वाणिज्यिक क्रांति
पुनर्जागरण के समय यूरोप के निवासियों का संपर्क पूर्वी देशों के साथ हुआ। भौगोलिक खोजो के परिणाम स्वरुप नए राष्ट्रों का उदय हुआ। अब व्यापार केवल नगरों के बीच ना रहा। पहले यूरोप की एशियन माल के लिए मुस्लिम वणिकों पर आधारित रहना पड़ता था, वह स्थिति अब समाप्त हो गई थी। यूरोपीय व्यापार पर इटली के नगर राज्यों के स्वामित्व का समय अब व्यतीत हो गया था। स्पेन, पुर्तगाल, हॉलैंड, फ्रांस और इंग्लैंड के व्यापारियों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। अमेरिका, इंडोनेशिया चीन और भारत भी महसूस कर रहे थे कि किस प्रकार व्यापारिक गतिविधियों में सक्रिय हुआ जाए। इन सभी गतिविधियों ने व्यापार को तीव्रता प्रदान की और यूरोपी वासियों ने व्यापार से असीम लाभ प्राप्त किया। इस प्रकार व्यापार में हुए परिवर्तन जो नई खोजो तथा नई भूमियों के उपनिवेश के परिणाम थे, इसी को ‘वाणिज्य क्रांति’ कहा जाता है।
वाणिज्यिक क्रांति को जन्म देने वाले कारण या कारक
(1) वाणिज्यक अर्थव्यवस्था में तेजी
16वीं और 17वीं शताब्दियों में मुद्रा के तीव्र प्रसार के कारण विभिन्न प्रकार के भुगतान में मुद्रा का चलन प्रारंभ हो गया। अब ऋण–पत्र, हुण्ड्डी तथा विनिमय पत्रों को मान्य कर लिया। यही मौद्रिक अर्थव्यवस्था का विकास ही इस समय की विशेषता बन गयी।
वितरण व्यवस्था में भी प्रमुख बदलाव यह हुआ कि बड़े-बड़े व स्थायी बाजारों को स्थापित किया गया। उनके विकास में सहायक रहे हाट बाजार। ये बाजार सप्ताह में एक दिन नियत जगह पर लगाए जाते थे। एण्टवर्प, पेरिस, लंदन एवं एम्सटर्डम में मेलों का स्थान स्थाई बाजारों ने ले लिया। खुले बाजारों से हटकर व्यापार मालगोदामों में स्थापित हो गया। अब माल बेचने के लिए निविदाएँ प्रारंभ हो गयी। व्यापार में मध्यस्तों की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई क्योंकि अब थोक व्यापार बढ़ गया था।
विस्तारित बाजार ने संचार साधनों को सुलभ बनाने की ओर ध्यान दिया। डाक सेवाएँ सुदृढ़ हुई और उन्हें प्रभावी बनाया गया। 1500 ई तक स्पेन, इंग्लैंड और फ्रांस में सरकारी डाक सेवाएँ शुरू हो चुकी थीं। अब व्यापार–वाणिज्य संबंधी समाचार प्रमुख मात्रा में मिलने लगे। जहाँ स्थानीय परिवहन का प्रश्न है वह इस समय भी जस की तस स्थिति में ही बना रहा, परंतु जल परिवहन में तेजी आयी। पहले हॉलैंड, फिर इंग्लैंड में समुद्री जहाजों का निर्माण किया गया।
(2) आंतरिक व्यापार में तेजी
1500 ई के आसपास भूमध्यसागरीय क्षेत्र प्रायः आत्मनिर्भर थे। इस क्षेत्र में इटली की गिनती सर्वाधिक व्यस्त और धनी क्षेत्रों में की जाती थी। वैसे तो दक्षिणी फ्रांस और स्पेन में भी बड़े व्यापारिक नगर थे। संपूर्ण भूमध्यसागरीय क्षेत्र में खाद्य पदार्थों का व्यापार होता था। इस क्षेत्र में मसालों का एशिया से एलेक्जेंड्रिया और त्रिपोली के मार्ग से मँगाकर वेनिस, जेनेवा और पीसा के लिए भेजे जाने की व्यवस्था की। लेकिन धीरे-धीरे मसाला व्यापार में अटलांटिक क्षेत्र के नए राज्य (उत्तर यूरोपी) भी कूद गए और इस प्रकार भूमध्यसागर क्षेत्र अपनी आत्मनिर्भरता को स्थापित न रख सका तथा उसे अपनी जीविका के लिए बाहर से होने वाली आपूर्ति पर निर्भर होना पड़ा। इस वजह से वेनिस महत्वहीन हो गया। कुछ समय के लिए एण्टवर्प (नीदरलैंड का बंदरगाह) का महत्व बड़ा गया।
(3) समुद्र पार के व्यापार में तेजी
एशिया और अमेरिका के साथ 16वीं शताब्दी में जिस व्यापार का प्रारंभ हुआ वह ऐतिहासिक घटना थी। आने वाले दिनों में उत्तरी यूरोप के राज्यों, विशेष रूप से अंग्रेज और हॉलैंड ने अपनी नीतियों से यूरोप की अर्थव्यवस्था को अधिक कठोर एवं प्रतियोगिता परक बना दिया। कीमती वस्तुओं के दोहन, मसालों की माँग दास व्यापार, उपनिवेशों की स्थापना आदि से समुद्र पार के व्यापार में तेजी हुई। जिससे एशिया एवं अमेरिकी वस्तुएँ यूरोपीय उच्च वर्ग के अधिकांश व्यक्तियों तक पहुँचने लगी। समुद्री परिवहन के साधनों में भी अधिक विस्तार हुआ। डचों और इंग्लैंड ने अच्छी किस्म के जहाज बनाये और इन्होंने एशियाई व्यापार पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।
(4) साझां पूँजी कंपनी का चलान
आधुनिक युग के शुरू में यूरोप के व्यापार विशेषकर व्यक्तिगत रूप से अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझेदारी करके व्यापार करते थे। इस समय के विभिन्न धनी घरानों की जानकारी प्राप्त होती है। परंतु 16वीं शताब्दी में कई व्यापारिक संगठनों की स्थापना ने व्यापार की प्रकृति में बदलाव किया। जहाज की कीमत और उसकी खेप में कई व्यापारियों ने साझेदारी की प्रथा को जन्म दिया। इसीलिए समुद्री मार्ग से व्यापार में छोटे व्यापारी तीव्र संख्या में हिस्सेदारी करने लगे। एलिजाबेथ के शासन के दौरान इस प्रकार की हिस्सेदारी चरम बिंदु पर थी। ऐसे समय में जब खतरे ज्यादा थे और स्वास्थ्य बीमा भी कमजोर थी, भरे मालवाहक जहाज का अकेला मालिक होने के स्थान पर कई जहाजों का साझेदार होना अधिक उपयुक्त था। इस प्रकार की साझेदारी एक बात की यात्रा के लिए ही मान्य थी लेकिन बाद में आर्थिक गतिविधियों में लंबी साझेदारी भी प्रचलित हो गयी। संयुक्त पूँजी कंपनी जैसे बड़े संगठनों ने व्यापार में भारी परिवर्तन कर दिया। अब अकेले व्यक्ति का जोखिम उठाने का अंत कर दिया। इससे व्यापारियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में व्यापार करने का स्वामित्व मिल गया।
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