पदोन्नति किसे कहते हैं? अर्थ, परिभाषा, कारण, प्रकार तथा सिद्धांत

 पदोन्नति का अर्थ 

पदोन्नति से आशय एक ऐसे उच्च पद की प्राप्ति से है जिसमें अपेक्षाकृत अधि उत्तरदायित्व होता है। साधारणातः पदोन्नति का अर्थ लोग ऐसे परिवर्तन से लगाते हैं जिस परिणामस्वरूप आय बढ़ जाय, लेकिन पदोन्नति में आय बढ़ना अनिवार्य नहीं है। यदि किन कर्मचारी के पद में वृद्धि न होकर केवल ग्रेड या वेतन में ही वृद्धि होती है तो इसे पदोन्नति न वरन् वेतन वृद्धि कहेंगे। किन्तु पदोन्नति के कारण कर्मचारी ऐसी स्थिति में आ जाता है जिस अपेक्षाकृत अधिम सम्मान व अधिक उत्तरदायित्व होता है। साधारणत: पदोन्नति के अन्तर पद, आय और उत्तरदायित्व तीनों में ही वृद्धि होती है। 

परिभाषाएँ 

पदोन्नति की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार दी गई हैं- 

1. स्कॉट एवं स्प्रीगल के अनुसार- “पदोन्नति किसी कर्मचारी का ऐसे कार्य स्थानान्तरण है जो अधिक धन देता है अथवा कुछ विशिष्ट स्थिति का उपयोग करता है।”

2. एडविन बी० फिलिप्पो के शब्दों में, “पदोन्नति में एक कार्य से दूसरे कार्य को हो वाला ऐसा परिवर्तन शामिल है जिसमें अधिक सम्मान और उत्तरदायित्व हो।” 

3. पिगर्स एवं मायर्स के अनुसार - “पदोन्नति से आशय किसी कर्मचारी के पद में वृि से है जिस पर कि अधिक उत्तरदायित्व, अधिक प्रतिष्ठा या प्रस्थिति अधिक चातुर्य या बढ़ी वेतन दर होती है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषणात्मक अध्ययन के आधार पर पदोन्नति की उचि परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है- “पदोन्नति में एक व्यक्ति अपने वर्तमान पद से उच्च प पर कार्य करने लगता है। पदोन्नति से आय, उत्तरदायित्व एवं प्रतिष्ठा, तीनों में वृद्धि होती है।”

पदोन्नति के कारण 

कर्मचारी की पदोन्नति के अनेक कारण हो सकते हैं । 

कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित 

(1) श्रेष्ठ सेवाओं के लिए पुरस्कार 

यदि संस्था को किसी कर्मचारी की श्रेष्ठ सेवाओं एवं कर्तव्यनिष्ठा के कारण अतिरिक्त लाभ प्राप्त हुआ हो तो संस्था में दुर्घटना आदि के कारण होने वाली क्षति न हुई तो ऐसे कर्मचारी को पदोन्नति द्वारा पुरस्कृत किया जा सकता है।

(2) उपक्रम में अनुशासन बनाये रखना

किसी भी उपक्रम में अनुशासन बनाये रखने के लिए भी पदोन्नति आवश्यक होती है। इससे कर्मचारियों में अनुशासनहीनता नहीं पनपती क्योंकि पदोन्नति के कारण उनकी नियुक्ति उत्तरदायित्व वाले पदों पर होती है। 

(3) श्रम व पूँजी के बीच मधुर सम्बन्ध 

श्रम उत्पादन का एक अति महत्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। यदि श्रमिकों में असन्तोष होगा तो उपक्रम निर्धारित उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकता। अतः हड़ताल, तालाबन्दी आदि से बचने एवं अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पदोन्नति आवश्यक है। 

(4) कर्मचारियों में स्थायित्व लाना 

कर्मचारियों को संगठन में बनाये रखने के लिए भी पदोन्नति आवश्यक है अन्यथा अनुभव प्राप्त करने के पश्चात् अधिक वेतन एवं सुविधाओं के लालच में कर्मचारी संस्था में स्थायी रूप से नहीं रह सकते। 

