परिवार क्या है? अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

परिवार

परिवार क्या है? परिवार स्वाभाविक और महत्वपूर्ण सामाजिक संगठनों में सबसे प्राचीनतम और पूरे विश्व में पाया जाने वाला प्रमुख संगठन है। यह एक सार्वभौमिक संगठन अथवा इकाई है क्योंकि यह किसी न किसी रूप में प्रत्येक समाज में पाया जाता है। अन्य प्राणियों के समान मनुष्य में भी जाति–सृजन तथा वंश–संरक्षण की नैसर्गिक प्रेरणाएँ होती हैं। इन प्रेरणाओं से ही परिवार तथा घर का जन्म हुआ है। परिवार पति–पत्नी तथा उनकी संतान से मिलकर बनता है। समाजशास्त्र के अंतर्गत परिवार का अध्ययन आवश्यक प्रतीक होता है क्योंकि यह समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है और समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।

परिवार का अर्थ एवं परिभाषाएँ

परिवार समाज की मौलिक इकाई है जो समाज के आधार और अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसमें माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, भतीजा-भतीजी, पुत्र-पुत्री आदि शामिल होते हैं। परिवार एक स्थायी और सुरक्षित आवास के रूप में कार्य करता है जो अपने सदस्यों को सामाजिक, आर्थिक, और भावनात्मक समर्थन प्रदान करता है। यह संबंध आधारभूत होता है और प्रेम, संवेदनशीलता और सहयोग पर आधारित होता है। इसका उद्देश्य अपने सदस्यों के भलाई और समृद्धि की देखभाल करना होता है। परिवार का रूप विभिन्न संस्कृतियों और समाजों में भिन्न हो सकता है, लेकिन इसका मौलिक उद्देश्य हर समय एक होता है - सदस्यों के प्रेम और समर्थन का प्रदान करना।

परिवार की परिभाषा - प्रमुख विद्वानों द्वारा दिए गए परिभाषा — 

1- आगबर्न तथा निमकाफ के अनुसार— “परिवार स्त्री और पुरुष की बच्चों सहित या बच्चों रहित अथवा केवल बच्चों सहित पुरुष की अथवा बच्चों सहित स्त्री की एक कम या अधिक स्थायी समिति है।”

2- इलियट तथा मैरिल के अनुसार— “परिवार को पति-पत्नी तथा बच्चों की एक जैविक सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” इसके अनुसार परिवार एक सामाजिक संस्था भी है और एक सामाजिक संगठन भी, जिसके द्वारा कुछ मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।

3- बील्स तथा हाइजर के अनुसार— “परिवार को एक सामाजिक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें सदस्यों के बीच रक्त के संबंधों का होना आवश्यक होता है।”

4- जुकरमैन के अनुसार— “एक परिवार-समूह पुरुष स्वामी, उसकी समस्त स्त्रियों और उनके बच्चों को मिलाकर बनता है। यह समूह कभी-कभी एक या अधिक अविवाहित अथवा पत्नी-विहीन पुरुषों को भी सम्मिलित किया जाता है।”

5-‌ बोगार्डस के अनुसार— “परिवार एक छोटा सामाजिक समूह है जिसमें साधारणतः माता-पिता एवं एक या अधिक बच्चे होते हैं, जिनमें स्नेह एवं उत्तरदायित्व का समान हिस्सा होता है तथा जिसमें बच्चों का पालन-पोषण उन्हें स्वनियन्तरित एवं समाज-प्रेरित व्यक्ति बनाने के लिए होता है।”

परिभाषाओं का सार 

     परिवार एक समूह होता है जिसमें संबंधित व्यक्तियों के बीच सीधे और प्रत्यक्ष नातेदारी संबंध होते हैं। इस समूह के मुख्य सदस्य बच्चों के पालन-पोषण एवं उनके संवासन में निर्दिष्ट दायित्वों का धारक होते हैं। परिवार की नींव स्त्री-पुरुष के यौन संबंधों के नियोजन पर आधारित होती है। इसके अलावा, परिवार में बच्चों का जन्म, उनका पालन-पोषण, और समाजीकरण की जिम्मेदारी भी होती है।

परिवार की विशेषताएं

(1) रक्त संबंध की विशेषता 

परिवार की एक अन्य विशेषता यह हो भी है कि उसके विभिन्न सदस्यों का एक दूसरे से परस्पर रक्त संबंधों द्वारा जुदा होना। माता-पिता द्वारा जो संतान उत्पन्न होती है वह पूर्णतया उनके रक्त से संबंधित होती है। एक स्त्री के गर्भ में उत्पन्न समझते संतानों में रक्त संबंध होता है। इस रक्त संबंध से ही परिवार का जन्म होता है। वास्तव में रक्त संबंध बाबा, चाचा, ताउ और उनकी संतान में भी अप्रत्यक्ष रूप से होता है।

