प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? प्रशिक्षण की आवश्यकता

 प्रशिक्षण का तात्पर्य अथवा आशय

प्रशिक्षण से आशय किसी विशेष कार्य को करने के लिए उपयुक्त योग्यता तथा कुशलता प्राप्त करना है। दूसरे शब्दों में, प्रशिक्षण से आशय उस शिक्षा - दीक्षा से होता है जो उद्योग या कार्य - विशेष की आवश्यकताओं से सम्बन्ध रखती है और उन्हें करने की कला, ज्ञान तथा कौशल प्रदान करती है , जिससे उस विशिष्ट कार्य का सम्पादन सुगम, शीघ्र तथा प्रभावकारी बन जाता है। प्रशिक्षण शिक्षा से भिन्न होता है। शिक्षा के अन्तर्गत किसी व्यक्ति को सामान्य शिक्षा दी जाती है, जिससे उसका बौद्धिक विकास हो सके जबकि प्रशिक्षण का उद्देश्य कर्मचारी की कुशलता को बढ़ाना है।

प्रशिक्षण की परिभाषा 

 विभिन्न विद्वानों ने प्रशिक्षण की परिभाषा निम्न प्रकार से दी है— 

(i) डेल योडर के अनुसार, “प्रशिक्षण वह विधि है जिसके द्वारा श्रम - शक्ति को उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य के योग्य बनाया जाता है।” 

(ii) एडविन बी० फिलिप्पो के अनुसार, “किसी विशेष कार्य को करने के लिए कर्मचारी के ज्ञान और कौशल में वृद्धि करने की प्रक्रिया को प्रशिक्षण कहा जाता है।”

(iii) जूसियस के अनुसार, “प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष कार्यों को करने के लिए कर्मचारी की अभिवृत्तियों, निपुणताओं तथा योग्यताओं में वृद्धि की जाती है।” 

केवल नए कर्मचारियों के लिए ही प्रशिक्षण आवश्यक नहीं है बल्कि पुराने कर्मचारियों को भी समय - समय पर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जिससे वे नवीनतम तकनीकों से परिचित रहें। प्रशिक्षण एक निरन्तर प्रक्रिया है, इससे नए तथा पुराने कर्मचारियों की कार्य - कुशलता तथा ज्ञान में वृद्धि होती है। नए कर्मचारी को आवश्यक प्रशिक्षण देकर उसे संस्था के लिए और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।

प्रशिक्षण की आवश्यकता

उद्योगों के बदलते परिवेश में न केवल उपक्रम में कुशल व योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है बल्कि तकनीकी परिवर्तन के साथ - साथ उन्हें इसकी जानकारी देने के लिए उचित प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जो सभी सेविवर्गीय या प्रबन्धकीय क्रियाओं से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। प्रशिक्षण की आवश्कयता पर प्रकाश डालते हुए जान ए० शुबिन ने कहा है, “एक विधिवत् प्रशिक्षण योजना काम में गुणात्मक तथा परिमाणात्मक सुधार करती है, मशीनों को सुरक्षित रखती है, लागत कम करती है, कर्मचारियों की आय तथा उनके मनोबल की वृद्धि करती है तथा कम्पनियों की नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करती है।” 

प्रशिक्षण की आवश्यकता और महत्त्व को और अधिक स्पष्ट करने के लिए निम्न तथ्यों का अध्ययन आवश्यक है- 

(1) कर्मचारियों की उत्पादकता में वृद्धि हेतु 

प्रशिक्षण से कर्मचारियों में कार्य करने की तकनीकी का विकास होता है जिससे उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है उपक्रम की उत्पादकता में मात्रा एवं किस्म दोनों दृष्टियों से सुधार होता है। 

(2) कर्मचारियों के मनोबल को ऊँचा उठाने के लिए 

प्रशिक्षण कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है जिससे श्रमिक को कार्य करने में अधिक सन्तुष्टि मिलती है तथा विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती हैं। इन सभी से कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। 

(3) पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण में कमी 

 प्रशिक्षित श्रमिक कार्य को अधिक कुशलता , योग्यता एवं अनुभव से करता है और वह स्वयं अपने कार्य का पर्यवेक्षक बन जाता है। इससे संगठन में पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण कार्य में मितव्ययता आ जाती है। 

(4) यन्त्र एवं सामग्री का सदुपयोग 

प्रशिक्षण कर्मचारी को कार्य करने की वैज्ञानिक विधि सिखाता है जिससे कर्मचारी यन्त्र एवं सामग्री का उचित प्रयोग करता है। जिससे माल का अपव्यय एवं मशीन की टूट - फूट कम होती है तथा वस्तु या सेवा की लागत में कमी आती है। 

(5) दुर्घटनाओं के कमी 

प्रशिक्षण में किसी विशिष्ट मशीन का किस प्रकार प्रयोग किया जाए, शारीरिक गतिविधियों का मशीन के साथ किस प्रकार सामंजस्य स्थापित किया जाए, आदि बातों को बताया जाता है। इससे मशीनों के प्रयोग में होने वाली दुर्घटनाओं में कमी आती है।

(6) गतिशीलता में वृद्धि 

प्रशिक्षण कर्मचारी को विकास के अवसर देता है जिससे पदोन्नति पाना तथा स्थानान्तरण से अन्य विभागों में जाना सरल हो जाता है। 

(7) प्रबन्ध व श्रम में मधुर सम्बन्ध 

प्रशिक्षण से श्रमिकों की कार्य पद्धति, समझदारी, व्यवहार और आचरण में ऐसे अनुकूल परिवर्तन आते हैं जिससे प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित होते हैं। 

(8) कर्मचारियों के दृष्टिकोण में परिवर्तन 

प्रशिक्षण से कर्मचारियों की विचारधारा प्रगतिशील हो जाती है जिससे वह नई और उन्नत विधियों को सीखने के लिए उत्सुक रहते हैं। 

(9) संगठनात्मक स्थिरता और लोच में वृद्धि हेतु 

प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारियों में संगठनात्मक स्थिरता और लोच में वृद्धि होती है। स्थायित्व का आशय है कि उपक्रम में निरन्तर योग्य और प्रशिक्षित व्यक्तियों की पूर्ति बनी रहती है। लोच का आशय यह है कि प्रशिक्षण सुविधाओं से कर्मचारियों की योग्यताओं और दृष्टिकोण को परिवर्तित परिस्थतियों के अनुसार आसानी से समायोजित करने में सुविधा रहती है। उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि औद्योगिक व्यवस्था में कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण उतना ही आवश्यक है जितना सामाजिक प्राणी के लिए सामाजिक नियमों एवं परम्पराओं का ज्ञान आवश्यक है।

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