(5) रिक्त पदों की पूर्ति हेतु 

संगठन में कर्मचारियों के अवकाश ग्रहण करने तथा अन्य कारणों से पद रिक्त होते रहते हैं। इनकी पूर्ति नयी नियुक्ति द्वारा या पदोन्नति द्वारा हो सकती है। कार्यक्षमता के दृष्टिकोण से तथा एक स्वस्थ सेविवर्गीय नीति के अनुरूप रिक्त स्थानों की पूर्ति पदोन्नति द्वारा किया जाना संस्था के लिए लाभप्रद होता है। 

(6) योग्यता वृद्धि को प्रोत्साहन 

प्रत्येक मनुष्य प्राकृतिक नियम के अनुसार सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील रहता है। जिन संस्थाओं में पदोन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं वहाँ कर्मचारी पदोन्नति पाने के लिए निरन्तर अपनी योग्यता में वृद्धि करते रहते हैं। 

(7) औद्योगिक शान्ति बनाये रखना 

औद्योगिक संगठनों में शान्ति बनाये रखने के लिए कर्मचारियों को समय-समय पर उनकी योग्यता के अनुसार पदोन्नति देने से श्रमिकों में शान्ति रहती है तथा औद्योगिक वातावरण कार्य करने के योग्य बना रहता है। 

पदोन्नति के प्रकार 

किसी भी उपक्रम में पदोन्नति निम्न प्रकार से की जा सकती है- 

(1) समतल पदोन्नति 

ऐसी पदोन्नति में कार्य की प्रकृति तथा दशाएँ पूर्व के कार्य की भाँति होती हैं लेकिन पद में वृद्धि हो जाती है अर्थात् भौतिक वर्गीकरण अपरिवर्तित रहता है, जैसे निम्न श्रेणी लिपिक को उच्च श्रेणी लिपिक बनाया जा सकता है। 

(2) लम्बवत् पदोन्नति 

इस प्रकार की पदोन्नति में कार्यों का वर्गीकरण बदल जाता है। और उत्तरदायित्व भी बढ़ जाते हैं, जैसे - उच्च श्रेणी लिपिक को कार्यालय अधीक्षक बना देना, कॉलेज के किसी विभागध्यक्ष को प्राचार्य बना देना आदि। इस प्रकार की पदोन्नति में उत्तरदायित्व, प्रतिष्ठा, वेतन दर आदि सभी में वृद्धि होती है।

पदोन्नति के सिद्धान्त 

कर्मचारियों की पदोन्नति करते समय निम्नलिखित सिद्धान्तों का पालन किया जान चाहिए- 

(1) योग्यता एवं वरिष्ठता का ध्यान 

कर्मचारियों की पदोन्नति करते समय इन दोन बातों पर विचार करना चाहिए । यदि कर्मचारियों की योग्यता समान है तो वरिष्ठता का ध्यान रखना चाहिए तथा वरिष्ठता समान है तो योग्यता को महत्व देना चाहिए । 

(2) पदोन्नति नीति की स्पष्ट घोषणा 

 कर्मचारियों की पदोन्नति नीति की पहले से हैं। स्पष्ट घोषणा कर देनी चाहिए और घोषित नीति के अनुसार ही पदोन्नति करनी चाहिए। 

(3) पदोन्नति का स्पष्ट क्रम 

पदोन्नति के लिए पदों का क्रम पहले से ही निश्चित कर देना चाहिए जिससे कर्मचारियों को ज्ञात रहे कि उनकी किस पद पर पदोन्नति की जायेगी। 

(4) उच्च प्रबन्ध के द्वारा पदोन्नति 

पदोन्नति की नीति का निर्धारण उच्च प्रबन्ध द्वारा किया जाना चाहिए। लेकिन प्रबन्ध को इस कार्य के लिए निम्न तथा मध्यस्तरीय प्रबन्ध की सलाह ले लेनी चाहिए। 

(5) पदोन्नति शिकायतों का समाधान 

यदि पदोन्नति के सम्बन्ध में कर्मचारियों की शिकायतें हैं तो उनको सुनने तथा उनका न्यायपूर्ण समाधान किये जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। 

(6) प्रारम्भ में अस्थायी पदोन्नति 

प्रारम्भ में पदोन्नति कुछ समय के लिए अस्थायी रूप से की जानी चाहिए जिससे कर्मचारी को अपने पद पर कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रेरणा मिल सके। 

(7) प्रशिक्षण की व्यवस्था 

वर्तमान समय में प्रत्येक क्षेत्र में तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं।  जिसके कारण यह आवश्यक हो जाता है कि कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण देकर उच्च पदों के योग्य बनाया जाए।

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