स्वतंत्रता का अधिकार का वर्णन
मानव के चहुँमुखी विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसे अपनी योग्यता एवं क्षमतानुसार बौद्धिक, शारीरिक तथा सामाजिक उन्नति करने की स्वतन्त्रता हो। इसीलिए संविधान में मूल अधिकारों के अन्तर्गत स्वतन्त्रता के अधिकार को रखा गया है। 19 वें अनुच्छेद के अनुसार स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित छह प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं-
स्वतंत्रता के अधिकार द्वारा नागरिकों को कौन कौन सी स्वतंत्रताएं प्रदान की गई है
(1) भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
प्रत्येक नागरिक को विचाराभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, परन्तु शर्त यह है कि वह समाज में अव्यवस्था उत्पन्न न करे। अपने विचार पत्र - पत्रिकाओं, समाचार - पत्रों में प्रकाशित करने और करवाने की दृष्टि से लेखक एवं प्रकाशक दोनों स्वतन्त्र हैं, लेकिन ये विचार अश्लील या विघटनकारी न हों।
(2) सभा करने की स्वतन्त्रता
प्रत्येक नागरिक को स्वतन्त्रतापूर्वक बिना अस्त्र - शस्त्रों के सभा करने का अधिकार है। परन्तु यदि किन्हीं कारणों से सरकार शान्ति भंग होने की आशंका के कारण सभा करने के लिए जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध लगाती है तो वह अवैधानिक नहीं माना जाएगा।
(3) संघ अथवा संस्था निर्माण की स्वतन्त्रता
नागरिकों को अपने सर्वांगीण विकास अथवा मानव - कल्याण हेतु किसी भी संघ या संस्था का निर्माण करने की स्वतन्त्रता है, परन्तु समाज की दृष्टि से विघटनकारी होने पर सरकार ऐसी संस्थाओं का अस्तित्व समाप्त भी कर सकती है।
(4) भ्रमण की स्वतन्त्रता
प्रत्येक नागरिक को देश की सीमा के अन्दर स्वतन्त्र रूप से विचरण करने, भ्रमण करने एवं आने - जाने का अधिकार संविधान ने दिया है; किन्तु सार्वजनिक अहित होने की आशंका की स्थिति में राज्य को इस पर प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार भी प्राप्त है।
(5) आवास की स्वतन्त्रता
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा एवं सुविधानुसार किसी भी स्थान पर रहने की स्वतन्त्रता है। विशेष परिस्थितियों में सरकार इस स्वतन्त्रता को भी मर्यादित कर सकती है। जम्मू - कश्मीर में वहाँ के मूल निवासियों के अलावा अन्य भारतीय अपना स्थायी निवास नहीं बना सकते हैं।
(6) व्यावसायिक स्वतन्त्रता
प्रत्येक व्यक्ति को संविधान द्वारा यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय - व्यापार, नौकरी , मजदूरी आदि - कर सके।
व्यक्ति के जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की सुरक्षा
अनुच्छेद 20 से 22 तक व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में संविधान में व्यवस्था की गई है। अनुच्छेद 20 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उस समय तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक उसने अपराध के समय किसी कानून का उल्लंघन न किया हो। अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण तथा शारीरिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार से वंचित नहीं किया जा सकता। किसी अपराधी को अपने विरुद्ध गवाही देने को बाध्य भी नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त आधिकारिक बन्दी को 24 घण्टे के अन्दर ही मजिस्ट्रेट के समक्ष अनिवार्य रूप से उपस्थित किया जाना चाहिए। इससे अधिक समय तक उसे हवालात में नहीं रखा जा सकता। प्रत्येक बन्दी व्यक्ति को बन्दी होने का कारण जानने का अधिकार भी प्रदान किया गया है।
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