भारतीय संसद के दोनों सदनों का पारस्परिक संबंध
लोकसभा एवं राज्यसभा के पारस्परिक संबंधों को निम्नलिखित शिक्षकों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है —
भारतीय संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में पारस्परिक संबंध
(1) प्रशासनिक क्षेत्र में
केंद्रीय मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होती है, इसीलिए यही उसे नियंत्रण में रखती है। राज्यसभा मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर उसे पदच्युत नहीं कर सकती है, जबकि लोकसभा मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर उसे पदच्युत कर सकती है। राज्यसभा में मंत्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं, उनकी नीतियों की आलोचना की जा सकती हैं।
(2) वित्त विधेयक के क्षेत्र में
वित्त विधेयक तथा बजट सर्वप्रथम लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं । लोकसभा में विधायक पारित हो जाने के पश्चात राज्यसभा में भेजा जाता है। वहां इस विधेयक की आलोचना तो की जा सकती है किंतु इसे रद्द नहीं किया जा सकता और ना ही इसमें किसी प्रकार की कटौती की जा सकती है। राज्यसभा वित्त विधेयक की पारित होने में अधिक से अधिक 14 दिन का विलंब कर सकती है।
(3) महाभियोग के क्षेत्र में
राष्ट्रपति पर संविधान के अतिक्रमण का आरोप लगाने में दोनों सदनों के अधिकार समान है, क्योंकि जब एक सदन राष्ट्रपति पर आरोप लगता है, तब दूसरा सदन उन तथ्यों की जांच पड़ताल करता है। इस प्रकार दोनों सदन मिलकर ही राष्ट्रपति को पदच्युत कर सकते हैं।
(4) निर्वाचन के क्षेत्र में
राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों को निर्वाचन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त है।
(5) संविधान में संशोधन के क्षेत्र में
संविधान में संशोधन करने की दृष्टि से भी दोनों सदनों को समान अधिकार प्राप्त है। संविधान में संशोधन संबंधी विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है, किंतु विधायक के संबंध में दोनों सदनों की स्वीकृति होनी आवश्यक होती है।
(6) विधि निर्माण के क्षेत्र में
सैद्धांतिक रूप से साधारण कानून के संदर्भ में दोनों सदनों को समान अधिकार प्राप्त है। साधारण विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। कोई भी विधायक पहले दोनों सभाओं द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है, तत्पश्चात राष्ट्रपति उसे पर अपनी स्वीकृति देता है तथा इसके बाद ही कोई विधायक कानून का रूप धारण करता है। यदि दोनों सदनों में विधायक के पारित होने में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है, तब राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित करता है। उसे बैठक में विधायक के पारित होने के संबंध में अंतिम निर्णय लिया जाता है । बैठक में प्रस्ताव बहुमत से पारित हो जाता है। लोकसभा की सदस्य संख्या अधिक होने के कारण व्यवहार में निर्णय लोकसभा के सदस्यों के पक्ष में ही होता है।
(7) अन्य क्षेत्र में
उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को अपदस्थ करने के संदर्भ में भी दोनों सभाओं की सहमति आवश्यक है। राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई संकटकालीन घोषणा की भी दोनों सदनों द्वारा पुष्टि होनी आवश्यक है।
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