जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत

जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत 

न्याय-रॉल्स के परिप्रेक्ष्य में

परिप्रेक्ष्य -“दृश्य, व्यक्तियों आदि का ऐसा चित्रण जिसमें पारस्परिक अंतर बिल्कुल उसी रूप में दिखाई पड़ता हो जैसा वह साधारण रूप से आँखों से देखने पर दिखाई पड़ता हो।” 

 न्याय समाज का सबसे बड़ा सद्गुण है- जॉन रॉल्स। जॉन रॉल्स के अनुसार न्याय ही वह प्रक्रिया है जो सबके मध्य साम्य स्थापित करता है। जॉन रॉल्स की समस्या वितरण की है। जॉन रॉल्स अपने न्याय सिद्धांत की शुरुआत उपयोगिता की आलोचना से शुरू करता है। उपयोगितावाद अपना एक सूत्र पहले ही सुरक्षित रखता है- वह अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख है। जॉन रॉल्स इस तरह की कोई धरना पहले से नहीं रखता। अपितु वह शुद्ध विधि और प्रक्रिया पर जोर देता है। जॉन रॉल्स परिणाम को दृष्टि में रखकर पहले से कोई धारणा नहीं बनाता बल्कि वह प्रक्रिया को लागू करने की बात करता है, परिणाम क्या होगा? सामने आएगा। जैसे मार्क्सवादी अपना परिणाम घोषित किए हैं की अंत में वर्गहीन, राज्यहीन, साम्यवादी समाज होगा अर्थात मार्क्सवाद परिणाम को ध्यान में रखकर प्रक्रिया बनता है। जॉन रॉल्स, मार्क्सवाद की तरह बिना परिणाम घोषित किया सिर्फ शुद्ध विधि एवं प्रक्रिया पर जोर देता है।

जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत

आय, शक्ति व संपदा की दृष्टि से घोर विषमता व्याप्त थी। ऐसी स्थिति में जॉन रॉल्स आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पुनर्विणात्मक न्याय का समर्थन करता है। जॉन रॉल्स के अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बनाकर मूल पदार्थ के पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है।


★ जॉन रॉल्स अपने चिंतन का आरंभ उपयोगितावादी चिंतन की आलोचना करता है, जिसमें अधिकतम की अच्छाई के हित में कुछ व्यक्तियों के हितों के बलिदान की औषधि पूर्ण ठहराया जाता है अर्थात उपयोगितावाद संपूर्ण की खुशी के बजाय अधिकांश की खुशी पर जोर देता है। उपयोगिता अधिकतम संख्या की अधिकतम सुख के सूत्र को अपनाता है। परंतु उपयोगितावाद इस बात की परवाह नहीं करता कि उसके वितरण में किसको क्या मिला? जॉन रॉल्स की नजर में ‘न्याय’ मूलत: वितरण का सिद्धांत है।

★ जॉन रॉल्स की विश्लेषण का आधार काण्ट का नैतिक दर्शन है। जॉन रॉल्स, काण्ट की चिंतन के तीन तत्व स्वायत्तता, निरपेक्ष आदेश तथा लक्षण के साम्राज्य की अवधारणा पर जोर देता है। अपने न्याय सिद्धांत में जॉन रॉल्स आज्ञा की पर्दे की कल्पना करके वार्ता कारों की सहायता को सुनिश्चित करता है। निरपेक्ष आदेश से तात्पर्य है, व्यवहार के नियम जो ऐसे व्यक्तियों पर लागू होते हैं जिनकी प्रकृति स्वतंत्र तथा समाज विवेकवान प्राणी की है। जॉन रॉल्स के वार्ताकारों का उद्देश्य केवल प्राथमिक वस्तुओं के वितरण का सूत्र तलाशने तक सीमित है। 

★ जॉन रॉल्स न्याय के नियमों का पता लगाने के लिए अनुबंध मूलक सामाजिक दर्शन का अनुकरण करता है। जिस तरह से हाब्स, जॉन लांक, रूसो ने अपनी समझौता सिद्धांत में प्राकृतिक अवस्था की परिकल्पना की है, उस तरह जॉन रॉल्स ने मूल स्थिति, व्यपहपदंस, च्वेपजपवद्द की कल्पना अपने न्याय सिद्धांत में की है। मूल स्थिति का तात्पर्य उसे अवस्था से है जिसमें मुक्त व स्वतंत्र, स्त्री व पुरुष एक सामाजिक समझौता हेतु एक साथ मिलते हैं। परंपरागत समझौता वीडियो के प्राकृतिक अवस्था के व्यक्तियों वह जॉन राज के मूल स्थिति के व्यक्तियों के प्रकृति में भारी अंतर है। जॉन रॉल्स की मूल स्थिति के व्यक्ति जंगली व असभ्य होकर विवेकवान है। समझौते से पूर्वाग्रह से तथा निष्पक्षता लाने के लिए जॉन रॉल्स के अज्ञान के परदे की कल्पना की है।

जॉन रॉल्स के अनुसार वार्ताकारों द्वारा न्याय के निम्नलिखित सूत्र स्वीकार किए जाएंगे, जो कुछ इस प्रकार है—

(1) समान स्वतंत्रता का सिद्धांत।

(2) सामाजिक, आर्थिक विशेषताओं का सिद्धांत।

(3) हीनतम को अधिकतम लाभ हो अर्थात भेद मूलक सिद्धांत।

(4) ये विषमताई उन पदों एवं स्थितियों के साथ जुड़ी हो, जो अवसर की उचित समानता की शर्तों पर सुलभ हो अर्थात अवसर की समानता।

उपरोक्त सिद्धांतों का वरीयता क्रम तय किया गया है जो अपरिवर्तनीय है। इसमें सामान स्वतंत्रता ऊपर है, समानता का सिद्धांत द्वितीय है और भेद मूलक सिद्धांत अंतिम है। यहां प्रथम सूत्र का ध्यान संविधान निर्माण में तथा द्वितीय व अंतिम सूत्र का ध्यान नीति व एकरूपता बनाने का है।

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