सामाजिक प्रक्रिया किसे कहते हैं? अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

सामाजिक प्रक्रिया

सामाजिक प्रक्रिया किसे कहते हैं? जब समूह, समुदाय समाज के सदस्य परस्पर व्यवहार करते हैं तो उनमें निश्चित व अर्थपूर्ण अंतर्क्रियाएँ विकसित होती है। समूह के सदस्यों में पाई जाने वाली अंतर्क्रियाएँ सहयोग के रूप में हो सकती हैं अथवा संघर्ष के रूप में भी हो सकती है। उनमें प्रतियोगिता हो सकती है और समायोजन तथा व्यवस्थापन भी हो सकता है। सामाजिक प्रक्रियाएं समाज में होने वाली विभिन्न सामाजिक अंतर्क्रियाओं का एक संगठित और व्यवस्थित ढंग से विवरण है। ये प्रक्रियाएं सामाजिक संबंधों की गहराई से समझने में मदद करती हैं और विभिन्न प्रकार के संबंधों को स्पष्ट करती हैं। सामाजिक प्रक्रियाएं सामाजिक संबंधों के स्थिर और परिवर्तनशील होने का परिचय देती हैं। इनमें सामाजिक संबंधों की स्थिरता और निरंतरता का विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे सामाजिक प्रक्रियाएं समझने में मदद मिलती है।

सामाजिक प्रक्रिया का अर्थ एवं परिभाषाएँ

सामाजिक प्रक्रिया से अभिप्राय सामाजिक अंतर्क्रियो के विभिन्न स्वरूपों से है। यह परस्पर संबंधित घटनाओं का एक कम है जिसे हम विशिष्ट परिणाम और परिवर्तन को जन्म देने वाले मानते हैं। इसे प्रमुख विद्वानों ने  अग्रलिखित रूप से परिभाषित किया है—

1— फेयरचाइल्ड ने समाजशास्त्र के शब्दकोश में सामाजिक प्रक्रिया की परिभाषा इन शब्दों में दी है— “कोई भी सामाजिक परिवर्तन या अंतर्क्रिया जिसमें अवलोकनकर्ता एक सतत (निरत) गुण या दिशा देखता हो, उसे एकवर्गीय नाम दिया जा सके व सामाजिक परिवर्तन या अंतर्क्रिया का एक वर्ग जिसमें सामान्य रूप से सामान्य आदर्श देखा जा सके व नामांकित किया जा सके। उदाहरण के लिए— अनुकरण, परसंस्कृतिकग्रहण, संघर्ष, सामाजिक नियंत्रण, संस्तरण।”

2— मैकाइवर तथा पेज के अनुसार— “इस प्रक्रिया से तात्पर्य है कि परिस्थितियों में पहले से मौजूद शक्तियों के सक्रिय होने से स्थितिगत परिवर्तन होता है, जो नियमित और निरंतर होता रहता है।”

3— लुण्डबर्ग के अनुसार— “प्रक्रिया से तात्पर्य विशिष्ट और पूर्वानुमानित परिणामों की अपेक्षा से, संबंधित घटनाओं के एक निश्चित अनुक्रम से है।”

4— गिलिन तथा गिलिन के अनुसार—“सामाजिक प्रक्रिया से हमारा अभिप्राय अंतर्क्रिया के उन तरीकों से है जिनके हम, जब व्यक्ति और समूह मिलते हैं और संबंधों की व्यवस्था स्थापित करते हैं या जब जीवन के पहले संभावित तरीकों में बदलाव के कारण अस्तव्यस्तता उत्पन्न होती है, हम उसे अवलोकन कह सकते हैं।”

