भारत में राष्ट्र निर्माण की 5 मुख्य चुनौतियां - राजनीति विज्ञान

भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां 

(स्वतंत्र भारत 1947) 

 15 अगस्त, 1947 को हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई और एक नए राष्ट्र के रूप में भारत विश्व पटल पर उदित हुआ। पहली और तात्कालिक चुनौती ऐसे राष्ट्र को आकार देने की थी जो एकजुट हो, फिर भी समाज में मौजूद विविधता को स्वीकार करने वाला हो और गरीबी और बेरोजगारी का उन्मूलन हो। दूसरी चुनौती थी लोकतंत्र स्थापित करना। भारत के समक्ष कुछ चुनौतियां सर्व प्रमुख थी— 

भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां

(1) राष्ट्रीय एकता की चुनौती 

भारत के समक्ष सर्वप्रथम और तत्कालिक चुनौती एकता के सूत्र में बड़े एक ऐसे भारत को घटाने की थी जिसमें भारतीय समाज की समस्त विविधताओं के लिए स्थान हो। भारत अपने आकार और विविधता की दृष्टि से किसी महादेश के समान था। यहां अलग-अलग बोली बोलने वाले लोग थे। उनकी संस्कृति अलग थी और वह अलग-अलग धर्मो के अनुयाई थे। तात्कालिक परिस्थितियों के आधार पर यही माना जा रहा था कि इतनी अधिक विविधताओं से भरा कोई देश अधिक दिनों तक एकजुट नहीं रह सकता। देश के विभाजन के साथ लोगों के मन में समाई यह आशंका एक तरह से सच सिद्ध हुई। देश के भविष्य को लेकर गंभीर प्रश्न सामने खड़े या उठें थे — क्या भारत एक रह सकेगा, क्या भारत केवल राष्ट्रीय एकता की बात पर सर्वाधिक ध्यान देगा और शेष उद्देश्यों को त्याग देगा, क्या ऐसे में प्रत्येक क्षेत्रीय और उपक्षेत्रीय पहचान को खारिज कर दिया जाएगा; तात्कालिक सर्वाधिक तीखापनी हो भी था कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को किस प्रकार प्राप्त किया जाए।

(2) लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती 

नए राष्ट्र के समक्ष दूसरी चुनौती लोकतंत्र स्थापित करने की थी। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है और प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है। भारत में संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्वमूलक लोकतंत्र को अपनाया। इन विशेषताओं से यह बात सुनिश्चित हो गई की लोकतांत्रिक ढांचे के अंदर राजनीतिक मुकाबले होंगे। लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए लोकतांत्रिक संविधान आवश्यक होता है। लेकिन केवल इतने से ही कार्य नहीं चलता। चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार प्रचलन में लाए जाए।

(3) विकास की चुनौती 

नई राष्ट्र की समक्ष तीसरी चुनौती विकास की थी। ऐसा विकास जिससे संपूर्ण समाज का भला हो ना कि किसी विशिष्ट वर्ग का। इसी दृष्टि से भी संविधान में यह बात स्पष्ट कर दी थी कि सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाए और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों और धार्मिक-सांस्कृतिक, अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा प्रदान की जाए। संविधान ने ‘राज्य की नीति निर्देशक सिद्धांतों’ के अंतर्गत लोक कल्याण के उन लक्ष को भी स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीति को अवश्य करना था। 

(4) समाज में विविधता की चुनौती 

 भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां कभी भी आसान नहीं थीं। स्वतंत्रता के बाद भी, देश के सामने कई महत्वपूर्ण तात्कालिक चुनौतियां थीं, जिन्हें पार करना मुश्किल था। पहली चुनौती यह थी कि भारत को एकजुट राष्ट्र के रूप में स्थापित किया जाए, जहां समाज में विविधता को स्वीकार किया जाता हो। भारत एक विविध समाज, भाषा, और सांस्कृतिक संपदा का अद्भुत संगम है, और इसे एकता की धारा में लाना एक महत्वपूर्ण चुनौती थी।

(5) आर्थिक स्थिति का मुद्दा की चुनौती 

भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों में से एक मुख्य चुनौती थी आर्थिक स्थिति का मुद्दा। स्वतंत्रता के बाद, देश ने अनेक आर्थिक संकटों का सामना किया। इस प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए, राष्ट्र ने विभिन्न उपायों को अपनाया ताकि वह आर्थिक विकास में अग्रसर हो सके। भारत की स्वतंत्रता के बाद, देश ने उच्च गरीबी और बेरोजगारी का सामना किया। इसके अलावा, अधिकांश लोग गरीबी रेखा के नीचे थे और उन्हें आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी। इस संकट को संभालने के लिए, भारत सरकार ने कई योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए, जिनका उद्देश्य था गरीबी को कम करना, बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त करने में मदद करना, और समृद्धि को सुनिश्चित करना।

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