भारत के पहले तीन आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के कारण तथा भूमिका
भारत में सर्वप्रथम सन 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। अपने प्रारंभिक रूप में यह नव शिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का हित समूह भर थी। लेकिन तीसरी सदी में इसने जन आंदोलन का रूप धारण कर लिया और इसने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया। स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस का वर्चस्व लगातार तीन दशकों तक कायम रहा।
प्रथम तीन आम चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात प्रथम तीन चावन में कांग्रेस के प्रभुत्व के प्रमुख कारण कुछ निम्नलिखित इस प्रकार थे—
(1) कांग्रेस पार्टी ने समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व प्राप्त किया था
कांग्रेस पार्टी को उसके प्रभुत्व का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि इसमें देश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व प्राप्त था। कांग्रेस पार्टी एक महान मंच थी जहाँ उदारवादी, गरीबों के पक्षधर, दक्षिणपंथी, साम्यवादी और मध्यमार्गी नेताओं का समूह एकजुट था, जिसके कारण लोग इसी पार्टी को समर्थन देते थे।
(2) कांग्रेस का चामत्कारिक नेतृत्व
कांग्रेस में पंडित जवाहरलाल नेहरू एक उत्कृष्ट नेता थे जो भारतीय राजनीति में करिश्माई और लोकप्रिय थे। नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान की अगुआई की और पूरे देश का दौरा किया। वे किसी भी प्रतिद्वंद्वी से चुनावी दौड़ में बहुत आगे रहे। इस परिणामस्वरूप, कांग्रेस को तीनों प्रथम आम चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली।
(3) कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश राजनीतिक दलों को उत्पन्न किया
स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रारंभिक वर्षों में जितने भी विरोधी राजनीतिक दल थे उनमें से अधिकांश राजनीतिक दल कांग्रेस से ही निकले जैसे— सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनसंघ, रामराज्य परिषद तथा हिंदू महासभा आदि।
(4) राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चमत्कारिक नेतृत्व में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रही। इसलिए कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रा संग्राम की विरासत प्राप्त थी। तब के दिनों में यही एकमात्र पार्टी थी जिसका संगठन संपूर्ण भारत में था। इसका लाभ चुनावों में कांग्रेस पार्टी को मिला।
(5) गुटों में तालमेल और सहनशीलता
कांग्रेस के गठबंधनी स्वभाव ने अर्से तक इसे असाधारण ताकत दी। गठबंधन के कारण कांग्रेस सर्व समावेशी स्वभाव और सुलह समझौते के द्वारा गुटों के संतुलन कायम सहनशील थी और इस स्वभाव से विभिन्न गुटों को बढ़ावा भी मिला। इसलिए विभिन्न और विचारधाराओं की नुमाइंदगी कर रहे नेता कांग्रेस के भीतर ही सामने आती थी। विपक्षी भटियां कांग्रेस के प्रभावित करने की कोशिश करती थी। इस तरह भी हशिये पर ही रहेगा नीतियों और फसलों को अप्रत्यक्ष रीति से प्रभावित कर पाते थे। अतः हो विपक्ष कांग्रेस का कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं कर सका। फलत: कांग्रेस को प्रथम तीन चुनाव तक अभूतपूर्व सफलता मिलती रही।
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