कार्य मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा
कार्य मूल्यांकन एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत किसी उपक्रम में एक कृत्य की तुलना अन्य कृत्यों से की जाती है। आधुनिक औद्योगिक युग में एक ही संगठन में विभिन्न प्रकार के कृत्य होते हैं जिनमें विभिन्न व्यक्ति कार्य करते हैं। इन कृत्यों का तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक है। ऐसा अध्ययन विभिन्न प्रकार के घटकों के आधार पर किया जाता है, जैसे - कर्तव्य, दायित्व, कार्यदशाएँ, प्रयत्न आदि। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि कार्य मूल्यांकन विधि के द्वारा किसी विशिष्ट कृत्य का, अन्य कृत्यों की तुलना में पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाता है। कुछ व्यक्ति कार्य मूल्यांकन को ‘कार्य दर निर्धारण’ भी कहते हैं। कार्य मूल्यांकन को कुछ प्रमुख विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
(i) वैन्डैल फ्रेंच- “कार्य - मूल्यांकन संगठन के अन्दर विभिन्न कार्यों के सापेक्षिक मूल्य को निर्धारित करने की एक प्रक्रिया है ताकि विभिन्न मूल्य वाले कार्यों के लिए विभेदक मजदूरी का भुगतान किया जा सके।”
(ii) एडविन बी० फिलिप्पो– “एक संगठन के अन्तर्गत किसी कार्य का मूल्यांकन करने की व्यवस्थित तथा क्रमबद्ध प्रक्रिया कार्य - मूल्यांकन कहलाती है।”
(iii) डेल योडर— “कार्य मूल्यांकन एक व्यवहार है जो कि एक संगठन में तथा इसके समान संगठनों में विभिन्न कार्यों के तुलनात्मक मूल्य का माप करने में दृढ़ता प्रदान करता है। यह निश्चित रूप से एक कार्य - अंकन प्रक्रिया है, जो कर्मचारियों के अंकन से भिन्न नहीं है।”
कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य
कार्य - मूल्यांकन के अग्रलिखित उद्देश्य हैं-
(1) प्रत्येक कर्मचारी द्वारा किए जाने वाले कार्य का पूर्ण, सही एवं अव्यक्तिगत विवरण रखना।
(2) किसी विभाग में विभिन्न पदा का सापाक्षक मूल्य मालूम करना तथा विभिन्न विभागों में इसी प्रकार के कृत्यों की रेखा बनाना।
(3) संगठन की रेखा की व्याख्या करना तथा उत्तरदायित्वों एवं अधिकारों के माध्यमों का पता लगाना।
(4) प्रारम्भिक नियुक्ति तथा हस्तान्तरण की भावनाओं के सम्बन्ध में रोजगार कार्यालय हेतु पूर्ण सूचनाएँ प्रदान करना।
(5) प्रत्येक पद के लिए न्यूनतम तथा अधिकतम पारिश्रमिक की मात्रा मालूम करना।
(6) वेतन - सम्बन्धी समायोजना हेतु यह मालूम करना कि कर्मचारी का वेतन कार्य की किस्म को ध्यान में रखते हुए कम है अथवा अधिक है।
(7) समान कार्य हेतु अन्य स्थानों पर किए जाने वाले वेतन की तुलना आधार निर्धारित करना । तुलनात्मक आधार निर्धारित करता है।
(8) गुणों की मान्यता तथा अधिक उतरदायित्व के पदों पर पदोन्नति को सरल बनाना और बेकार आकांक्षाओं को प्रोत्साहित न करना।
(9) अधिक कार्य कुशलता तथा अधिक उत्तरदायित्व के पदों के लिए प्रशिक्षण का आधार निर्धारित करना।
(10) पदोन्नति की रेखा निर्धारित करना।
कार्य मूल्यांकन के लाभ एवं महत्त्व
कार्य मूल्यांकन के विभिन्न महत्त्वपूर्ण लाभ अग्रलिखित हैं-
(1) मजदूरी संरचना की असमानताओं को दूर करना - कार्य मूल्यांकन मजदूरी संरचना की असमनताओं के निवारण में सहायक होता है। समान कार्य के लिए समान मजदूरी तथा विभिन्न गुणों वाले कार्य के लिए विभेदक मजदूरी का निर्धारण कार्य - मूल्यांकन के आधार पर ही सम्भव है।