(2) पति-पत्नी का संबंध की विशेषता 

परिवार का विकास अक्सर पति-पत्नी के संबंधों के माध्यम से होता है। पति-पत्नी के संबंध बिना जो परिवार की रचना के लिए आवश्यक होते हैं, उनके बिना परिवार का अस्तित्व अधूरा माना जाता है। यह संबंध विभिन्न रूपों और प्रथाओं में पाया जा सकता है। कुछ समाजों में, इसे एक पति एक पत्नी के बीच विवाह के रूप में स्थापित किया जाता है, जबकि कुछ में बहु-विवाह की प्रथा हो सकती है। यह संबंध परिवार के अंगुलियों में समर्थन और संगठन का कार्य करता है, और इसलिए इसे “विवाह” कहा जाता है।

(3) यौन संबंध 

यौन संबंध की प्रवृत्ति प्रत्येक प्राणी में पाई जाती है। वास्तव में सृष्टि का अस्तित्व ही इसी बात पर निर्भर करता है। मानव में कभी-कभी काम-भावना की अधिक प्रवृत्ति देखी जाती है। इस भावना की प्रतीक्षा के लिए स्त्री और पुरुष एक दूसरे के करीब आते हैं। यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो स्त्री और पुरुष दोनों में पाई जाती है। विवाह संबंधित द्वारा इस प्रवृत्ति की संतुष्टि होती है और परिवार का निर्माण होता है, परंतु यह बात ध्यान रखने लायक है कि विवाह से पहले बनाई गई यौन संबंधों से परिवार का निर्माण नहीं होता।

(4) परिवार की आर्थिक सुरक्षा 

हर परिवार अपने सदस्यों को शारीरिक शिक्षा देता है और उनकी सेहत का ध्यान रखता है। यदि कोई बीमार होता है, तो उसका उपचार की व्यवस्था भी परिवार की जिम्मेदारी होती है। प्रत्येक सदस्य के भोजन की व्यवस्था भी परिवार का काम होता है। परिवार में श्रम का विभाजन किया जाता है, जिसका आधार लिंक और आयु होता है। स्त्रियाँ घर के खाने पीने की व्यवस्था करती हैं जबकि पुरुष ऑर्थोपार्जन (कमाई) में लगे रहते हैं। प्रत्येक परिवार की अपनी विशेष संपत्ति होती है जिस पर उसका अपना अधिकार होता है।

(5) निवास स्थान या आवास स्थान

 परिवार की एक महत्वपूर्ण विशेषता उसका स्थायी निवास स्थान होता है। सभी परिवार के सदस्य एक ही घर या निवास स्थान में रहते हैं, जो उन्हें शारीरिक सुरक्षा और विभिन्न सुविधाओं के लिए आवश्यकता प्रदान करता है। अगर किसी सदस्य को कहीं जाने की आवश्यकता पड़े तो भी, परिवार का निवास स्थान स्थायी बना रहता है, क्योंकि उस परिवार का सदस्य अस्थायी रूप से किसी अन्य स्थान पर जा रहा होता है।

(6) सार्वभौमिक  (संपूर्ण विश्व में फैला हुआ)

परिवार एक ऐसा संघ है जो समाज की आधारशिला होता है और विश्व के समस्त समाजों में पाया जाता है। इतिहास के विभिन्न युगों में, परिवार का अस्तित्व देखा जा सकता है, जो कि समय-समय पर उसके स्वरूप में परिवर्तनों का सामना करता है, परंतु इसका महत्व आज भी उतना ही है जितना कि पहले था। यह सामाजिक इकाई हर समुदाय में प्रमुख भूमिका निभाती है और समाज की स्थायिता और संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

(7) सामाजिक सुरक्षा 

परिवार में प्रत्येक सदस्य को विशेष स्थान और पद प्राप्त होता है, जैसे कि माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची आदि। वे अपने परिवार के सदस्यों की चिंता करते हैं और समाज की सुरक्षा और उनके समाजिक स्तर की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं। इस तरह, वे परिवार की सामाजिक सुरक्षा के लिए भी काम करते हैं और सामाजिक अपमान या अन्य सामाजिक समस्याओं से उनके परिवार को बचाने का प्रयास करते हैं।

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