हिंदुओं में विवाह-विच्छेद क्या है? विवाह विच्छेद के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क

हिंदुओं में विवाह-विच्छेद

हिंदू समाज में विवाह विच्छेद की समस्या प्राचीन काल से ही चली आ रही है। भारतीय संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति से मिलने से तो इस समस्या को प्रोत्साहन मिला ही है, साथ ही साथ हमें यह भी देखना पड़ेगा की विवाह विच्छेद की आवश्यकता क्यों पड़ी। हिंदू समाज में यह समस्या प्रत्येक युग में विद्यमान रही है। ‘मनुस्मृति’ के अध्याय 9 के श्लोक 80 में स्पष्ट रूप से लिखा है—

मद्यपासाधुवृत्ता च प्रतिकूला च या भवेत्। 

व्याधिता वाधिवेत्तव्या हिंस्रार्थघ्नी च सर्वदा।

तात्पर्य यह है कि यदि कोई स्त्री शराब पीती है, चाल-चलन में बुरी है, हमेशा पीड़ित रहती है तथा अपने पति की आज्ञा का पालन नहीं करती और धन का सर्वनाश करती है तो मनुष्य को उसे स्त्री के जीवित रहते हुए भी दूसरी शादी कर लेनी चाहिए। इसलिए विवाह विच्छेद भारत में मान्य रहा है।

विवाह विच्छेद के पक्ष में तर्क

कुछ लोग विभाग विच्छेद को उचित मानते हैं। जो लोग विवाह विच्छेद को उचित मानते हैं उनके द्वारा विवाह विच्छेद के पक्ष में दिए गए तर्क —

(1) दुखी वैवाहिक जीवन को सुख में बनाने के लिए

यदि दांपत्य जीवन सुखी ना हो और साथ ही विवाह विच्छेद का भी प्रावधान न हो, तो जीवन कितना दुखी और कष्टदायक हो सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अतः दुखी वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए विवाह विच्छेद अनिवार्य है।

(2) स्त्रियों की सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए

विवाह विच्छेद स्त्रियों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठने के लिए अनिवार्य है क्योंकि इससे पति का एक अधिकार समाप्त हो जाता है और यदि पति अत्याचार करता है तो पत्नी विवाह विच्छेद कर सकती है।

(3) परिवर्तित सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूलता के लिए

आज समाज बड़ी तीव्रता से परिवर्तित होता जा रहा है और परिवर्तित सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन के लिए विवाह विच्छेद का प्रावधान होना आवश्यक है। यदि पति-पत्नी की किसी कारण व सदैव अनुबंध रहती है और सदा एक दूसरे से लड़ते हैं तो इस स्थिति में विवाह विच्छेद ही सर्वाधिक उपयुक्त उपाय है।

(4) समानता के लिए उपयुक्त 

विवाह विच्छेद स्त्री और पुरुष को समान अधिकार देता है कि यदि दूसरा पक्ष कुछ शर्ते पूरी न कर रहा हो तो विवाह विच्छेद के लिए प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है। इसे सामान्य के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप मिलता है।

विवाह विच्छेद के विपक्ष में तर्क 

सामान्यतया विवाह विच्छेद के विपक्ष में कुछ निम्नलिखित करके दिए जा सकते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं— 

(1) संस्कृति के विरुद्ध

विवाह विच्छेद हमारी प्राचीन संस्कृति के अनुकूल नहीं है क्योंकि विवाह संपन्न होने पर वर और कन्या का संबंध भारतीय संस्कृति के अनुसार जन्म जन्मांतर का मिलन माना जाता है। यह अटूट बंधन है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता।

(2) आर्थिक अव्यवहारिकता

विवाह विच्छेद आर्थिक दृष्टि से अव्यवहारिक है क्योंकि अशिक्षित, परीतयकताओं या तलाकशुदा महिलाओं का पुनर्विवाह कठिन हो जाता है। इसलिए उनके लिए अपना जीवन काटना भारी पड़ जाता है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।

(3) बच्चों की समस्या

विवाह विच्छेद हो जाने से कभी-कभी परीत्यक्ता के बच्चों के लालन-पालन की भी समस्या खड़ी हो जाती है क्योंकि आज के युग में अपने बच्चों को देखने का प्रश्न ही बड़ा कठिन है। इससे बच्चों की और अधिक ध्यान नहीं दिया जाता तथा उनके बाल अपराधी बन जाने के आशंका बनी रहती है।

(4) पारिवारिक संगठन के विरुद्ध

पारिवारिक संगठन की दृष्टिकोण से भी विवाह विच्छेद उचित नहीं है क्योंकि विवाह विच्छेद का अधिकार मिल जाने पर पत्नी अपने संपत्ति संबंधी अधिकार की मांग करने लगती है, जिससे पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा होने पर संगठन का भी बंटवारा हो जाता है अथवा संगठन कमजोर पड़ जाता है।

निष्कर्ष

अंत में हिंदू समाज की वैवाहिक समस्याओं को संक्षेप में समझ लेने के बाद इस निष्कर्ष पर  पहुंच जा सकता है की युग के परिवर्तन के साथ-साथ बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह, दहेज प्रथा और विवाह विच्छेद की रूढ़िवादी समस्याओं में भी परिवर्तन लाने का प्रयास किया गया है।

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