प्राकृतिक संसाधन
मानव और प्रकृति का गहरा एवं अटूट संबंध है। वह प्रकृति की गोद में उत्पन्न होता है और प्रकृति के तत्वों से ही जीवित रहता है। वस्तुत: तो मानव मात्र के विकास की समस्या आवश्यकता प्रकृति की ही गोद में ही संपन्न होती है। वर्तमान समय में पर्यावरण पर दबाव बढ़ता जा रहा है और मानव प्रकृति से दूर होता जा रहा है। 20 वीं सदी में सभ्य मानव ने प्रकृति के साथ अत्यंत बर्बरता की है। इस प्रकार संसाधनों की यह परिभाषा दी जा सकती है कि प्राकृतिक भण्डार का वह अंश संसाधन है, जिसका विशिष्ट तकनीकी, आर्थिक और भौतिक पर्यावरण की अंतर्क्रियाओं के द्वारा ही बनाए जाते हैं।
प्राकृतिक संसाधन का आशय
प्राकृतिक संसाधन का अर्थ; मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ जैव भौतिकी पर्यावरण के तत्वों को प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। इसके अंतर्गत वायु, भूमि, मृदा, नदियाँ , झीलें, जलप्रपात, सागर, भूमिगत जल, खनिज संसाधन मानव के लिए तीन प्रकार से उपयोगी हैं —
1- एक तो ये विकास के लिए पदार्थ, ऊर्जा और अनुकूल दशाएँ प्रदान करते हैं।
2- इनसे पर्यावरण का निर्माण होता है, जिसमें मनुष्य तथा अन्य जीव रहते हैं। वायु, जल, वन और विविध प्रकार के जीव, मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य हैं।
3- संसाधन विभिन्न प्रकार के होते हैं। इसमें कुछ अनवीनीकरणीय तथा कुछ नवीनीकरणीय हैं।
प्राकृतिक संसाधन ऐसी प्राकृतिक पूंजी होती है जो निवेश की वस्तु में बदलकर बुनियादी पूंजी प्रक्रिया में प्रयोग की जाती है। इनमें शामिल हैं मिट्टी, लकड़ी, तेल, खनिज और अन्य पदार्थ जो कम या ज्यादा धरती से ही लिए जाते हैं। इन बुनियादी संसाधनों को शोधन करके उन्हें शुद्ध रूप में बदला जाता है, ताकि उन्हें सीधे तौर पर उपयोग में लाया जा सके। (जैसे धातुएँ ,रिफाइंड तेल) इन्हें आमतौर पर प्राकृतिक संसाधन गतिविधियाँ माना जाता है, हालांकि जरूरी नहीं है कि बाद में प्राप्त पदार्थ से पहले वाले जैसा ही लगे।
प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण
उनके मूल के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को कुछ इन प्रकारों में बांटा गया है–
(1) अजैविक
अजैविक संसाधन वे संसाधन होते हैं जो गैर-जीवित चीजों और गैर-कार्बनिक पदार्थ से बनते हैं। इस प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों के कुछ उदाहरणों में पानी, वायु, भूमि और धातु जैसे लोहा, तांबा, सोना और चांदी शामिल है।
(2) जैविक
ये वह संसाधन है जो जीवित प्राणियों, पौधों और जानवरों जैसे कार्बनिक पदार्थों से उत्पन्न होते हैं। इस श्रेणी में जीवाश्म ईंधन भी शामिल है क्योंकि वे क्षययुक्त कार्बनिक पदार्थ से प्राप्त होते हैं।
विकास के स्तर के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को निम्नलिखित तरीके से वर्गीकृत किया गया है—
(1) वास्तविक संसाधन
यह संसाधनों का विकास आधुनिक प्रौद्योगिकी और उनकी उपलब्धता, साथ ही उनकी लागत पर निर्भर होता है। वर्तमान समय में इन संसाधनों का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(2) रिजर्व संसाधन
वास्तविक संसाधन का वह भाग जिसे भविष्य में सफलतापूर्वक विकसित और उपयोग में लाया जाए उसे रिजर्व संसाधन कहा जाता है।
(3) संभावित संसाधन
ये संसाधन वे हैं जो कुछ क्षेत्रों में उपलब्ध होते हैं, लेकिन उन्हें वास्तविक उपयोग में लाने से पहले उनमें कुछ सुधार करने की आवश्यकता होती है।
(4) स्टॉक संसाधन
ये वह संसाधन हैं जिन पर सर्वेक्षण तो किया गया है, लेकिन प्रौद्योगिकी की कमी के कारण अभी तक उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है।
प्राकृतिक संसाधनों का पुनः उपयोग की दृष्टि से इस प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है।
1— नवीनीकरणीय संसाधन
2— अनवीनीकरणीय संसाधन
कुछ विद्वान इन दोनों वर्गीकरणों की अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अंतर्गत प्राकृतिक सुरमई स्थलों को भी सम्मिलित करते हैं।
निष्कर्ष
प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद, पृथ्वी पर उपलब्ध पदार्थों और ऊर्जा के विशाल भंडार में से केवल एक छोटा हिस्सा ही मानव के लिए उपयोगी होता है। इसका कारण है कि बहुत से संसाधन अगम्य होते हैं या ऐसे रूप में होते हैं जिनका मानव उपयोग नहीं कर सकता। प्रकृति के भंडार का केवल वही भाग संसाधन बनता है, जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोगी होता है।
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