स्थानीय स्वशासन से आप क्या समझते हैं? अर्थ, आवश्यकता अथवा महत्व

स्थानीय स्वशासन का अर्थ

स्थानीय स्वशासन का अर्थ ऐसी शासन व्यवस्था से है जिसमें स्थानीय संस्थाओं द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न समस्याओं के निराकरण का प्रयास किया जाता है। लॉर्ड ब्राइस ने उचित ही लिखा है कि, “स्टाइलिश स्वशासन प्रजातंत्र का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है।” स्थानीय स्वशासन में पंचायती राज की संस्थाओं— ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर पंचायत तथा नगर निगम आदि को सम्मिलित किया जाता है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था केवल केंद्रीय तथा राज्य सरकारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका विस्तार स्थानीय स्तर पर भी किया गया है।

भारत में स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता अथवा महत्व 

(1) लोकतांत्रिक परंपराओं को स्थापित करने में सहायक 

भारत में स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को स्थापित करने के लिए स्थानीय स्वशासन व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है। उसके माध्यम से शासन सत्ता वास्तविक रूप से जनता के हाथ में चली जाती है। इसकी अतिरिक्त स्थानीय स्वशासन व्यवस्था, स्थानीय निवासियों में लोकतांत्रिक संगठनों के प्रति रुचि उत्पन्न करती है।

(2) भावी नेतृत्व का निर्माण 

स्थानीय स्वशासन की विशेषताएं भारत का भावी नेतृत्व तैयार करती है। यह विधायकों और मंत्रियों को प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान करती है, एससी हुई भारत की ग्रामीण समस्याओं से अवगत होते हैं।

(3) जनता और सरकार की पारस्परिक संबंध 

भारत की जनता स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के माध्यम से शासन के बहुत निकट पहुंच जाती है। इसलिए जनता और सरकार में परस्पर एक दूसरे की घटनाओं को समझने की भावनाएं उत्पन्न होती हैं।

(4) प्रशासकीय शक्तियों का विकेंद्रीकरण

स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं केंद्रीय व राज्य सरकारों को स्थानीय समस्याओं के भार से मुक्त करती है। स्थानीय स्वशासन की कारों के माध्यम से ही शासकीय शक्तियों एवं कार्यों का विकेंद्रीकरण किया जा सकता है। लोकतांत्रिक विद्यानिकरण की इस प्रक्रिया में शासन सत्ता कुछ निर्धारित संस्थानों में निहित होने के स्थान पर, गांव की पंचायत के कार्यकर्ताओं के हाथों में पहुंच जाती है। भारत में इस व्यवस्था से प्रशासन की कार्य कुशलता में पर्याप्त वृद्धि हुई है। 

(5) स्थानीय समाज और राजनीतिक व्यवस्था के बीच की कड़ी

ग्राम पंचायत के कार्यकर्ता और पदाधिकारी स्थानीय समाज और राजनीतिक व्यवस्था के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। इन स्थानीय पदाधिकारी के सहयोग के अभाव में राष्ट्र के निर्माण का कार्य संभव नहीं हो पता है और ना ही सरकारी कर्मचारी अपने दायित्व का समुचित रूप से पालन ही कर सकते हैं।

(6) लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप

लोकतंत्र का आधारभूत तथा मौलिक सिद्धांत यह है कि सत्ता का अधिक से अधिक विकेंद्रीकरण होना चाहिए। स्थानीय स्वशासन की इकाइयां सत्ता के विकेंद्रीकरण का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

(7) नागरिकों को निरंतर जागरूक बनाए रखने में सहायक

स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं लोकतंत्र की प्रयोगशालाएं हैं। यह भारतीय नागरिकों को अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा देती है साथ में नागरिकता के गुणों का विकास करने में भी सहायक होती है।

(8) प्रशासनिक अधिकारियों की जागरूकता

स्थानीय लोगों की शान में भागीदारी के कारण प्रशासन उसे क्षेत्र की आवश्यकताओं की प्रति अधिक सजग तथा संवेदनशील हो जाता है।

(9) नौकरशाही की बुराइयों की समाप्ति

स्थानीय स्वशासन संस्थानों में नागरिकों की प्रत्यक्ष भागीदारी से प्रशासन में नौकरशाही, लालफीताशाही तथा भ्रष्टाचार जैसी बुराइयों के उत्पन्न होने की कम आशंका रहती है। 

निष्कर्ष

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि स्थानीय स्वशासन लोकतंत्र का आधार है। यह लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया पर आधारित है। यदि प्रशासन को जागरूक तथा अधिक कार्यकुशल बना है, तो इसका प्रबंधन एवं संचालन स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप स्थानीय संस्थाओं द्वारा ही संपन्न किया जाना चाहिए।

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