(2) पक्षपात रहित - संगठन में कार्यरत कर्मचारियों की अक्सर यह शिकायत रहती है। कि प्रबन्धक उनके साथ पक्षपात करते हैं। कार्य - मूल्यांकन में पक्षपात की सम्भावना नगण्य हो जाती है क्योंकि इसमें कार्य का मूल्यांकन किया जाता है, कर्मचार का नहीं। कार्य के आधार पर ही कर्मचारियों की योग्यता को निर्धारित किया जाता है। और उसी के अनुसार उनको पारिश्रमिक दिया जाता है।
(3) कर्मचारी परिवेदनाओं को न्यूनतम करने में सहायक - सापेक्षिक मजदूरी के कारण उत्पन्न कर्मचारियों की परिवेदनाओं को कम करने में कार्य - मूल्यांकन सहायता प्रदान करता है। परिवेदनाओं के निवारण हेतु यह एक सुदृढ़ आधार देता है।
(4) कार्य मूल्यांकन से अच्छे श्रम सम्बन्धों का विकास होता है।
(5) कार्य मूल्यांकन योजना योग्य, कुशल एवं अनुभवी कर्मचारियों को उपक्रम की ओर आकर्षित करने में सहायक सिद्ध होती है।
(6) इसमें कर्मचारियों को उचित उपयोग सम्भव होता है। उचित व्यक्ति को उचित कार्य पर लगाया जा सकता है।
(7) कार्य मूल्यांकन द्वारा वेतन तथा मजदूरियों को प्रमापीकरण करना सम्भव है।
(8) कार्य मूल्यांकन से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर चयन, स्थानान्तरण तथा तुलनात्मक अध्ययन में सहायता मिलती है।
(9) कार्य मूल्यांकन से कर्मचारियों को अपनी कमियाँ सुधारने की प्रेरणा मिलती है।
(10) इससे उपक्रम में सौहार्दपूर्ण मानवीय सम्बन्धों को प्रोत्साहन मिलता है।
(11) इससे कर्मचारियों की कार्यकुशलता एवं मनोबल में वृद्धि होती है।
(12) कार्य मूल्यांकन से कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों दोनों को सन्तुष्टि प्राप्त होती है। कर्मचारियों को उनके कार्य की प्रकृति एवं योग्यतानुसार मजदूरी एवं वेतन मिलता है , इससे वे सन्तुष्ट रहते हैं। दूसरी ओर, प्रबन्धकों को कार्य की प्रकृति के अनुसार कुशल एवं योग्य कर्मचारी मिलते हैं इससे उन्हें सन्तोष मिलता है।
(13) कार्य मूल्यांकन योजना कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के कार्यक्रम का निर्माण करने एवं उसका विकास करने में सहायता प्रदान करती है।
कार्य मूल्यांकन की सीमाएँ
(1) यह एक खर्चीली पद्धति है क्योंकि इसके लिए प्रशिक्षित एवं विशेषज्ञ कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
2. कार्य मूल्यांकन पद्धति को क्रियान्वित करने में बहुत समय लगता है।
3. तकनीक एवं किसी विशेष कुशल कर्मचारी की माँग व पूर्ति में होने वाले शीघ्र परिवर्तनों से सामंजस्य की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
4. अल्पकाल में वेतन व मजदूरी संरचना में परिवर्तन करना कठिन होता है। संगठन की वित्तीय सीमाएँ भी इसमें बाधक तत्त्व होते हैं।
5. एक कार्य का मूल्यांकन वर्तमान कार्य घटकों (जैसे — उत्तरदायित्व, योग्यता, समस्या, असुविधा इत्यादि) के आधार पर किया जाता है। इसमें भविष्य में तकनीकी , सूचना पद्धति तथा अन्य सम्बन्धित घटकों के कारण होने वाले परिवर्तनों को प्रतिबिम्बित करना कठिन होता है।
6. सभी की स्वीकृति कार्य - मूल्यांकन योजना पर प्राप्त करना सरल नहीं होता है।
7. जब कार्य - मूल्यांकन में अंकन किया जाता है तो मानवीय एवं औद्योगिक सम्बन्धों की समस्या सामने आ सकती है।
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