प्राथमिक समूह का अर्थ एवं परिभाषा
प्राथमिक समूह के सदस्यों में आमने-सामने का घनिष्ठ सम्बन्ध तथा सहयोग पाया जाता है। आकार सीमित के कारण सदस्यों में व्यक्तिगत एवं सहज सम्बन्ध पाए जाते हैं। परिवार, पड़ोस तथा क्रीडा–समूह इत्यादि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। कूले के अनुसार, “प्राथमिक समूहों से तात्पर्य उन समूहों से है जो अधिक आमने-सामने के संबंध एवं सहयोग द्वारा लक्षित होते हैं। यह अनेक दृष्टियों से प्राथमिक हैं, मुख्यतः इस कारण कि ये एक व्यक्ति की सामाजिक प्रकृति और आदर्शों के बनाने में प्रमुख हैं। इनमें घनिष्ठ संबंधों के फलस्वरूप वैयक्तिकताएँ एक सामान्य समग्रता में इस प्रकार घुल मिल जाती हैं, जिससे कि अनेक बातों के लिए कम से कम एक सदस्य का उद्देश्य सारे समूह का सामान्य जीवन एवं उद्देश्य हो जाता है। संभवतः इस संपूर्णता का सरलतापूर्वक वर्णन ‘हम’ कहकर किया जा सकता है। इसमें इस प्रकार की सहानुभूति और पारस्परिक एकरूपता है जिसके लिए ‘हम’ एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति है।”
फेयरचाइल्ड के अनुसार, “एक प्राथमिक समूह वह समूह होता है जिसमें लगभग दो से लेकर 50 या 60 व्यक्तियों की छोटी संख्या में सदस्य होते हैं। अर्थात् जिसके सदस्यों की संख्या कम है तथा सदस्य अपेक्षाकृत अधिक लंबे समय तक चलने वाले आमने-सामने के संबंधों में किसी एक उद्देश्य के लिए नहीं वरन् केवल एक व्यक्ति के रूप में; न की विशिष्ट कार्यकर्ताओं, प्रतिनिधियों या संगठनों के नियुक्तकर्ताओं के रूप में; रहते हैं। ”
इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है क्योंकि इनमें सदस्यों के बीच घनिष्ठता, सहयोग, एकता और प्रेम का अत्यंत स्वाभाविक रूप से विकास होता है। ये सदस्य अपने लिए ‘हम’ शब्द का प्रयोग करते हैं तथा इनके परस्पर संबंध प्रत्यक्ष होते हैं। प्रेम, न्याय, उदारता तथा सहानुभूति जैसे गुणों की जानकारी व्यक्ति को प्राथमिक समूह में ही मिलती है।
प्राथमिक समूह का महत्व (विशेषताएं)
व्यक्ति एवं समूह के लिए प्राथमिक समूहों के महत्व का विवरण निम्नवर्णित है—
(1) व्यक्तित्व के विकास में सहायक
प्राथमिक समूह में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। मानव की अधिकांश सीख प्राथमिक समूहों की ही देन है। यह सदस्यों के लिए व्यक्तित्व के विकास का प्रमुख अभिकरण है।
(2) आवश्यकताओं की पूर्ति का महत्व
प्राथमिक समूह व्यक्तियों की सभी प्रकार की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जो किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नहीं होता, बल्कि सामान्य हितों की प्राप्ति के लिए होता है।
(3) समाजीकरण में सहायक होता
प्राथमिक समूह व्यक्ति को समाज में रहने के योग्य बनाते हैं। इन समूहों में व्यक्ति सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों और संस्कृतियों का पालन करते हैं, जिससे उनका समाज में सम्मान और स्थान मिलता है। इसके अलावा, इन समूहों के माध्यम से व्यक्ति समाज में होने वाली अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों का ज्ञान भी प्राप्त करता है, जिससे उसका समाजीकरण होता है।
(4) कार्य क्षमता में वृद्धि करना
प्राथमिक समूह में व्यक्तियों के बीच सामूहिकता, सहयोग, प्रेरणा और प्रोत्साहन का माहौल होता है। यहाँ व्यक्ति एक दूसरे की मदद करते हैं, आपस में आदर्शों को प्रेरित करते हैं और एक-दूसरे को समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। इस तरह का सामूहिक उत्साह और सहयोग व्यक्ति की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है।
(5) सुरक्षा की भावना सुदृढ़ करना
प्राथमिक समूह व्यक्तियों के बीच एक-दूसरे के साथ सहयोग, प्रेरणा, और प्रोत्साहन का माहौल बनाते हैं, जिससे व्यक्ति की सुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है और उनमें पारस्परिक प्रेम की भावना उत्पन्न होती है, जो उनके व्यवहार को समाज के अनुकूल बनाती है।
(6) सामाजिक नियंत्रण में सहायक
प्राथमिक समूह सामाजिक नियंत्रण के प्रमुख साधन होते हैं। ये समूह प्रथाओं, कानूनों, और परंपराओं के माध्यम से व्यक्तियों की सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और सामाजिक विरासत का हस्तान्तरण भी करते हैं।
(7) नैतिक गुणों का विकास
प्राथमिक समूह व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करते हैं क्योंकि इन समूहों में रहकर ही व्यक्ति सदाचार, सहानुभूति एवं सहिष्णुता आदि गुणों को सीख पाता है।
(8) संस्कृति के हस्तांतरण में सहायक
प्राथमिक समूह संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनसे सामाजिक विरासत की रक्षा ही नहीं अपितु हस्तानांतरण द्वारा इसमें निरंतरता भी बनी रहती है।
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