सोवियत संघ के विघटन के परिणाम
इस विघटन के परिणामस्वरूप, भारत जैसे देशों पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे उसने अपनी विदेश नीति को फिर से परिभाषित करना पड़ा। सोवियत संघ से वित्तीय सहायता लगभग समाप्त हो गई, जिससे भारत एक आर्थिक संकट के कगार पर आ गया, जिसने देश को अपनी अर्थव्यवस्था को निजी खिलाड़ियों के लिए खोलने के लिए मजबूर कर दिया।
सोवियत संघ के विघटन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए-
(1) अब विश्व में अमेरिका ही महाशक्ति के रूप में शेष रह गया। अतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर उसका वर्चस्व स्थापित हो गया। विश्व में ऐसी कोई दूसरी या तीसरी शक्ति नहीं रही जो उसे चुनौती दे सके ।
(2) रूस का नेतृत्व बोरिस येल्तसिन ने किया क्योंकि संघ के सभी गणराज्य स्वतन्त्र हो गए। अत : संयुक्त राष्ट्र (U.N.) ने रूस को सुरक्षा परिषद् का सदस्य नियुक्त किया। सोवियत संघ ने तृतीय विश्व के देशों से जो समझौते किए थे उनके निर्वाह का भार सोवियत संघ के स्थान पर रूस पर आ पड़ा। इससे रूस का कार्य-भार अधिक हो गया परन्तु रूस आर्थिक रूप से कमजोर राष्ट्र बन गया। विघटन से उत्पन्न ‘खालीपन’ को भरने की स्थिति में अभी भी रूस बहुत पीछे है।
(3) सोवियत संघ से जितने गणराज्य पृथक हुए थे, उन्होंने स्वतन्त्र तथा सम्प्रभु राष्ट्रों के रूप में अपनी शक्ति में वृद्धि करना प्रारम्भ कर दिया। इन राष्ट्रो ने विश्व के अन्य राष्ट्रों से अपने सम्बन्धों को सुधारा है।
(4) सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप रूस चीन विवाद का भी एक प्रकार से अन्त हो गया क्योंकि साम्यवादी नेतृत्व किसी भी पक्ष में निहित नहीं रहा।
(5) सोवियत संघ से पृथक् होने वाले 12 राष्ट्र ऐसे हैं जिन्होंने स्वतन्त्र राष्ट्रों के ‘राष्ट्रकुल’ का एक संगठन बनाया। परन्तु इस संगठन की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में पृथक् पहचान नहीं बन पायी। तृतीय विश्व के देशों ने भी राष्ट्रकुल के इन देशों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया।
(6) सोवियत संघ के विघटन के कारण भारत ने एक विश्वस्त मित्र खो दिया। भारत रक्षा उपकरणों तथा कलपुर्जों की प्राप्ति सोवियत संघ से ही करता था। इसलिए निकट भविष्य में रूस तथा यूक्रेन जैसे देश भारत को कितनी सहायता दे सकेंगे, यह भविष्य के अंक में छिपा है। परन्तु वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितिय में रूस भारत के साथ सच्चे मित्र की भूमिका का निर्वाह कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पाश्चात्य देश निरन्तर इस बात पर दबाव डालते रहते हैं कि रूप भारत को सैनिक सहायता न दे।
(7) एशिया में वियतनाम तथा कम्पूचिया ( कम्बोडिया ) को सोवियत संघ से सहायता मिलती रहती थी। लेकिन अब उन देशों को काफी संकटों का सामन करना पड़ रहा है।
(8) मध्य-पूर्व के तेल भण्डारों पर संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हो गया है।
(9) तृतीय विश्व के राष्ट्रों में साम्यवादी गतिविधियाँ समाप्तप्राय है।
(10) सोवियत संघ के पतन के फलस्वरूप लैटिन अमेरिका में भी वामपंथी आन्दोलन शान्त पड़ गया। अब इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका का नियन्त्रण स्थापित हो गया है।
(11) सोवियत संघ के पतन का प्रभाव अफ्रीका के वामपंथियों पर भी पड़ा है। वे अपने आन्दोलन को समाप्त करने को विवश हो गए।
(12) सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप अमेरिका के नेतृत्व में जी -8 के देशों का संगठन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल हुआ है।
(13) सोवियत संघ के विघटन के उपरान्त वारसा पैक्ट 1 जुलाई, 1991 को समाप्त हो गया तथा रूस अमरीकी नेतृत्व वाले शक्ति संगठन ‘नाटो’ में सम्मिलित हो गया।
(14) एशिया में वियतनाम तथा कम्बोडिया को सोवियत समर्थक सरकारों को भी पर्याप्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कम्बोडिया में राजकुमार नरोत्तम सिहानुक की सत्ता में वापसी साम्यवादियों के लिए आघात के समान है।
(15) सोवियत संघ के पतन ने एशिया महाद्वीप में जापान के आर्थिक तथा राजनीतिक वर्चस्व में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि कर दी है।
(16) सोवियत संघ के पतन के कारण तृतीय विश्व के राष्ट्रों को गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। तृतीय विश्व के राष्ट्रों को सोवियत संघ से आर्थिक, सैनिक तथा तकनीकी सहायता प्राप्त होती थी। अब रूस तथा यूक्रेन जैसे राज्यों में इतनी क्षमता नहीं है कि वे तृतीय विश्व के राष्ट्रों की भरपूर सहायता कर सकें। अब तृतीय विश्व के राष्ट्रों को अपना आर्थिक विकास करने के लिए अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों पर निर्भर होना पड़ेगा। ये देश तृतीय विश्व के देशो पर आर्थिक सहायता के नाम पर ‘दबाव की कूटनीति’ थोपने का प्रयास कर रहे हैं तथा उन्हें अपने हितों के अनुरूप निर्णय लेने के लिए बाध्य कर रहे हैं। इससे तृतीय विश्व के राष्ट्रों को नव-उपनिवेशवाद के खतरों का सामना करना पड़ सकता है।
(17) सोवियत संघ के पतन के कारण गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।
(18) सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व की अन्य अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक तथा वित्तीय संस्थाओं पर अमेरिका का पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की द्वि-ध्रुवीकरण की स्थिति एकल- ध्रुवीकरण में परिवर्तित की गई है। वर्तमान समय में विश्व के सभी राष्ट्र अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए अमेरिका के सहयोग तथा नेतृत्व की अपेक्षा करते हैं।
एक टिप्पणी भेजें