बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए गए उपाय
अशोक का विश्वहित का कार्य ‘धर्म विजय’ कहलाता है। अशोक ने अपनी धर्म विजय के लिए या विश्व में अपने धर्म के प्रचार - प्रसार के लिए निम्नलिखित कार्य किए-
बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए किए गए प्रमुख उपाय
(1) धर्म विभाग की स्थापना करके
अशोक ने एक धर्म विभाग की स्थापना की जिसके मुख्य अधिकारी धर्म महामात्र कहलाते थे। इन अधिकारियों का उद्देश्य जनता का भौतिक एवं नैतिक कल्याण करना तथा बौद्ध धर्म का प्रचार करना था।
(2) धर्म यात्रा-अशोक ने आमोद करके
प्रमोद यात्रा के स्थान पर धर्म - यात्रा का श्रीगणेश किया। पहले लोग आमोद - प्रमोद के लिए जाते और शिकार द्वारा आमोद प्रमोद किया करते थे। अशोक ने स्वयं शिकार खेलना बंद कर दिया और राज्य की ओर से धर्म यात्रा की प्रथा चलाई। धर्म यात्रा में ब्राह्मणों तथा श्रमणों का दर्शन, दान, वृद्धों का दर्शन तथा उनके लिए स्वर्ण दान, धर्म का अनुशासन और धर्म की जिज्ञासा सम्मिलित थी। अशोक एवं उसके मुख्य अधिकारीगण धार्मिक स्थानों की यात्रा करने जाते थे।
(3) धर्म मंगल करके
अशोक ने जन्म, विवाह आदि अवसरों पर होने वाले अनुष्ठानों को निरर्थक घोषित कर जनता को नैतिक आचरणों द्वारा धर्म पालन की ओर प्रोत्साहित किया। अशोक का विचार था कि वास्तविक मंगल नैतिक आचरण एवं आन्तरिक गुणों में निहित है।
(4) धर्म श्रावण करके
धर्म श्रावण के अन्तर्गत धार्मिक विषयों के ऊपर भाषण तथा कथाएँ होती थीं। अशोक ने इसकी बड़ी सुन्दर व्यवस्था की थी। राजुक, प्रादेशिक, युक्त आदि अधिकारी इस कार्य में लगे रहते थे।
(5) धार्मिक प्रदर्शन करके
अशोक ने लोगों को धर्म की ओर आकर्षित करने के लिए स्वर्ग के अनेक प्रदर्शनों या दृश्यों को रूपक के रूप में जनता के सम्मुख रखा। उसने मनुष्यों की विमान प्रदर्शन , हाथी - प्रदर्शन तथा अग्नि स्कन्ध आदि दिव्य रूपों का दर्शन कराया।
(6) धर्म लिपि करके
अशोक ने धर्म के सिद्धान्तों और नियमों को पर्वतीय चट्टानों, प्रस्तर स्तम्भों और गुफाओं में लिखकर सभी के लिए उन्हें सुलभ और स्थायी बना दिया।
(7) बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित करना
अशोक ने बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया। इसका फल यह हुआ कि अशोक की प्रजा भी बौद्ध धर्म स्वीकार करने को प्रेरित हुई। अशोक के उत्तराधिकारियों ने भी इसे अपना पैतृक समझकर स्वीकार किया, जिससे यह धर्म बहुत दिनों तक राजधर्म बना रहा, लेकिन अशोक ने अन्य धर्मावलम्बियों को बौद्ध धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य कभी नहीं किया।
(8) लोकहित कार्य करके
अशोक ने इन नैतिक सिद्धान्तों के प्रचार के साथ -ही - साथ जनकल्याण के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य किए। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए सार्वजनिक पथों का निर्माण कराया, उसके किनारे छायादार वृक्ष लगवाए, कुएँ खुदवाए, विश्रामगृह बनवाये व मनुष्य और पशुओं के लिए औषधालय और चिकित्सालय स्थापित किए।
(9) मठों का निर्माण करके
अशोक ने अपने राज्य के विभिन्न भागों में मठों का निर्माण कराया और पुराने मठों की आर्थिक सहायता की। इन मठों में बहुत से भिक्षु और भिक्षुणियाँ निवास करते थे।
(10) बौद्ध संगीति का आयोजन
अशोक ने पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन किया। इस संगीती में बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का संशोधन किया गया और बौद्ध संघ में जो दोष आ गए थे उन्हें दूर करने का प्रयास किया गया। इससे धर्म - प्रचार में जो शिथिलता आ गई थी, वह दूर हुई और धर्म - प्रचार का कार्य अधिक वेग से होने लगा।
(11) दान करके
राजधानी और अन्य सभी प्रमुख स्थानों पर रागियों, भूखों व दीनदुखियों आदि को राज्य की ओर से दान दिया जाता था। वह स्वयं तो दान देता ही था, साथ ही अपने भाई - बन्धुओं व सम्बन्धियों से भी दान दिलवाता था। सप्तम स्तंभ लेख से स्पष्ट होता है कि उसने दान विभाग की देख-रेख के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति की जो दान का पूरा विवरण रखते थे। इस लेख से हमें अशोक के दान का उद्देश्य भी स्पष्ट होता है । इस लेख में यह निर्देश है कि, “मैंने यह इस उद्देश्य से किया है, कि लोक - धम्म का यथानुसार सभी पालन करें।"
(12) निरीक्षकों की नियुक्ति करके
अशोक ने कुछ निरीक्षक नियुक्त किये, जिनका कार्य यह देखना था कि शिलाओं, स्तम्भों और गुफाओं पर अंकित शिलाओ और आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं। वे यह भी देखते थे कि धर्म - प्रचार का कार्य सुचारू रूप से हो रहा है या नहीं।
(13) धर्मानुशासन करके
अशोक ने अपने धर्म के अनुशासन को प्रकाशित करवाया तथा उसके प्रचार के लिए पदाधिकारी नियुक्त किए। उसने राजुको, प्रदेशिकों, युक्तों आदि पदाधिकारियों को आज्ञा दी कि वे प्रति पाँचवें वर्ष राज्य में दौरा किया करे तथा जनता में धर्मोपदेश किया करे। इसके फलस्वरूप भी बौद्ध धर्म की पर्याप्त उन्नति हुई।
(14) पालि भाषा में बौद्ध ग्रन्थों के लिखने की व्यवस्था
अशोक ने जनभाषा पालि में बौद्ध ग्रन्थों को लिखवाकर बौद्ध धर्म के प्रचार में काफी योग दिया।
(15) विदेशों में बौद्ध धर्म का प्रचार करके
अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रसार किया और विभिन्न भागों में प्रचारकों को भेजा। उन्होंने मज्सन्तिक को कश्मीर और गान्धार, महारक्षित को यूनान, मज्झिम को हिमालय प्रदेश, धर्मरक्षित को महाराष्ट्र, महादेव को मैसूर, रक्षित को वाराणसी और उत्तरी कनाडा, सोना और उत्तरा को पीगू, और राजकुमार महेन्द्र और संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मिस्र, सीरिया, मकदूनिया, और एपीरस की ओर भी प्रचारकों को भेजा। आज विदेशों में करोड़ों लोगों के बौद्ध अनुयायी होने का श्रेय काफी सीमा तक अशोक को ही जाता है।
एक टिप्पणी भेजें