उत्तम एवं आदर्श संविधान के गुण
संविधान वह है जो राजनीतिक अभिजात वर्ग को अच्छे नैतिक आकार में रखता है और स्थायी राजनीतिक उत्कृष्टता प्रदान करता है। एक उत्तम एवं आदर्श संविधान में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है।
(1) स्पष्टता
उत्तम संविधान का प्रथम गुण यह है कि वह इतनी सरल और स्पष्ट भाषा में लिखा हो कि उसे प्रत्येक व्यक्ति समझ सके। संविधान जितना अधिक स्पष्ट एवं निश्चित होगा, वह उतना ही अधिक श्रेष्ठ भी होगा। प्रायः स्पष्टता के अभाव में संविधान में निहित भावों का गलत अर्थ लगा लिया जाता है।
(2) लचीलापन
संविधान को लचीला होना चाहिए, जिससे समय और आवश्यकता के अनुसार उसमें सरलता पूर्वक संशोधन किया जा सके।
(3) व्यापकता
संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान संक्षिप्त संविधान का उदाहरण है। संक्षिप्त संविधान होने के कारण उसमें संशोधन ने विभिन्न अंगों के संबंध में संक्षिप्त चर्चा की गई है जबकि अधिकांश से बातों को परंपराओं पर छोड़ दिया गया है। इसे संविधान का अतिक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। अतः संविधान व्यापक होना चाहिए जिससे शासन से संबंधित सभी बातों को स्पष्ट किया जा सके।
(4) मौलिक अधिकारों की घोषणा
संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का पर्याप्त स्पष्टीकरण होना चाहिए। अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या होने से सरकार का कोई भी अंग नागरिकों के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता है।
(5) धर्मनिरपेक्षता पर आधारित
संविधान में सांप्रदायिक तत्वों का उल्लेख कदापि नहीं होना चाहिए। संविधान की ओर से किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए।
(6) सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल
प्रत्येक देश की शासन प्रणाली अपनी सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित होती है। अतः संविधान नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दिशाओं के अनुकूल होना चाहिए।
(7) स्वतंत्र न्यायपालिका
उत्तम संविधान में एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था होना अत्यंत आवश्यक अथवा जरूरी है। न्यायपालिका को विधायिका एवं कार्यपालिका के प्रभाव से प्रायः मुक्त होना चाहिए। स्वतंत्र न्यायपालिका के अभाव में नागरिकों के मौलिक अधिकार सुरक्षित नहीं रह सकते हैं।
(8) अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
आदर्श संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की व्यवस्था भी होनी चाहिए, जिसमें बहुसंख्यक उनका शोषण न कर सकें।
(9) शासन व्यवस्था का स्पष्ट उल्लेख
आदर्श संविधान में शासन व्यवस्था का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
(10) राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत की व्याख्या
अच्छी संविधान में राज्य की नीति की निदेशक सिद्धांतों की व्याख्या की व्यवस्था भी होनी चाहिए, क्योंकि यह सिद्धांत लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक होते हैं। लोकतांत्रिक देश में तो सत्ता का स्थायित्व व परिवर्तन भी सरकार द्वारा इन निर्देशक तत्वों के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है।
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