भारतीय लोक निगमों के प्रमुख दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय

भारतीय लोक निगमों के दोष तथा उपाय 

भारत में लोक निगमों का उदय कुछ ही समय पहले हुआ है। कतापी उनके कार्य प्रणाली के विविध पक्षों के विषय में विरोधी विचार प्रकट किए गए हैं। भारतीय लोक निगमन में निम्न प्रमुख दोष पाए जाते हैं परंतु उन्हें कुछ विचारों को अपनाकर दूर भी किया जा सकता है। 

भारतीय लोक निगमों के प्रमुख दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय

(1) निगमों में वित्तीय परामर्शदाताओं की नियुक्ति 

लोक निगमन में परामर्शदाताओं की नियुक्ति अब तक प्रबंध निदेशकों के अधिकार तथा उनकी सहायता को कम करने वाली सिद्ध हुई है। इससे निगमों के कार्यों में काफी कठिनियां उत्पन्न हुई है।

उपाय - इस दोष को दूर करने के लिए सरकार को सार्वजनिक धन के उचित सदुपयोग की व्यवस्था के लिए निर्गमन के प्रबंध निदेशकों अथवा महानिदेशकों पर पूर्णता वित्तीय उत्तरदायित्व डालने चाहिए।

(2) निगमों में सरकारी अधिकारियों की अधिकता 

भारतीय निगमों का एक बड़ा दोष निगमों में सरकारी अधिकारियों की अधिकता का होना है। यह अधिकारी निर्गमन के कार्यों में अधिक से अधिक हस्तक्षेप करते रहते हैं जिसे निगमों का कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। भारत में निर्गमन के कार्य प्रणाली सुधारने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कर्मचारी राज्य बीमा निगम के प्रथम महानिदेशक डॉक्टर कटिहार को इस कार्य के लिए इंग्लैंड से विशेष रूप से बुलवाया किंतु, यहां पर कुछ दिन कार्य करने के पश्चात उन्हें इस निगम में श्रम मंत्रालय का अत्यधिक हस्तक्षेप उचित नहीं लगा और वह इस कार्य को छोड़कर चले गए। 

उपाय - इस दोष को दूर करने के लिए निगमों के प्रबंध मंडलों में सरकारी अधिकारियों की संख्या कम करनी चाहिए।

(3) अंकेक्षण तथा मूल्यांकन की समस्या 

भारतीय लोक निगमन का एक दोषियों है कि निगमन का नियमित अंकेक्षण उनके अंकेक्षण परीक्षक द्वारा किया जाता है और भारत के महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रण के द्वारा इस संबंध में परीक्षण जांच व टिका किया जाता है। कुछ जांच संसदीय समिति द्वारा की जाती है।

उपाय -इस दोष को लोक निगमन से दूर करने के लिए नियमों में प्रक्रिया अंकेक्षण, आदित्य अंकेक्षण तथा कुशलता उकेक्षण आरंभ कर देना चाहिए। इसे संसद में पूछे जाने वाले प्रश्नों में काफी कमी आ जाएगी तथा लोक निगम भी व्यावसायिक सिद्धांतों के आधार पर कार्य करने में सक्षम हो सकेंगे।

(4) प्रबंधकीय एवं तकनीकी योग्यताधारी पदाधिकारीयों की कमी 

भारत में लोक निगमन का एक प्रमुख दोष यह भी है कि उन्होंने अभी तक प्रबंधक किया तथा तकनीकी योग्यता धारी पदाधिकारीयों का चुनाव तथा प्रशिक्षण देने की नीति का विकास नहीं किया है। इस कार्य के लिए भी सरकारी निर्देशों तथा सरकारी कर्मचारियों पर ही निर्भर रहते हैं।

उपाय - इस दोष को दूर करने के लिए इन्हें सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रवृत्ति को कम करना चाहिए तथा प्रबंधकीय एवं तकनीकी योग्यता धारी व्यक्तियों को निगमों में नियुक्ति करना चाहिए।

(5) निर्गमों पर मंत्रिमंडलीय नियंत्रण की व्यवस्था और अस्पष्ट एवं दोषपूर्ण 

लोक निर्गमन के परिप्रेक्ष्य में मंत्रिमंडलीय नियंत्रण की व्यवस्था और अस्पष्ट तथा दोषपूर्ण है। इसे मंत्रिमंडल लोक निर्गमन के प्रतिदिन की क्रियाकलापों में हस्तक्षेप करने लगते हैं।

छागला जांच आयोग ने मूंढ़ता कांड की जांच करके यह ज्ञात किया कि वित्त मंत्री जीवन बीमा निगम के दैनिक कार्यों में हस्तक्षेप करता रहता था। जीवन बीमा निगम में वित्त मंत्री के कहने पर एक करोड़ 38 लख रुपए मूंढ़ता व्यापारिक प्रतिष्ठानों के शेयर खरीदने में लगा दिए थे। बाद में ही हो गया आज हुआ कि वह फर्जी संस्थान थे।

उपाय - इस दोस्त को दूर करने के लिए छागला आयोग ने कुछ निम्नलिखित सिफारिश से प्रस्तुत की थी—

1. सरकार को स्वास्थ्यशासी कानून द्वारा स्थापित निगमों के कार्य संचालन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि वह हस्तक्षेप ही करना चाहते हैं तो उन्हें लिखित रूप से निर्देश देने की जिम्मेदारी से नहीं बचना चाहिए।

2. जीवन बीमा निगम जैसे निर्गमन के अध्यक्षों की नियुक्ति व्यावसायिक तथा वित्तीय क्षेत्र का अनुभव रखने वाले और शेयर बाजार की रितियों तथा वीडियो से परिचित व्यक्ति में से ही की जानी चाहिए।

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