मानव शक्ति नियोजन की प्रक्रिया
मानव शक्ति नियोजन की प्रक्रिया मानव - शक्ति नियोजन निम्न दो चरणों में किया जाना चाहिए-
1. प्राथमिक चरण
(1) मानव शक्ति आवश्यकताओं का निर्धारण
मानव शक्ति नियोजन का क प्रारम्भ करने से पूर्व इसकी आवश्यकता का निर्धारण किया जाना परम आवश्यक है। अनेक शब्दों में , मानव-शक्ति नियोजन क्यों? कैसे, सीमा, आकार, प्रकृति आदि के बारे में विच किया जाना परम आवश्यक है। उसी के अनुरूप आगे का कार्य सम्पन्न किया जाना चाहिए।
(2) मानव शक्ति नियोजन की समयावधि का निर्धारण
समयावधि का निर्धारण मानव-शक्ति योजना के विकास को सम्भव बनाता है। ऐसी समयावधि अल्पकालीन मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन हो सकती है। सामान्यतया अल्पकालीन समयावधि दो व मध्यकालीन दो से पाँच वर्ष और दीर्घकालीन समयावधि पाँच वर्ष से अधिक लम्बी मानी जा है। इन समयावधि के अनुसार किये जाने वाले मानव-शक्ति नियोजन अल्पकालीन, मध्यकाली एवं दीर्घकालीन मानव - शक्ति कहलाते हैं।
(3) संगठन के उद्देश्यों का स्पष्ट विवेचन
इसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्यों का स्पष्ट विवेचन मानव - शक्ति नियोजन की समयावधि को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। उद्देश्यों में उत्पादन, विक्रय, बाजार अंश, नये उत्पादों का उत्पादन, विद्यमान उत्पादों का विलय आदि सम्मिलित किये जा सकते हैं। मानव-शक्ति नियोजन को उद्देश्यों के साथ सम्बन्धित किये जाने की दशा में ऐसे नियोजन के गलत निर्देशन की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं, जिन्हें ठीक नहीं समझा जा सकता।
(4) नियोजन सम्पूर्ण संगठन के लिए अथवा विशिष्ट विभागों के लिए
इस अन्तर्गत यह निश्चित किया जाता है कि मानव शक्ति नियोजन सम्पूर्ण संगठन व आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाना है अथवा विभिन्न विभागों के लिए पृथक-पृथक रूप से किया जाना है। पूर्वानुमान सामान्यतया, विभागीय आधार पर ही तैयार कि जाते हैं। संगठन के छोटा होने पर सम्पूर्ण संगठन के लिए एक साथ ही मानव-शक्ति नियोजन किया जा सकता है, किन्तु संगठन के बड़े होने पर पृथक-पृथक इकाइयों के लिए पूर्वानुमान तैयार किये जाने जरूरी हैं।
(5) दक्षता स्तरों एवं प्रकारों का निर्धारण
यह अन्तिम प्राथमिक कदम माना जा सकता है, जहाँ उन दक्षता स्तरों एवं प्रकारों का निर्धारण किया जाता है जिनके लिए पूर्वानुमान तैयार किये जाते हैं। यद्यपि सदैव ऐसा निर्धारण आवश्यक नहीं समझा जाता है, फिर भी सफा मानव शक्ति नियोजन के लिए महत्वपूर्ण दक्षता-स्तरों का एवं उनके प्रकारों का निर्धारण आवश्यक सा ही होता है।
2. उत्तरवर्ती चरण
उत्तरवर्ती चरण पर मानव-शक्ति नियोजन के कार्य को सम्पन्न करने के लिए निम्न कदम उठाये जाने आवश्यक हैं-
(1) विद्यमान मानव-शक्ति का स्कन्ध लेना
विद्यमान मानव-शक्ति के स्कन्ध के अध्ययन के लिए सर्वप्रथम संगठन को प्रबन्ध योग्य पूर्वानुमान इकाइयों में विभक्त किया जाना चाहिए। यह विभक्तीकरण वैभागिक आधार पर या कार्यों के आधार पर हो सकता है। तदुपरान्त यह पता लगाया जाना चाहिए कि मुख्य कार्यालय में कितनी मानव-शक्ति है, शाखा कार्यालयों में कितनी है, संयन्त्र स्तर पर कितनी है या उत्पाद रेखा के लिए कितनी मानव-शक्ति विद्यमान है। वैकल्पिक रूप में विद्यमान मानव-शक्ति स्कन्ध का अध्ययन सम्पूर्ण संगठन को कार्यों में विभक्त करके भी किया जा सकता है, तदुपरान्त इन पूर्वानुमान इकाइयों के प्रत्येक कर्मचारी को उसकी विशिष्ट दक्षता या व्यवसाय के आधार पर वर्गीकृत किया जाना चाहिए, जैसे-तकनीकी-अतकनीकी, पर्यवेक्षकीय-अपर्यवेक्षकीय; प्रबन्धकीय - अप्रबन्धकीय