध का विवरण

★ सेनाओं की तैयारी

 हेमू ने एक विशाल सेना तैयार की और दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में मुगलों का सामना करने के लिए पहुंचा। दूसरी ओर, बैरम खान ने अकबर की ओर से मुग़ल सेना का नेतृत्व किया।

★ युद्ध का आरंभ

5 नवंबर 1556 को दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। हेमू ने अपनी सेना का नेतृत्व खुद किया और मुगल सेना पर आक्रामक हमला किया।

★ हेमू की पराजय

युद्ध के दौरान, हेमू एक तीर से घायल हो गया, जो उसकी आंख में लगा। उसकी सेना ने इसे अपशकुन माना और उसका मनोबल टूट गया। घायल हेमू को बंदी बना लिया गया और उसे अकबर और बैरम खान के सामने पेश किया गया।

★ हेमू की मृत्यु

बैरम खान ने अकबर से कहा कि उसे अपने दुश्मन को मारकर अपने शासन की शुरुआत करनी चाहिए। अकबर ने हेमू को मारने के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन बैरम खान ने हेमू का सिर काट दिया।

पानीपत का द्वितीय युद्ध के परिणाम

(1) मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना

इस युद्ध ने मुग़ल साम्राज्य को पुनः स्थापित किया और अकबर को भारत का सम्राट बना दिया।

(2) बैरम खान का प्रभाव

 बैरम खान का प्रभाव और महत्व अकबर के प्रारंभिक शासनकाल में अत्यधिक बढ़ गया। उन्होंने अकबर की ओर से शासन चलाया और मुगल साम्राज्य को स्थिर किया।

(3) अकबर का शासन

इस युद्ध के बाद, अकबर ने अपने शासन की नींव मजबूत की और आने वाले वर्षों में भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक बने। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, प्रशासनिक सुधार और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष

पानीपत का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने मुग़ल साम्राज्य को पुनः स्थापित किया और अकबर के महान शासन की शुरुआत की। यह युद्ध न केवल राजनीतिक शक्ति के संतुलन को बदलने वाला था, बल्कि इससे भारतीय उपमहाद्वीप का भविष्य भी निर्धारित हुआ। अकबर के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य ने एक नई ऊंचाई प्राप्त की, जो आने वाले वर्षों में भारतीय संस्कृति, राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा।

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