शीत युद्ध क्या है? तथा शीत युद्ध के दौरान कौन-कौन से संकट सामने आए?

शीत युद्ध क्या है? तथा घटनाएं या संकट

 शीत युद्ध से अभिप्राय दो राज्यों अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच उन कटु संबंधों के इतिहास से है, जो तनाव, भय, ईर्ष्या पर आधारित था। इसके अंतर्गत दोनों अच्छा एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तथा अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रादेशिक संगठनों के निर्माण, सैनिक गठबंधन, आर्थिक सहायता, प्रचार सैन्य हस्तक्षेप जैसी बातों का सहारा लेते थे।

शीत युद्ध के दौरान सामने आए संकट 

(1) सोवियत संघ द्वारा अमेरिका की आलोचना 

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्त होने से कुछ समय पूर्व से ही सोवियत संघ ने अमेरिका की आलोचना करना प्रारंभ कर दिया था। वहां की पत्रिकाओं में ऐसे ले सकते थे जिनमें अमेरिकी नीतियों की आलोचना तीव्र शब्दों में की जाती थी। इस प्रचार के कार्य से अमेरिकी प्रशासन तथा जनता दोनों सोवियत संघ के विरोधी हो गए।

(2) बर्लिन की घेराबंदी की नीति 

सोवियत संघ ने जून 1948 ई के प्रोटोकॉल को ताक पर रखकर बर्लिन की घेराबंदी प्रारंभ कर दी। इससे पश्चिमी देशों ने सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ की शिकायत की। विश्व में इस बात पर प्रचार किया गया कि यह कार्यवाही शांति की पूर्ण स्थापना को शीघ्र ही समाप्त कर देगी।

(3) सोवियत संघ द्वारा पश्चिम की नीति का विरोध करना 

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात एक और सोवियत संघ पश्चिम की नीति का विरोध कर रहा था तो दूसरी ओर पश्चिमी यूरोप के राष्ट्र सोवियत संघ के विरुद्ध प्रचार करने में संलग्न थे।

(4) सोवियत संघ द्वारा वीटो का प्रयोग करना

सोवियत संघ ने बात-बात में वीटो का प्रयोग किया जिससे संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में बाधा पड़ने लगी। उनकी दृष्टि में, संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति और सुरक्षा की स्थापना करने वाली एक विश्व संस्था नहीं थी, बल्कि यह अमेरिका का एक प्रचार तंत्र था। अतः सोवियत संघ ने वीटो की शक्ति का प्रयोग करके पश्चिमी राष्ट्रों के प्रस्तावों को निरस्त करना प्रारंभ कर दिया। ऐसी स्थिति में यूरोप के पश्चिमी राष्ट्र तथा अमेरिका यह सोचने लगे कि सोवियत संघ संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था को समाप्त करना चाहता है। आप पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ की कटु आलोचना करने लगे। इससे विश्व में तनाव का वातावरण व्याप्त हुआ।

(5) यू-2 की घटना एवं शीत युद्ध का नवीनीकरण 

 यू-2 अमेरिका का एक जासूसी विमान था जिसे सोवियत संघ ने मार गिराया था। इस जासूसी कार्यवाही से सोवियत संघ अमेरिका से अप्रसन हो गया तथा उसने मांग की कि अमेरिका इस अपमानजनक कार्य के लिए समय मांगी तथा भविष्य में सोवियत संघ में जासूसी न करने का आश्वासन दे। अमेरिका सोवियत संघ की इस मांग के पक्ष में नहीं था। अतः यू-2 की घटना ने एक बार सुनो अमेरिका सोवियत संबंधों को तनावपूर्ण तथा क्षुब्ध बना दिया।

(6) पेरिस शिखर सम्मेलन की असफलता तथा शीत युद्ध 

16 मई, 1960 में इसी घटना की छाया के नीचे पेरिस शिखर सम्मेलन प्रारंभ हुआ। इस आश्वासन की अवहेलना करते हुए कि यू-2 की घटना का मामला शिखर सम्मेलन में नहीं उठाया जाएगा, ख्रुश्चेव नहीं अमेरिका से पुनः माफी मांगने की मांग की तथा विरोध को प्रकट करने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति आइजनहावर से हाथ तक नहीं मिलाया, बताओ तेरी सम्मेलन विफल हो गया तथा सीडीओ का वातावरण पुनः तीव्र हो गया।

(7) 1961 का बर्लिन दीवार का संकट 

1961 ई के बर्लिन दीवार संकट तथा क्यूबन मिसाइल संकट ने सोवियत संघ तथा अमेरिका को लगभग  युद्ध के किनारे लाकर खड़ा कर दिया। अगस्त 1961 ई को बर्लिन शहर से पश्चिम क्षेत्र को सोवियत अधिकार वाले क्षेत्र से पृथक करने के लिए सोवियत सघ द्वारा निर्मित दीवार का अमेरिका ने कड़ विरोध किया। अमेरिका तथा सोवियत संघ दोनों ने अपने-अपने मोर्चो पर टैंक लगाकर खड़े कर दिए थे। परंतु युद्ध तो नहीं हुआ लेकिन इस क्षेत्र में तनाव व्याप्त रहा।

(8) भारत-पाक युद्ध तथा शीत युद्ध 

1964 में वियतनाम में सैनिक कार्यवाही की स्थिति में वृद्धि करने के विषय में राष्ट्रपति जॉनसन के निर्णय का सोवियत संघ ने कड़ा विरोध किया। 1965 में भारत-पाक युद्ध प्रारंभ हो गया दोनों अमेरिका तथा सोवियत संघ ने विरोधी पक्ष लिए। भारत तथा पाकिस्तान के बीच सोवियत संघ की मध्यस्थता की भूमिका अमेरिका को अप्रिय लगी। इससे दोनों महाशक्तियों में तनाव और तीव्र हो गया। 

(9) बर्लिन दीवार संकट (1969) 

मार्च 1969 में बर्लिन एक बार पुनः अमेरिका तथा सोवियत संघ के संबंधों में शीत युद्ध के तनावों का कारण बन गया। पश्चिमी जर्मनी सरकार के इस निर्णय का फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी (प० जर्मनी) चांसलर का निर्वाचन पश्चिमी बर्लिन में ही किया जाए, सोवियत संघ तथा जर्मन डेमोक्रेटिक ने इसका कड़ा विरोध किया। इस कारण अमेरिका सोवियत संघ से पुनः अप्रश्न हो गया। 

निष्कर्ष 

इस प्रकार शीत युद्ध को हम राष्ट्रीय हितों का युद्ध का सकते हैं। क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व में नई घटनाएं घटी तथा नए-नए मुद्दे उत्पन्न हुए। इन बिंदुओं को लेकर सोवियत संघ तथा अमेरिका वाक्य युद्ध करते रहते थे। यही वाक्या युद्ध आगे चलकर ‘शीत युद्ध’ के नाम से विख्यात हुआ। 

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