गुटनिरपेक्षता की उपलब्धियाँ | Gutnirpekshta ki uplabdhiyan

गुटनिरपेक्षता की उपलब्धियाँ

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रमुख उपलब्धियों का अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है—

(1) गुटनिरपेक्षता की नीति को मान्यता

जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन आरंभ किया गया तो विश्व के विकसित तथा अविकसित राष्ट्रों ने इसको गंभीरता से नहीं आँका तथा इसे राजनीति के विरुद्ध एक संकल्पना का नाम दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रवर्तकों ने सोचा कि इसके विषय में राष्ट्रों को कैसे समझाया जाए तथा विश्व के राष्ट्रों से इसे कैसे मानता दिलाई जाए। विश्व के दोनों राष्ट्र — अमेरिका तथा सोवियत संघ कहते थे कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिवाय एक ‘धोखे’ के और कुछ नहीं है। अतः विश्व के राष्ट्रों को किसी एक गुट में अवश्य सम्मिलित होना चाहिए। परंतु गुटनिरपेक्ष आंदोलन अपनी नीतियों पर जुड़ रहा। समय व्यतीत होने के साथ-साथ विश्व के दोनों गुटों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया। साम्यवादी देश का विश्वास साम्यवादी विचारधारा से हटकर एक नवीन स्वतंत्र विचारधारा की ओर आकर्षित होने लगा। उन्होंने विश्व में पहली बार इस बात को स्वीकार किया कि गुटनिरपेक्ष देश वास्तव में स्वतंत्र हैं।

(2) शीत युद्ध के भय को दूर करना (शांति स्थापित करना)

शीत युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तनाव का वातावरण व्याप्त था। परंतु गुटनिरपेक्षता की नीति ने इस तनाव को शिथिलता की दशा में लाने के लिए भरसक प्रयत्न किया तथा इसमें सफलता भी प्राप्त की।

(3) शीतयुद्ध को निष्क्रिय करना 

अनेक गुटनिरपेक्ष देश चाहते थे कि विश्व के दोनों गुटों के मध्य शांति तथा सद्भावना का वातावरण बने। शीत युद्ध के कारण अनेक देशों में भ्रम व्याप्त था कि यह शांति किसी भी समय युद्ध के रूप में भड़क सकती है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने शीत युद्ध को हथियारों के युद्ध में बदलने से रोका तथा अंतर्राष्ट्रीय जगत में व्याप्त भ्रम को दूर किया। सर्वोच्च शक्तियाँ समझ गई की व्यर्थ में रक्त बहने कोई लाभ नहीं है।

(4) विश्व के संघर्षों को दूर करना

गुटनिरपेक्षता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने विश्व में होने वाले कुछ भयंकर संघर्षों को टाल दिया। धीरे-धीरे उनके निदान ढूंढ लिए गए। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने आणविक अस्त्र के खतरों को दूर करके अंतरराष्ट्रीय जगत में शांति तथा सुरक्षा को बनाए रखने में योगदान दिया। विश्व के छोटे-छोटे विकासशील तथा विकसित राष्ट्रों को दो भागों में विभाजित होने से रोका।

(5) व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार विभिन्न पद्धतियों का आविष्कार करता है

गुटनिरपेक्ष राज्यों को एक उपलब्धि यह भी है कि इसने संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ जैसे देशों की नीतियों को नकारते हुए अपनी प्रकृति के अनुकूल पद्धतियों का विकास किया। इस प्रकार भारत ने विश्व बंधुत्व, समाज कल्याण तथा समाज के समाजवादी ढाँचे के अनुसार गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को चलाने के लिए प्रेरित किया।

(6) नि:शस्त्रीकरण तथा अस्त्र

नियंत्रण की दिशा में भूमिका— गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देशों ने नि:शस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के लिए विश्व में अवसर तैयार किया। यद्यपि क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष देशों को तुरंत सफलता नहीं मिली ,तथापि विश्व के राष्टों को यह विश्वास होने लगा कि हथियारों को बढ़ावा देने से विश्व शांति संकट में पड़ सकती है। यह गुटनिरपेक्षता का ही परिणाम है कि 1954 में आणविक अस्त्र के परीक्षण पर प्रतिबंध लगा तथा 1963 में आंशिक परीक्षण पर प्रतिबंध स्वीकार किए गए।

(7) संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मान

गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का भी सदैव सम्मान किया, साथ ही संगठन के वास्तविक रूप को रूपांतरित करने में भी सहयोग दिया। पहली बात तो यह है कि गूटनिरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या इतनी है कि शीतयुद्ध के वातावरण को तटस्थता की नीति के रूप में परिवर्तन करने में राष्ट्रों के संगठन की बात सुनी गई। इससे छोटे राष्ट्रों पर संयुक्त राष्ट्र संघ का नियंत्रण सफलतापूर्वक लागू हो सका। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के महत्व की वृद्धि करने में भी सहयोग दिया।

(8) आर्थिक सहयोग का वातावरण बनाना 

गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विकासशील राष्ट्रों के बीच अपनी विश्वसनीयता का ठोस परिचय दिया जिसके कारण विकासशील देशों को समय-समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त हो सकी। कोलंबो शिखर सम्मेलन में तो आर्थिक घोषणा पत्र तैयार किया गया जिससे गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के मध्य अधिक से अधिक आर्थिक सहयोग की स्थिति निर्मित हो सके। एक प्रकार से गुटनिरपेक्षता का आंदोलन आर्थिक सहयोग का एक संयुक्त मोर्चा है।

(9) नयी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की अपील

वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति ने नई करवट बदली है। अतः नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के संबंध में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की यह अपील तथा माँग है कि विश्व मंच पर ‘आर्थिक विकास सम्मेलन’ का आयोजन किया जाए जो विश्व में व्यापार की स्थिति सुधरे, विकासशील राष्ट्रों को व्यापार करने के अवसर प्रदान करें, ‘सामान्य पल’ के अनुसार गुटनिरपेक्ष राष्ट्र को तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी दोनों प्रकार का अनुदान प्राप्त हो। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की पहल के परिणामस्वरुप 1974 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने छठा विशेष अधिवेशन आयोजित किया जिसमें ‘नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था स्थापित करने की घोषणा’ का प्रस्ताव पारित किया गया। कुछ समय बाद इस घोषणा पत्र पर विकसित राष्ट्रों ने भी विचार–विमर्श किया, जो गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की बहुत बड़ी उपलब्धि है।

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