या कर्मचारी आदि। इससे विद्यमान मानव - शक्ति स्कन्ध का गुणात्मक पहलू सामने आता है। अन्त में, विद्यमान मानव-शक्ति स्कन्ध का अध्ययन गुणात्मक और परिमाणात्मक रूप से विभिन्न वर्ग के कर्मचारियों को अनेक आधारों पर श्रेणीबद्ध करके किया जाना चाहिए। ये श्रेणियाँ कर्मचारियों के पद या दक्षता के आधार पर बनायी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, प्रबन्धकों को उच्च, मध्य एवं निम्न प्रबन्ध श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। पर्यवेक्षकों को प्रथम रेखीय, द्वितीय रेखीय या तृतीय रेखीय श्रेणयों में विभक्त किया जा सकता है। इसी प्रकार कर्मचारियों को दक्ष - अदक्ष, अर्द्ध -दक्ष या वरिष्ठ लिपिक, कनिष्ठ लिपिक आदि श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।
(2) कर्मचारी आवर्तन का अध्ययन करना
कर्मचारी-आवर्तन का अध्ययन करने के लिए विगत अनुभवों एवं अभिलेखों की सहायता ली जानी चाहिए। कर्मचारी आवर्तन अनेक घटकों, जैसे - कार्य की दशाओं, मनोबल, कार्य सन्तुष्टि, प्रतिस्पद्ध स्थितियाँ एवं आकर्षक, बेकारी आदि से सम्बन्धित होता है। इन घटकों का अध्ययन करते हुए तथा विभिन्न प्रकार के दुरूपयोगों को ध्यान में रखते हेतु कर्मचारी-आवर्तन की दरों को मालूम किया जाना चाहिए, जिससे कि भावी मानव-शक्ति आवश्यकताओं का अनुमान सही प्रमाणित हो सके और किसी प्रकार ही अस्वाभाविक मानव - शक्ति की कमी या अतिशयता उत्पन्न न हो सके।
(3) मानव-शक्ति आवश्यकताओं का पूर्वानुमान
यह मानव-शक्ति नियोजन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग हैं। मानव - शक्ति आवश्यकताओं के सही पूर्वानुमान लगाना अत्यधिक कठिन कार्य होता है। दीर्घकालीन पूर्वानुमानों में परिशुद्धता और यथार्थता उत्पन्न करना अत्यधिक कठिन होता है। फिर भी कुछ मार्जिन के साथ परिशुद्धता को उत्पन्न किया जा सकता है। इन पूर्वानुमानों को अधिशासी सम्मति विधि; कार्य अध्ययन तकनीक; श्रम उत्पादकता प्रमापों; बाह्यकलन (Extrapolation); सह - सम्बन्ध (Correlation); एवं अर्थमिति (Econometrics) जैसी सांख्यिकीय तथा गणितीय विधियों इत्यादि के द्वारा लगाया जा सकता है।
(4) मानव-शक्ति की कमी या अतिशयता को दूर करना
प्राप्त पूर्वानुमानों के आधार पर मानव - शक्ति की कमी या अतिशयता को दूर किया जाना चाहिए । यह कार्य मानव - शक्ति नियोजन के लक्ष्य की पूर्ति से सम्बन्ध रखता है । मानव - शक्ति की कमी या अतिशयता को अनेक तरीकों से दूर किया जा सकता है । उदाहरणार्थ, मानव - शक्ति के अभाव को निम्न तरीकों द्वारा दूर किया जा सकता है—
(i) यदि योग्य एवं अनुभवी व्यक्ति बाजार में उपलब्ध हो तो बाजार से उनकी अधिप्राप्ति करके ;
(ii) यदि प्रबन्ध की नीति विद्यमान मानव - शक्ति को प्रोत्साहित करना है तो पदोन्नति करके ;
(iii) अतिरिक्त मानव - शक्ति की आवश्यकताओं को प्रशिक्षुओं की भर्ती करके उनको प्रशिक्षण हेतु भेज करके।
(iv) समयोपरि की व्यवस्था करके। इस प्रकार अतिशयता को दूर करने के लिए भी प्रबन्ध अनेक कार्य कर सकता है- (अ) छँटनी किये गये कर्मचारियों को संगठनों में कहीं और कार्यों पर लगा करके (व) यदि अतिशयता कार्य की आवश्यकताओं में परिवर्तन का परिणाम हो तो कर्मचारियों को पुर्नप्रशिक्षण दे करके, स) समयोपरि को समाप्त करके, (द) एक विभाग से दूसरे विभाग से स्थानान्तरित करके, (य) कर्मचारियों को शीघ्र अवकाश ग्रहण करने हेतु प्रोत्साहित करके। यदि किसी भी प्रकार से अतिशयता को दूर करना सम्भव न हो अतिरिक्त कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाकर कार्यमुक्त करना चाहिए कि जब भी आवश्यकता होगी प्राथमिकता उनको ही दी जायेगी।
एक टिप्पणी भेजें