शीत युद्ध में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच मतभेद के कारण
(1) परमाणु बम के आविष्कार का प्रचार
कुछ विद्वानों का मत है कि शीतयुद्ध के प्रारंभ होने का एक महत्वपूर्ण कारण परमाणु बम के आविष्कार का प्रचार है। ऐसा कहा जाता है कि परमाणु बम ने हिरोशिमा तथा नागासाकी का ही सर्वनाश नहीं किया, वरन् युद्धकालीन मित्र राष्ट्रों के हृदय में भी शंका तथा भय की स्थिति उत्पन्न कर दी। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में परमाणु बम बनाने के संबंध में भी अनुसंधान का कार्य तो पहले से चल रहा था। वैसे इस अनुसंधान में अमेरिका ने ब्रिटेन को सम्मिलित किया था तथा परमाणु बम से संबंधित कुछ तकनीकी बिंदु उसे भी बता दिए थे, परंतु सोवियत संघ से अपने अनुसंधान को गुप्त रखा। अमेरिका तथा ब्रिटेन द्वारा परमाणु बम बनाए जाने को गुप्त रखने के कारण सोबियत संघ ने क्षोभ व्यक्त किया। अमेरिका के पास परमाणु बम होने की जानकारी ब्रिटेन तथा कनाडा को तो थी, परंतु यह रहस्य सोवियत संघ से छुपाया गया था। इस कारण सोवियत संघ को अपार दुःख हुआ। उसने कहा कि यह विश्वास घात का कार्य है। दूसरी ओर परमाणु बम पर खोज के कारण अमेरिका तथा ब्रिटेन प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। वे यह बात प्रकट कर रहे थे कि हमें अब सोवियत संघ की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। इस कारण दोनों शक्तियों के बीच वैमनस्य बढ़ गया।
(2) सोवियत संघ द्वारा अमेरिका की आलोचना
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने से कुछ समय पूर्व से ही सोवियत संघ ने अमेरिका की आलोचना करना प्रारंभ कर दिया था। वहाँ की पत्रिकाओं में ऐसे लिख सकते थे जिनमें अमेरिकी नीतियों की आलोचना तीव्र शब्दों में की गई थी। इस प्रकार के कार्यों से अमेरिकी प्रशासन तथा जनता दोनों सोवियत संघ के विरोधी हो गए। अब अमेरिका ने सोवियत संघ की अमेरिकी विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएँ बनानी प्रारंभ कीं जिससे साम्यवाद के प्रचार प्रसार के कार्यों पर अंकुश लगाया जा सके।
(3) सोवियत संघ द्वारा पश्चिम की नीति का विरोध करना
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात एक ओर सोवियत संघ पश्चिम की नीति का विरोध कर रहा था तो दूसरी ओर पश्चिमी यूरोप के राष्ट्र सोवियत संघ के विरुद्ध प्रचार करने में संलन्ग थे। 18 अगस्त 1946 ई को बर्नेज (अमेरिका के सचिव) तथा बेविन (ब्रिटेन के विदेशमंत्री) ने कहा, “हमें तानाशाही के एक रूप के स्थान पर उसके दूसरे रूप के संस्थान को रोकना चाहिए।” इसके पश्चात् 5 मार्च, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा, “बाल्टिक में स्टेटिन से लेकर एड्रियाटिक में टीटस्के तक महाद्वीप में एक लौह आवरण क्षेत्र में निवास करने वाली जनता न केवल सोवियत प्रभाव में है वरन् सोवियत नियंत्रण में है। स्वतंत्रता की दीपशिखा प्रज्वलित रखने तथा इसाई सभ्यता की सुरक्षा के लिए अब कुछ करना है।”
इस प्रकार ब्रिटेन तथा अमेरिका ने आंग्ल–अमरीकी गठबंधन की आवश्यकता पर बल दिया। चर्चिल ने जो भाषण दिया उसके परिणाम दूरगामी हुए। अब दोनों महाशक्तियाँ एक–दूसरे के विरुद्ध विष वमन करने लगीं । दोनों का दृष्टिकोण शत्रुतापूर्ण हो गया।
(4) सोवियत संघ द्वारा ‘वीटो’ का प्रयोग
सोवियत संघ ने बात बात में ‘वीटो’ का प्रयोग करना प्रारंभ किया जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में बाधा पड़ने लगी। सोवियत संघ की दृष्टि में संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति तथा सुरक्षा की स्थापना करने वाली एक विश्व संस्था न होकर अमेरिका का एक प्रचार तंत्र था। तथा सोवियत संघ ने वीटो की शक्ति का प्रयोग करके पश्चिमी राष्ट्रों के प्रस्तावों को निरस्त करना प्रारंभ कर दिया। ऐसी स्थिति में यूरोप के पश्चिमी राज्य तथा अमेरिका यह सोचने लगे कि सोवियत संघ संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था को समाप्त करना चाहता है। अब पश्चिमी राज्य सोवियत संघ की कटु आलोचना करने लगे। इससे विश्व में तनाव का वातावरण व्याप्त हुआ।
(5) सोवियत संघ और अमेरिका के वैचारिक मतभेद के कारण
युद्ध के समय में, दोनों महाशक्तियों के बीच वैचारिक मतभेद उभरने लगे थे। सोवियत संघ ने साम्यवाद को बढ़ावा देने का प्रयास किया जबकि अमेरिका पूंजीवाद का प्रबल समर्थक रहा। सोवियत संघ ने समाजवादी आंदोलनों का समर्थन किया और इस नीति को न्यायपूर्ण और आवश्यक बताया। यह पूंजीवाद को गहरा आघात पहुंचाया और कई पूंजीवादी राष्ट्रों को सोवियत संघ की समाजवादी नीतियों का विरोध करने में परेशानी हुई। इस प्रकार, पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच तालमेल की कमी के कारण दोनों महाशक्तियों के बीच शीतयुद्ध का जन्म हुआ।
ऐसे और भी अनेक कारण थे जिनसे सोवियत संघ और अमेरिका के बीच मतभेद हुए।
एक टिप्पणी भेजें