जजमानी व्यवस्था
परंपरागत रूप से ग्रामीण समाज में विभिन्न जातियों में सेवाओं के विनिमय की व्यवस्था पाई जाती थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक जाति अपनी सेवाएं अन्य जातियों को प्रदान करती थी, जबकि अन्य जातियां बदले में उसे अपनी सेवा देती थी। उदाहरण के लिए, यदि धोबी ने कुम्हार के कपड़े धो दिए तो बदले में कुम्हार ने धोबी को मिट्टी के घड़े पानी भर कर रखने के लिए दे दिए। नगद पैसों का प्रचलन ना होने के कारण सेवाओं के विनिमय की यह व्यवस्था अत्यंत प्रभावी थी। भारत में जातियों के आपसी संबंध अधिकतर सेवाओं की इसी प्रकार की अदला बदली की पद्धति पर आधारित थे। इस प्रकार की प्रथा को उत्तर भारत में जजमानी व्यवस्था कहा जाता है। महाराष्ट्र में इस प्रथा को 'बारा बलूटे' के नाम से पुकारते हैं, मद्रास (चेन्नई) में इस प्रथा को 'मिरासी'की संज्ञा दी गई है और मैसूर में इस प्रथा को 'अद्दे' कहकर पुकारा जाता है।
जजमानी व्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा
जजमानी व्यवस्था का अर्थ विभिन्न जातियों में पाए जाने वाली सेवाओं का विनिमय है। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि गांव में एक जाति की सेवा अन्य जातियां करती हैं, सेवा करने वाली जाति सेवा करने वाली जाति को जजमान का कर पुकारती हैं। इस प्रकार, जजमानी व्यवस्था के दो पक्ष होते हैं, जिम सेवाओं का विनिमय किया जाता है। ये पक्ष निम्नलिखित है—
(1) जिन सदस्यों के लिए कार्य किया जाता है, उन्हें जजमान अथवा विराट कहते हैं तथा
(2) जो कार्य या सेवा करता है, उसे परजन, कर्मण्य, काम अथवा काम करने वाला कहते हैं।
जजमानी व्यवस्था को विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है—
(1) ओस्कर लेविस के अनुसार—"इस व्यवस्था के अंतर्गत हर जाति समूह से यह उम्मीद की जाती है कि वह दूसरी जातियों के परिवारों को कुछ सामान्य स्तर की सेवाएं प्रदान करेगा।"
(2) एन०एस० रेड्डी के अनुसार—"सेवा संबंध, जोगी विरासत में मिलते हैं तथा नियंत्रित होते हैं, जजमान-परजन संबंध कहलाते हैं।"
(3) विलियम एच० वाइजर के अनुसार—"जजमान शब्द का प्रयोग उन सभी व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो नियुक्तिकर्ता का संबंध रखते हैं। इस प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक जाति का कोई निश्चित कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। इस कार्य पर उसका एकाधिकार होता है। इससे एक जाति दूसरी जाति की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।"
परिभाषाओं का सार
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि जजमानी व्यवस्था विभिन्न जातियों में सेवाओं के विनिमय की व्यवस्था है। इसमें प्रतीक जाती अपनी सेवाएं अन्य जातियों को प्रदान करती है और बदले में अन्य जातियों की सेवइयां निश्चित वार्षिक पारितोषिक प्राप्त करती हैं। यह व्यवस्था पीढ़ी दर पीढ़ी पैतृकर्ता के आधार पर चलती है ।
जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं
जजमानी व्यवस्था की विशेषताएं
(1) जजमानी व्यवस्था का आधार पैतृकता है। जजमान का पद पीढ़ी दर पीढ़ी पैतृकर्ता के आधार पर चलता रहता है।
(2) यह सेवा में अतः संबंद्धता की व्यवस्था है। साधारणता या ग्रामीण जीवन में सभी जातियां इस विनिमय व्यवस्था की सहायता से एक दूसरे की सेवा करती हैं।
(3) भारतीय गांव में जजमानी व्यवस्था के अंतर्गत पारितोषिक और अधिकार की व्यवस्था देखने को मिलती है।
(4) जजमानी परितोषिकों व अधिकारों में स्थायित्व पाया जाता है अर्थात यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं। इस स्थायित्व को बनाए रखने में ग्रामीण वृद्धि लोग परंपराओं और प्राचीन विश्वासों को महत्वपूर्ण कारक सिद्ध करते हैं। यदि परिजनों में बटवारा हो जाता था तो वह अपने जजमानों को भी बांट लेते थे।
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