मंत्रिपरिषद तथा लोकसभा के संबंधों को स्पष्ट कीजिए

 मंत्रीपरिषद तथा लोकसभा का संबंध

संविधान के अनुसार, मंत्रीपरिषद् तथा लोकसभा परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। मंत्रीपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। सामूहिक उत्तरदायित्व का तात्पर्य है कि एक मंत्री की गलती सभी मंत्रियों की गलती मानी जाती है, जिसके परिणामस्वरुप जब एक मंत्री के त्यागपत्र देने की बात आती है तो संपूर्ण मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना पड़ता है। इस प्रकार मंत्री एक दूसरे से परस्पर संबंद्ध रहते हैं। लोकसभा प्रश्नों, पूरक प्रश्नों,काम रोको, स्थगन तथा निंदा प्रस्तावों द्वारा मंत्रीपरिषद् पर नियंत्रण रखती है तथा इन आधारों पर मंत्री परिषद् को‌ पदच्युत कर सकती है—

(1) अविश्वास प्रस्ताव द्वारा

लोकसभा के सदस्य मंत्रीपरिषद् से असंतुष्ट होकर सदन के सामने अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर मंत्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना होता है।

(2) विधेयक की अस्वीकृति

मंत्रीपरिषद् द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को यदि लोकसभा स्वीकृत न करे तो ऐसी दशा में भी मंत्रीपरिषद् का त्यागपत्र उसकी नैतिक दायित्व बन जाता है, क्योंकि यह इस बात का सूचक होता है कि सदन में मंत्रिपरिषद् अर्थात बहुमत दल ने अपना विश्वास खो दिया है।

(3) किसी मंत्री के प्रति विश्वास

यदि लोकसभा किसी मंत्री -विशेष के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो भी सामूहिक रूप से मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

(4) कटौती का प्रस्ताव

 जिस समय लोकसभा में वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है, उस समय यदि लोकसभा बजट में कटौती का प्रस्ताव पारित कर दे या किसी माँग को अस्वीकृत कर दे तो भी मंत्रिपरिषद् को अपना त्यागपत्र देने के लिए विवश होना पड़ता है।

(5) गैर–सरकारी प्रस्ताव

यदि लोकसभा किसी ऐसे गैर–सरकारी प्रस्ताव को स्वीकृत कर दे, जिसका मंत्रिमंडल विरोध कर रहा हो, तो इस स्थिति में मंत्रिमंडल को अपना पद त्यागना होगा।

निष्कर्ष 

 सैद्धांतिक दृष्टि से तो मंत्रिमंडल पर संसद द्वारा नियंत्रण रखा जाता है, किंतु व्यवहार में दलीय अनुशासन के कारण मंत्रिमंडल ही संसद पर नियंत्रण रखता है। मंत्रिमंडल के परामर्श पर राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है। 

मंत्रीपरिषद तथा लोकसभा में कुछ और महत्वपूर्ण संबंध

मंत्री परिषद और लोकसभा, भारतीय संविधान के दो विभाजनों हैं जो देश की सरकार और विधायिका के कार्यों को संचालित करते हैं। ये दोनों ही संगठन भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनके कार्यक्षेत्र, प्राधिकरण, और कार्यप्रणाली में अंतर होता है।

मंत्री परिषद (Council of Ministers)

1- मंत्री परिषद भारत की केंद्रीय सरकार का मुख्य निर्णायक संगठन है।

2- इसमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व में विभिन्न विभागों के मंत्रियों से मिलकर बना होता है।

3- मंत्रिपरिषद लोकसभा के सदस्यों के बीच से चुने जाते हैं, और ये निर्वाचित संसदीय सदस्य होते हैं।

4- ये मंत्रियों के रूप में विभिन्न मंत्रालयों का प्रमुख होते हैं और सरकारी नीतियों को प्रदान करते हैं।

5- मंत्री परिषद की देखरेख में सभी सरकारी नीतियों का अनुमोदन होता है और वहाँ नीतियों की धारा-प्रवाहितता और कार्यवाही को निर्देशित किया जाता है।

लोकसभा (House of the People)

1- लोकसभा भारत की संसद का एक प्रमुख सदन है और यह संसद का अधिकारीकरण है।

2- इसमें निर्वाचित सदस्यों का समूह होता है, जिन्हें सांसद कहा जाता है।

3- यह सदन जनता के प्रतिनिधित्व करता है और विभिन्न विधायकों के माध्यम से लोकतंत्र के लिए कानून बनाने और संशोधित करने की प्रक्रिया में भाग लेता है।

4- लोकसभा की सदस्यों का निर्वाचन सीधे जनता द्वारा होता है, और वे अपने निर्वाचित नेताओं के माध्यम से अपनी आवाज को सुनाते हैं।

5- लोकसभा में पारित किए गए कानूनों को स्वीकृति देने का प्रमुख अधिकार होता है और यहां प्रधानमंत्री की चुनाव की प्रक्रिया भी होती है।

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