केंद्र व राज्यों के मध्य वित्तीय संबंध

केंद्र व राज्यों के मध्य वित्तीय संबंध

संविधान में केंद्र तथा राज्यों के मध्य आय के साधनों का विभाजन कर दिया गया है, किंतु कुछ ऐसे साधन भी हैं जो राज्य सरकार के अंतर्गत है, परंतु उनसे प्राप्त आय का उपयोग केंद्रीय सरकार करती है तथा कुछ साधनों के संबंध में स्थिति इसके विपरीत है। संक्षेप में, वित्तीय क्षेत्र में दोनों के संबंधों का अध्ययन निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है—

(1) करों की वसूली

प्रथम, कुछ कर ऐसे होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार लगती है तथा केंद्र सरकार द्वारा ही वे वसूल भी किए जाते हैं परंतु उनकी संपूर्ण धनराशि राज्यों में विभाजित कर दी जाती है। इस प्रकार के करों में उत्तराधिकारी कर, संपत्ति कर तथा समाचार पत्र कर आदि आते हैं। द्वितीय, इन करों को केंद्र निर्धारित करता है, किंतु राज्य एकत्रित करते हैं और उनका उपभोग स्वयं करते हैं। स्टाम्प शुल्क इसी प्रकार का कर है। इन दोनों प्रकार के करों के अतिरिक्त कुछ कर ऐसे भी होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार राज्यों में लगाती व वसूल करती है। परंतु इन्हें संघ और राज्यों में विभाजित कर दिया जाता है। इस प्रकार की कर हैं— क्रय–विक्रय कर, कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य संपत्ति कर आदि।

(2) संघ द्वारा राज्यों को सहायता अनुदान

 करों के अतिरिक्त केंद्र सरकार राज्यों को सहायता अनुदान भी देती है। संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार, संघीय सरकार प्रतिवर्ष राज्यों को अनुदान देती है। आर्थिक अनुदान की व्यवस्था का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विकास के क्षेत्र में उत्पन्न असंतुलन को दूर करना तथा लोक–कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में सहायता देना है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान देने के लिए भी वित्तीय सहायता की व्यवस्था की गई है—

1– असम को उसके राज्य–क्षेत्र में स्थित जनजातियों की उन्नति तथा उनके प्रशासनिक स्तर को ऊँचा उठाने में खर्च की गई धनराशि को केंद्र अनुदान के रूप में प्रदान करता है।

2- पीड़ितों की सहायतार्थ भी केंद्र सरकार राज्यों को अनुदान दे सकती है।

3- सांसद (केंद्र) राज्यों की आपातकालीन स्थिति का सामना करने के लिए अनुदान दे सकती है तथा वित्तीय संकटकाल की घोषणा होने पर राज्य के समस्त वित्त संबंधी अधिकार केंद्रीय सरकार को प्राप्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में केंद्र वित्तीय मामलों में राज्यों को आदेश दे सकता है तथा राज्यों के अधिकारों के वेतन कम कर सकता है।

वित्तीय आयोग की व्यवस्था 

केंद्र तथा राज्यों के बीच आम के विभाजन को निश्चित करने के लिए साधारणतः प्रत्येक 5 वर्ष पश्चात एक वित्त आयोग की नियुक्ति की जाती है।

योजना आयोग 

एक संवैधानेतर तार आर्थिक संस्था के रूप में योजना आयोग की स्थापना की गई है जो राज्यों के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श के उपरांत उनका आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराता है। योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।

निष्कर्ष 

इन सभी उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्थिक क्षेत्र में भी राज्य सरकारों को केंद्र सरकार पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है, परंतु दोनों सरकार है वास्तव में प्रत्येक क्षेत्र में एक सीमा तक एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। अमर नंदी के शब्दों में, “संघीय सरकार तथा राज्य सरकारी दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में संप्रभु हैं।” इसकी विपरीत डॉक्टर एम० पी० शर्मा का कथन है, “राज्यों के सिर पर डिमाक्लीज की तलवार लटक रही है। उनसे यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह आत्मविश्वास के साथ संघ शासन के विरुद्ध अपने अधिकारों पर आरुढ रह सके।” वस्तुत: हमारे संविधान द्वारा विधायी, प्रशासकीय तथा वित्तीय क्षेत्र में संघ सरकार को इकाई राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। केंद्र को अधिक सशक्त बनाकर हम राष्ट्र की एकता व खड़का के समक्ष आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना कर सकते हैं।

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