समान नागरिक संहिता (UCC- Uniform Civil Code)
UCC की शुरुआत कब और कैसे हुई ?
अब पहली बात करते हैं UCC की शुरुआत कब और कैसे हुई? स्वतंत्रता के बाद, पहले जनसंघ और अब बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं। इनमें पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था। तथा दूसरा एजेंडा, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण कराना और अब तीसरा एजेंडा, पूरे देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कराना है। पहले दो एजेंडे पर बीजेपी (BJP) का काम खत्म हो चुका है। अब बारी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की है। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता से संबंधित बिल 6 फरवरी को पेश किया और अगले ही दिन यह बिल पास होकर अब कानून बन चुका है। जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है।
ucc क्या है? अथवा क्या है समान नागरिक संहिता
सम्मिलित सिविल कोड (UCC) का मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, जिससे किसी भी धर्म, जाति या लिंग के व्यक्ति के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे कानूनी मामलों में एक जैसे नियम लागू हों। यह अनुच्छेद 44 के तहत सभी नागरिकों को एक समान रूप से अधिकार और फर्ज प्रदान करता है। UCC के प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता को सुनिश्चित करना है, ताकि किसी भी धार्मिक या सामाजिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जाए।
यूसीसी कानून क्या है?
समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक का उद्देश्य नागरिक कानूनों में एकरूपता लाना है। इसका मतलब है कि प्रत्येक नागरिक के लिए एक ही कानून होना चाहिए, जिससे कि धार्मिक या सामाजिक प्रतिबंधों का कोई असर न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक, और जमीन-जायदाद के बंटवारे जैसे महत्वपूर्ण कानूनी मामलों में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।
समान सिविल संहिता किस अनुच्छेद में दी गई है
समान नागरिक संहिता (UCC) या यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) एक कानून है जो देश में सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक ही सामान, एक बराबर कानून बनाने की बात करता है। इसका मतलब है कि इसे समाज में असमानता और भेदभाव को खत्म करने के लिए लागू किया जाएगा, जिससे हर नागरिक को समान अधिकार और जिम्मेदारियों का अनुभव हो। यह कानून संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत प्रस्तावित किया गया है।
समान नागरिक संहिता किस राज्य में लागू है?
गोवा नागरिक संहिता एक मात्र भारत का एक राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। लेकिन अब उत्तराखंड में भी यह लागू होने जा रहा है। यह गोवा राज्य में 1961 में पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता के बाद लागू किया गया था और इसे “गोवा संविधानिक संहिता” के रूप में जाना जाता है। इसमें विवाह, तलाक और उत्तराधिकार के मुद्दों पर समानता का प्रमाण है। यह संहिता गोवा के नागरिकों के लिए केवल एक धार्मिक सामुदायिक कानून नहीं है, बल्कि यह उनके सभी लोगों के लिए लागू है।
यूसीसी क्यों जरूरी है?
यूसीसी के लागू होने के समर्थकों का मुख्य तर्क है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और कानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा। इसके अनुसार, यूसीसी के लागू होने से सभी नागरिकों को समान कानूनी अधिकार मिलेंगे, जिससे धार्मिक या सांस्कृतिक भेदभाव कम होगा।
हालांकि, इसके विरोधियों का मानना है कि यूसीसी का लागू होना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। वे यह भी दावा करते हैं कि यूसीसी का लागू होना सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को खतरे में डाल सकता है।
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