प्रदूषण या ‘प्रदूषण के तत्व’
प्रदूषण या ‘प्रदूषण के तत्व’ मनुष्य द्वारा उत्पन्न हुए अवांछित बाह्य पदार्थ होते हैं जो कि प्राकृतिक संसाधनों जैसे वायु, जल, वातावरण एवं भूमि आदि को सम्मिलित या एकल रूप से प्रदूषित करते हैं। प्रदूषण की रासायनिक प्रकृति, सांद्रता और लंबी आयु अनेक वर्षों से पारिस्थितिकी को निरंतर असंतुलित कर रही है। प्रदूषण ध्वनि, कीटनाशक, कार्बनिक मिश्रण, शाकनाशी, जहरीली गैस, कवकनाशी, रेडियोधर्मी पदार्थ हो सकते हैं।
प्रदूषण की परिभाषा
जब मानव निश्चित सीमा से अधिक प्राकृतिक पर्यावरण में हस्तक्षेप करता है, तो यह पर्यावरण को हानि पहुंचाता है। ऐसा करने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है और जीवन के समर्थन में संघर्ष होता है। यह न केवल प्राकृतिक जीवन के लिए हानिकारक होता है, बल्कि इससे मानव समुदायों को भी प्रभावित किया जाता है।
राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान परिषद के अनुसार
"मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादन के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं। “प्रदूषण हमारे चारों ओर स्थित वायु, भूमि और जल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में अनावश्यक परिवर्तन है, जो मानव जीवन की दशाओं और सांस्कृतिक संपदा पर हानिकारक प्रभाव डालता है।”
संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्री विज्ञान समिति की पर्यावरण प्रदूषण उप समिति के भी 1965 के प्रतिवेदन में प्रदूषण को निम्न रूपों में परिभाषित किया है— “प्रदूषण मानवीय क्रियाकलापों का ऐसा उत्पाद है जिसमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ऊर्जा, प्रतिरूपों, विकिरण स्तरों तथा जीवों के भौतिक और रासायनिक संगठनों का विपरीत प्रभाव डाला है, मानव के व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों में तेजी से बढ़ते हुए, हमारे प्राकृतिक संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप, हमें जल संसाधनों, जलापूर्ति, कृषि, जैविक उत्पादों, भौतिक संपदा, मनोरंजन, और प्राकृतिक सुंदरता की कमी महसूस हो रही है।”
वैज्ञानिकों के अनुसार विगत पाँच दशकों में पृथ्वी के औसत तापक्रम में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। यदि 3.6 डिग्री सेल्सियस तापक्रम की और वृद्धि होती है तो अंटार्कटिक और आर्कटिक के विशाल हिमखण्डों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, परिणामस्वरुप समुद्र के जलस्तर में 10 इंच से लेकर 5 फुट तक की वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में मुंबई, कोलकाता, मद्रास, विशाखापट्टनम, कोचीन,तिरुवंतपुरम और पणजी जैसे शहरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
प्रदूषण के कारण, प्रभाव और नियंत्रण के उपाय
पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख कारण अदूरदर्शित,भावी परिणामों के प्रति लापरवाही माना जा सकता है। जिसके कारण यह गंभीर समस्या और भी अधिक घातक हो जाती है और हमारा यही नकारात्मक दृष्टिकोण समस्या को सुलझाने में नियंत्रण बाघा उत्पन्न करता है। प्रोफेसर राजेंद्र सिंह और डॉक्टर तेज बहादुर सिंह के संयुक्त अध्ययन के अनुसार प्रदूषण का वर्गीकरण निम्नलिखित है—
1- प्रकृति जन्य प्रदूषण
2- मानव जन्य प्रदूषण
1- प्रकृति जन्य प्रदूषण
प्रकृति जन्य प्रदूषण के अंतर्गत में प्रक्रियाएँ शामिल है जो प्रकृति से उत्पन्न होकर भी किसी प्रकार प्राकृतिक प्रदूषण उत्पन्न करने में सहायक होती है पर वस्तुत: प्रकृति द्वारा उत्पन्न प्रदूषण अधिक घातक नहीं होता जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, प्राकृतिक आपदाएँ, भूमि क्षरण इत्आदि।
2- मानव जन्य प्रदूषण
मानव जन्य प्रदूषण ही वास्तव में प्रदूषण का मुख्य कारण होता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सभी प्रदूषण मानव निर्मित होते हैं जैसे- ध्वनि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, जल प्रदूषण एवं सांस्कृतिक प्रदूषण।
प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
हम दिनों दिन पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरुप भविष्य में घातक परिणाम हो सकते हैं। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होकर अगर ध्यान ना दें तो जन–जीवन के लिए परिणाम घातक हो सकते हैं। इसके लिए निम्न कार्य किए जाने आवश्यक हैं।
वृक्षारोपण कार्यक्रम: वृक्षारोपण कार्यक्रम का युद्धस्तर पर चलाना एक महत्वपूर्ण कदम है जो हमें पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से समुदाय का सहयोग प्राप्त करने में मदद करता है। यह कार्यक्रम परती भूमि, पहाड़ी क्षेत्र और ढलान क्षेत्र में पौधे लगाने का उत्तेजन देता है, जिससे हम प्राकृतिक संतुलन को बनाए रख सकते हैं।
प्रयोग की वस्तु दोबारा इस्तेमाल: डिस्पोजल, ग्लास, नैपकिन, रेजर आदि का उपयोग दोबारा किया जाना।
भूजल संबंधित उपयोगिता: नगर विकास, औद्योगीकरण एवं शहरी विकास की चलते पिछले कुछ समय से नगर में भूजल स्रोतों का तेजी से दोहन हुआ। एक और जहाँ उपलब्ध भूजल स्तर में गिरावट आई है, वहीं उसमें गुणवत्ता की दृष्टि से भी अनेक हानिकारक अवयवों की मात्रा बड़ी है। शहर की अधिकता क्षेत्रों में भूजल के में विभिन्न अवयवों की मात्रा, मानक से अधिक देखी गई है। 35.5% प्रतिशत नमूनों में कुल घुलनशील पदार्थ की मात्रा से अधिक देखी गई। इसकी मात्रा 900 मिलीग्राम प्रति लीटर अधिक देखी गई। इसमें 23.5 प्रतिशत को क्लोराइड की मात्रा 250मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक थी।
पालीथीन का बहिष्कार: वातावरण संरक्षण को समझाने का एक उत्कृष्ट तरीका है पालीथीन के प्रति बहिष्कार का प्रचार करना। हमें चाहिए कि हम पालीथीन का प्रयोग कम करें और इसके उत्पन्न खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करें। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जिससे हम पर्यावरण की संरक्षा में अपना योगदान दे सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं।
कूड़ा—कचरा निस्तारण: कूड़ा कचरा एक जगह पर एकत्र करना। सब्जी, छिलके, अवशेष, सडी गली चीजों को एक जगह एकत्र करके वानस्पतिक खाद तैयार करना।
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