दहेज प्रथा
हिंदू समाज को जिस प्रथा से अत्यधिक क्षति उठानी पड़ती है, वह है दहेज प्रथा। यह भारतीय समाज में पाया जाने वाला एक ऐसा अभिशाप है जो आज भी सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद एक प्रमुख समस्या बना हुआ है। दहेज प्रथा नमक सामाजिक समस्या को पूर्ण रूप से समझने के लिए सर्वप्रथम दहेज का अर्थ जानना उचित होगा।
दहेज का अर्थ एवं परिभाषाएं
सामान्यतः दहेज वह धन या उपहार है जिस कन्या के माता-पिता वह संबंधी विवाह के समय वप व वप पक्ष को देते हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया है—
(1) ‘एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका' में 'दहेज'की परिभाषा इस प्रकार दी गई है — "दहेज वह संपत्ति है जो एक स्त्री विवाह के समय अपने साथ लाती है अथवा उसे दी जाती है।"कभी-कभी इसको वर मूल्य की संज्ञा भी दी जाती है।
(2) चार्ल्स विनिक के अनुसार— "दहेज में बहुमूल्य वस्तुएं हैं जोकि किसी एक पक्ष को व्यक्ति विवाह के समय प्रदान करता है।
यद्यपि उपर्युक्त परिभाषाएं दहेज का अर्थ अधिक स्पष्ट करने में सहायक नहीं है, फिर भी इन परिभाषाओं से हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वर -कन्या के माता-पिता के बीच रूपए पैसे का जो लेन-देन होता है या लड़की और लड़के के माता-पिता एक दूसरे की क्षतिपूर्ति के लिए जो धन देते हैं उसे 'दहेज' कहा जाता है। प्रचलन के अनुसार भारतीय हिंदू समाज में विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर या वर पक्ष को जो धन, संपत्ति आदि दी जाती है उसे दहेज कहा जाता है। अनेक बार विवाह संबंध टाई होने के अवसर पर ही दहेज की रकम भी तय कर ली जाती है। इस प्रकार दहेज में सौदेबाजी या बाध्यता का तत्व भी निहित होता है
दहेज प्रथा की प्रमुख कारण
दहेज प्रथा आदिकाल से चली आ रही एक प्रथा है। इसका प्रमुख कारण समाज द्वारा इसे स्वीकृति मिला होना है। मुख्यतः दहेज प्रथा की बहुत से कारण हमारे समाज में विद्यमान है, जिनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित है—
(1) सामाजिक कुप्रथा
दहेज प्रथा हमारे समाज में एक सामाजिक कुप्रथा बन गई है। फल स्वरुप समाज में विवाह संपन्न करते समय वर वधु के माता-पिता को ना चाहते हुए भी इस कुरीति का शिकार होना पड़ता है।
(2) सामाजिक मूल्यों की मान्यता
हमारे आज के समाज में सामाजिक मूल्य असंख्य हैं। प्रत्येक सामाजिक मूल्य का अपने-अपने क्षेत्र में एक विशेष स्थान और महत्व है। समकालीन भारत में प्रत्येक व्यक्ति का मूल्य रूपए पैसे से तोला जाता है। यदि किसी वर्ग आठवा कन्या के माता-पिता अपने लड़के अथवा लड़की के विवाह में अधिक धन व्यय करते हैं तो उन्हें समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति समझ जाता है क्योंकि समाज में ऐसे मूल्य है जिनके फलस्वरुप दहेज प्रथा को प्रोत्साहन मिलता है।
(3) सामाजिक स्थिति का प्रदर्शन
दहेज प्रथा को प्रोत्साहन देने वाला एक बहुत महत्वपूर्ण कारक समाज में व्यक्ति की स्थिति को भी प्रदर्शित करना होता है। प्रत्येक मनुष्य अपनी कन्या का विवाह संपन्न करने में अधिक पैसा इसीलिए भी लगा बैठता है कि समाज के अन्य लोग समाज में उसकी ऊंची स्थिति की अनुभूति करें, ताकि उसकी प्रशंसा और अधिक हो सके।
(4) अनुलोम विवाह प्रथा
हिंदुओं में प्राचीन काल से ही अनुलोम विवाह प्रणाली का प्रचलन था, जिसके परिणाम स्वरूप आज भी लोग यही प्रयास करते हैं कि उनकी कन्याओं का विवाह ऊंचे से ऊंचे घराने में हों। इस प्रण को पूरा करने के लिए भले ही उनको कितना ही धन खर्च करना पड़े, वे लड़की वालों की दहेज की मांग को स्वीकार करने को विवश हो जाते हैं।
(5) परंपराएं
भारतीय लोग साधारण जीवन व्यतीत करते हैं और अपनी भेड़ा चाल के लिए प्रसिद्ध है। बहुत से लोग इसलिए भी दूसरे व्यक्तियों की देखा देखी दहेज प्रथा स्वीकार कर लेते हैं कि उनको भी अपने लड़के और लड़कियों के विवाह संपन्न कराने में ऐसा करना पड़ेगा, अतः यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहती है।
(6) लड़कियों के विवाह की अनिवार्यता
कभी-कभी हिंदू समाज में लड़कियों के विवाह के अनिवार्यता भी दहेज लेने और देने के लिए माता-पिता को प्रोत्साहन देती है। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो मां-बाप को अपनी लड़की की अकुशलता के कारण भी दहेज का लेनदेन करना पड़ता है जो कि इस प्रथा को बढ़ाने में मां-बाप को प्रोत्साहित अथवा बाध्य करता है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त मुख्य कर्म के फल स्वरुप दहेज प्रथा को भारतीय समाज में प्रोत्साहन मिलता रहा है। आज भी इन्हीं कर्म से दहेज प्रथा भारतीय समाज में एक कलंक के रूप में विद्यमान है।
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