    इन सभी परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामाजिक प्रक्रिया का अध्ययन हमें उन विशेष तरीकों की ओर ले जाता है, जिनसे समूह के सदस्यों के संबंधों में निश्चित और विशेष लक्षण प्राप्त होते हैं। हम सामाजिक प्रक्रियाओं के माध्यम से समूह की प्रगति या पतन, एकीकरण या विघटन के मार्ग को समझते हैं, जिसमें हम एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन की श्रृंखला देखते हैं। इन प्रक्रियाओं का अध्ययन हमें समाज में हो रहे विभिन्न प्रकार के गतिशीलताओं को समझने में मदद करता है।

सामाजिक प्रक्रिया की विशेषताएँ

सामाजिक प्रक्रिया की विशेषताएं : सामाजिक प्रक्रिया के अर्थ तथा विभिन्न विद्वानों के विचारों से इसकी जो प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट होती है वह निम्नलिखित हैं—

(1) घटनाओं से संबंधित

सामाजिक प्रक्रियाओं का संबंध सामाजिक घटनाओं या सामाजिक संबंधों से होता है। इन प्रक्रियाओं का विवरण और अध्ययन सामाजिक जीवन में हो रहे विभिन्न घटनाओं और संबंधों के माध्यम से किया जाता है। बिना सामाजिक घटनाओं या सामाजिक संबंधों के, हम सामाजिक प्रक्रिया की कल्पना भी नहीं कर सकते, क्योंकि ये प्रक्रियाएं समूह के सदस्यों के संबंधों की प्रभावशीलता को दर्शाती हैं और सामाजिक संरचना में परिवर्तन को उत्पन्न करती हैं।

(2) निश्चित क्रमता की विशेषता

सामाजिक प्रक्रिया केवल सामाजिक घटनाओं से ही संबंधित नहीं होती अपितु सामाजिक प्रक्रिया के लिए घटनाओं का एक निश्चित कम होना भी जरूरी है। किसी एक घटना को सामाजिक प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता।

(3) पुनरावृति की विशेषता 

सामाजिक घटनाओं और सामाजिक संबंधों के अनुक्रम में पुनरावृत्ति हमेशा होती रहती है। यानी, इन घटनाओं और संबंधों में क्रिया और प्रतिक्रिया का निरंतर चक्र होता रहता है। पुनरावृत्ति के बिना, किसी भी घटना को सामाजिक प्रक्रिया कहा नहीं जा सकता, क्योंकि यह प्रक्रिया ही सामाजिक जीवन की मूलभूत धारणा है जो समूह के सदस्यों के बीच निरंतर संवाद और संघर्ष को व्यक्त करती है

(4) पारस्परिक सम्बद्धता

सामाजिक प्रक्रिया के लिए घटनाओं अथवा संबंधों का पारस्परिक संबंध होना भी जरूरी है। उनकी प्रकृति तथा क्षेत्र अलग-अलग होते हैं परंतु उनका परस्पर संबद्ध होना सामाजिक प्रक्रिया के लिए जरूरी है।

(5) विशिष्ट परिणाम 

सामाजिक प्रक्रियाएं मानवीय अंतर्क्रियाओं का अवश्यम्भावी परिणाम होते हैं। इनके कुछ ना कुछ परिणाम आवश्यक होते हैं चाहे वे संगठन के लिए उपयोगी हो अथवा नहीं।

(6) अनेक रूप 

 सामाजिक प्रक्रियाओं के अनेक रूप होते हैं। जिन प्रक्रियाओं द्वारा समाज में‌ सहयोग व संगठन बना रहता है उन्हें सहयोगी प्रक्रियाएं कहते हैं, और जिनके द्वारा पृथक्करण की प्रवृत्ति विकसित होती है, उन्हें असहयोगी प्रक्रियाएं कहा जाता है।

(7) संरचना और कार्य से संबंधित 

सामाजिक प्रक्रियाएं सामाजिक संरचना और कार्यों से संबंधित होती है क्योंकि इनका प्रत्यक्ष प्रभाव सामाजिक संरचना तथा इसका निर्माण करने वाली इकाइयों के कार्यों पर पड़ता है।

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