सती प्रथा तथा बर्नियर ने सती प्रथा पर विचार
सती प्रथा क्या थी? सती प्रथा एक प्राचीन भारतीय प्रथा थी जिसमें पति की मौत होने पर पत्नी को भी उसकी चिता के साथ जला दिया जाता था। इस प्रथा में, विधवा को या तो आत्मसमर्पण के लिए रजामंदी दी जाती थी या फिर उसे जबरन इस क्रिया में शामिल किया जाता था। पति की चिता के साथ जलने वाली महिला को 'सती' कहा जाता था, जिसका अर्थ होता था 'पवित्र महिला'। यह प्रथा भारतीय समाज में बहुत प्राचीन काल से प्रचलित थी, लेकिन इसका अधिकतर समाज ने इसे निष्प्राण कर दिया है क्योंकि यह एक अत्याचारिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली प्रथा थी।
सती प्रथा एक प्राचीन धार्मिक प्रथा
सती एक प्राचीन भारतीय प्रथा थी, जिसमें किसी पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी अपने पति के अंतिम संस्कार के समय उसकी चिता में स्वयं प्रवेश करके आत्मत्याग कर देती थी। 1829 में अंग्रेजों द्वारा भारत में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया जाने के बाद से, इस प्रथा की समाप्ति हो गई थी।
बर्नियर ने सती प्रथा के बारे में क्या लिखा है
बर्नियर जैसे अनेक यूरोप यात्रियों तथा लेखकों ने तत्कालीन भारतीय महिलाओं की दैनिक स्थिति की ओर यदि उनका ध्यान खींचा तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि उसे समय भारत में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा
बर्नियर के वृतांत में सती प्रथा के रूप में समाज का एक काला चेहरा उजागर किया गया। बर्नियर ने सती प्रथा का मार्मिक विवरण प्रस्तुत किया है जो कुछ इस प्रकार है—
(1) यद्यपि कुछ भारतीय महिलाएं प्रसंसता से मृत्यु को (सती होने के अवसर पर) गले लगा लेती थी लेकिन अन्य विधवा महिलाओं को तुरंत ही जल करने के लिए बाद किया जाता था, जो की निंदनीय था।
(2) सती बालिका; बर्नियर के वृतांत से सबसे मार्मिक वितरण में सती बालिका का है जो इस प्रकार है— “लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुंदर अल्प वयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में 12 वर्ष से अधिक नहीं थी, की बाली होते हुए देखिए। उसे भयानक नरक की ओर जाते हुए व और सहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृतक प्रतीत हो रही थी; उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता है, वह कांपते हुए बुरी तरह से रो रही थी लेकिन तीन या चार ब्राह्मण, बूढी औरत, जिसने उसे अपने आस्तीन के नीचे दबाए हुआ था, उसकी सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को जबरन घटक स्थान की ओर ले गए, इस लकडियों पर बैठाया, उसके हाथ और पैर बांध दिए ताकि वह भाग ना सके। और इस स्थिति में उसे मासूम प्राणी को जिंदा जला दिया गया मैं अपनी भावना को दबाने में और उसके कोलाहल पूर्ण तथा व्यर्थ के क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था।”
निष्कर्ष
बर्नियर के अनुसार वह इस दृश्य को देखकर अपनी भावनाओं को दबाने और अपनी क्रोध को बाहर आने से रोकने में अपने आप को असमर्थ महसूस
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