लोकसभा की शक्तियां एवं कार्य
संसद का प्रमुख कार्य विधान पारित करना है। विधेयक के विधान बनने से पहले इसे दोनों सदनों द्वारा मंजूरी देनी होती है, और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त करनी होती है। संसद भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत उल्लिखित विषयों पर विधान बना सकता है।
लोकसभा के मुख्य शक्तियां एवं कार्य
(1) वित्तीय अधिकार
लोकसभा का वित्त विधेयकों पर पूर्ण अधिकार है। वित्त विधेयक राज्यसभा को केवल सिफारिश करने के लिए ही जाते हैं, जिन पर स्वीकृति प्रदान करने के लिए राज्यसभा को 14 दिन का समय दिया जाता है। यदि या राज्यसभा 14 दिन तक विधेयक को अपनी सिफारिश के साथ वापस नहीं भेजती है तो विधेयक पारित मान लिया जाता है। इस प्रकार राज्यसभा वित्त विधेयक को अधिक से अधिक 14 दिन तक रोक सकती है अर्थात पारित होने में 14 दिन का विलंब कर सकती है। वित्त विधेयक पहले लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं, राज्यसभा में नहीं। कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसका निर्णय करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को होता है।
(2) विधायी अधिकार
साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है, परंतु किसी भी विधेयक के कानून बनने से पूर्व उसे लोकसभा द्वारा पारित किया जाना अनिवार्य है। साधारणतया महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं। यदि कोई विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया हो तो उसका लोकसभा में पारित होना अति आवश्यक है। यदि विधेयक के संबंध में दोनों सदनों में मतभेद हो और उसे पारस्परिक विचार विमर्श द्वारा दूर ना किया जा सके तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। संयुक्त बैठक का अध्यक्ष लोकसभा का अध्यक्ष होता है। लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों की संख्या के दोगुनी से अधिक होती है, अतः विधेयकों को पारित करने में लोकसभा की स्थिति राज्यसभा की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।
(3) कार्यपालिका पर नियंत्रण
केंद्रीय मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से लोकसभा में के प्रति उत्तरदायी है, उसका विश्वास खोने पर मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना पड़ता है। यदि लोकसभा मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर देती है, तो मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना पड़ता है। लोकसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न और पूरक–प्रश्न पूछ सकते हैं तथा स्थगन–प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं। सदस्यों को सरकार के विभिन्न विभागों की आलोचना करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है। इनके अतिरिक्त लोकसभा सरकारी विधेयक अथवा बजट को अस्वीकार करके अथवा मंत्रियों के वेतन में कटौती करके मंत्रिमंडल पर नियंत्रण रखती है।
(4) निर्वाचन संबंधी अधिकार
लोकसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही अपने अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का चुनाव तो करते ही हैं, साथ–साथ लोकसभा के सदस्यों का राष्ट्रपति के निर्वाचन में भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। लोकसभा के सदस्य उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भी भाग लेते हैं।
(5) संविधान संशोधन संबंधी अधिकार
लोकसभा राज्यसभा के साथ संविधान के संशोधन में भी भाग लेती है। संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया से संबंधित विधेयक लोकसभा तथा राज्यसभा के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। संशोधन के प्रस्ताव को पारित होने के लिए यह आवश्यक है कि उसे संसद के दोनों सदनों अथवा अलग-अलग सदनों की संपूर्ण सदस्य संख्या के बहुमत एवं उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित होना चाहिए। यदि संविधान संशोधन विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद हो जाता है तो संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था नहीं है।
(6) जाँच संबंधी अधिकार
राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही प्रस्तुत कर सकती हैं। यदि राज्यसभा इन संदर्भ में दोषारोपण करती है तो उसकी जाँच लोकसभा करती है। यदि राज्यसभा उप-राष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव पारित करें तो उस पर लोकसभा की स्वीकृति भी आवश्यक है किंतु लोकसभा उप-राष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव पारित नहीं कर सकती है। यदि किसी संकटकाल में विभिन्न घोषणाओं को जारी रखना आवश्यक ही हो तो उन पर लोकसभा की स्वीकृति आवश्यक है। यदि उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को दुर्व्यवहार अथवा असामर्थय के आधार पर हटाने का प्रस्ताव हो तो उसके लिए लोकसभा तथा राज्यसभा का प्रस्ताव 2/3 बहुमत से स्वीकार होना आवश्यक है।
(7) जनता की शिकायतों का निवारण
लोकसभा के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं और वे ही सामान्य जनता की वास्तविक कठिनाइयों का सही ज्ञान रखते हैं। वे ही उनकी शिकायतें सरकार तक पहुंचाते हैं और उनको दूर करने के लिए प्रयत्न करते हैं।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि लोकसभा का भारतीय संसद में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है, उसकी शक्तियाँ अद्वितीय तथा अतुलनीय है।
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