लोक प्रशासन के अध्ययन में प्रयुक्त की जाने वाली पद्धतियाँ

लोक प्रशासन की अध्ययन पद्धतियां

  व्यवहारवादी उपागम के अनुसार, लोक प्रशासन के अध्ययन में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं–

 लोक प्रशासन के अध्ययन में प्रयुक्त की जाने वाली पद्धतियाँ

(1) मनोवैज्ञानिक पद्धति 

प्रशासन के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग सर्वप्रथम मेरी पार्कर फोलेट ने किया था। उन्होंने यह बताया कि व्यक्तियों और समूहों की इच्छाएँ उनके पूर्वाग्रह तथा नैतिक मूल्य प्रशासन के भीतर किस प्रकार उनके व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह मनोवैज्ञानिक पद्धति, इस दर्शन पर आधारित है कि प्रशासन मानव व्यवहार से संबंधित है। अतः मनोविज्ञान द्वारा उसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का विज्ञान है और लोक प्रशासन का संबंध भी व्यवहार या आचरण से है। अतः इस पद्धति के प्रयोग से मानव व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को उजाकर किया जा सकता है। मेरी पार्कर फोलेट ने बतलाया कि “मनोविज्ञान हमारे जीवन में इतना घुल-मिल गया है कि बहुत सी सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक समस्याओं का समाधान मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि को समझे बिना नहीं किया जा सकता। ” मनोविज्ञान की सहायता से लोक प्रशासन संबंधी बहुत-सी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। सामान्यतया किस परिस्थिति में व्यक्तियों से किस प्रकार के व्यवहार की आशा की जा सकती है, बहुत कुछ मात्रा में इसका निश्चय मनोविज्ञान की सहायता से किया जा सकता है। प्रशासन के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तियों और समूह की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया के फलस्वरुप प्रशासन के अंतर्गत एक प्रकार के अनौपचारिक संगठन का निर्माण हो जाता है जो औपचारिक संगठन को संशोधित कर न केवल उसका पूरक बन जाता है, बल्कि इतना महत्वपूर्ण स्थान पर प्राप्त कर लेता है कि उसकी अवहेलना करने पर प्रशासन के समक्ष अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं और वह संकट में पड़ जाते हैं।

(2) केस पद्धति 

केस पद्धति या समस्या अध्ययन पद्धति का विकास अमेरिका में हुआ है। प्रशासकीय दृष्टि से प्रत्येक समस्या एक प्रकार का प्रकरण या केस हैं। इस समस्या का सांगोपांग अध्ययन कर उचित निष्कर्ष निकाले जाते हैं।उसके परिणामों के आधार पर निष्कर्षों को कसौटी पर कसा जाता है। यह पद्धति सबसे पहले 1952 में संयुक्त राज्य अमेरिका में काम में ली गई थी। भारत में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ सन् 1960 के बाद इस प्रकार के कई प्रशासनिक मामलों के अध्ययन प्रकाशित कर रहा है। मसूरी में स्थित ‘लाल बहादुर नेशनल एकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन’ भी अपनी त्रैमासिक पत्रिका ‘प्रशासन’ में इस प्रकार के नए अध्ययन प्रकाशित करने लगी है।

        ‘समस्या अध्ययन पद्धति’ के समर्थकों का विचार है कि यदि इस पद्धति का प्रयोग किया जाए तो हम न्याय प्रशासन की भाँति लोक प्रशासन के संबंध में ऐसे सिद्धांतों का प्रतिपादन कर सकते हैं, जिनका प्रयोग हम सफलता के साथ लोक प्रशासन की बहुत सी समस्याओं को सुलझाने के लिए कर सकते हैं। किंतु प्रशासनिक प्रक्रिया की जटिलता के कारण यह पद्धति कठिन है।

(3) परिमाणात्मक मापक पद्धति

परिमाणात्मक मापक पद्धति को सांख्यिकीय परिमाण पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति का समर्थन रिडले तथा साइमन ने किया है। इस पद्धति का आधार आँकड़े तथा ज्ञान व सांख्यिकी है। यह प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन की एक प्रमुख विधि है। प्रायः कहा जाता है कि भौतिकशास्त्र के ज्ञान की वृद्धि एवं प्रगति बहुत कुछ आँकडों तथा निष्कर्षों के परिमाणात्मक माप पर अवलंबित है। परंतु लोक प्रशासन के संबंध में परीमाणात्मक पद्धति इसलिए अधिक सफल नहीं मानी जा सकी , क्योंकि उसमें गुणात्मक रूप पर भी काफी बल दिया जाता है। उदाहरण के लिए, शिक्षा की प्रगति का मूल्यांकन केवल सफल विद्यार्थियों के आधार पर नहीं किया जा सकता बल्कि उसके गुणात्मक पहलू पर भी विचार करना होता है। फिर भी लोग प्रशासन के निम्न दो क्षेत्रों में परिमाणात्मक मापक पद्धति का प्रयोग किया जाता रहा है—

(1) जब प्रशासन के संबंध में जनता अथवा उसकी प्रतिक्रिया जानी हो।

(2) जब किसी प्रशासकीय अभिकरण के कर्मचारियों की संख्या व वित्तीय आवश्यकताओं के बारे में निर्णय करने की दृष्टि से उसके कार्यभार का परिमापन करना हो।

(4) पारिस्थितिक पद्धति 

लोक प्रशासन के अध्ययन का पारिस्थितिक दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि प्रशासन एवं उससे संबंधित समस्याओं का अध्ययन संबंधित लोगों तथा उनके परिवेश के संदर्भ में किया जाए। प्रशासन अपनी परिवेश या वातावरण से अलग रहकर कार्य नहीं करता। यह उसको प्रभावित करता है तथा स्वयं उससे प्रभावित होता है। पारिस्थितिक पद्धति की मान्यता है कि प्रशासन का संबंध राज्य के विभिन्न भागों में विभिन्न परिस्थितियों में रहने वाले विभिन्न व्यक्तियों से होता है। 

     मनुष्य के विचारों, स्वभाव एवं उनके वातावरण के भिन्न-भिन्न होने के कारण समान प्रशासकीय स्थिति में की गई समान प्रशासनिक कार्यवाही भी विभिन्न स्थानों पर सामान परिणाम नहीं दे सकती। अतः प्रशासन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि उसे जनता का सहयोग भी प्राप्त हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रशासन के प्रति पारिस्थितिक दृष्टिकोण भी रखा जाए।

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