सपिण्ड विवाह क्या है? इस पर दिल्ली हाई कोर्ट का क्या फैसला है? संपूर्ण जानकारी

सपिण्ड विवाह (sapinda marriage)

आज बात करते इस हफ्ते गरमाये मामले के बारे में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला की याचिका खारिज की, जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के सेक्शन 5(v) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग कर रही थी। यह धारा उन दो हिंदू व्यक्तियों के बीच विवाह को नियंत्रित करती है जो ‘सपिंड' होते हैं, यानी उनके खानदान में बहुत करीबी रिश्ता होता है। अगर दोनों के रिवाज में उनकी शादी की इजाजत हो, तो अनुमति दी जा सकती है। इसी मामले को देखते हुए अदालत ने कहा कि ‘अगर शादी के लिए साथी चुनने को बिना नियमों के छोड़ दिया जाए, तो ऐसे रिश्तों को मान्यता मिल सकती है।’

सपिण्ड विवाह क्या है? इस पर दिल्ली हाई कोर्ट का क्या फैसला है? संपूर्ण जानकारी
हिन्दू धर्म में सपिंड विवाह क्या है

सपिंड विभाग क्या है?

आइए अब हम पहले जानते हैं की सपिंड विवाह क्या है? सपिंड विवाह एक हिंदू मैरिज एक्ट के तहत एक विशेष प्रकार का विवाह है जो उन व्यक्तियों के बीच होता है जो आपस में बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं, और इसे सपिंड रिश्ते की सीमा में आने वाला माना जाता है। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत, यदि दो व्यक्तियों में से एक व्यक्ति दूसरे के सीधे पूर्वज हैं और यह रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आता है, या यदि दोनों का कोई ऐसा पूर्वज है जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आता है, तो उन दोनों के बीच का विवाह को सपिंड विवाह कहा जाता है। यह विशेष तरीके से स्वीकृत रिश्तों को संरक्षित करने और परंपरागत विवाह प्रथाओं को बनाए रखने का प्रयास है और समाज में सबसे पारंपरिक रूप से मान्यता प्राप्त विवाहों में से एक है। 

सपिण्ड विवाह में, विवाही पुरुष को अपने विवाह के पीछे के तीन पीढ़ियों के सम्बंधियों के साथ सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए: पिता की पीढ़ी, दादा की पीढ़ी, और प्रपितामह की पीढ़ी। इसका मतलब है कि विवाही पुरुष को अपने पिता, दादा, और प्रपितामह के ब्राह्मण या ब्राह्मण वर्ग के सपिण्डों के साथ संबंध बनाए रखना चाहिए। इस प्रकार, विवाही पुरुष अपने आत्मा को अपने परिवार के साथ मिला कर रखता है और पितृ ऋण को पूरा करने का कार्य करता है। 

सपिण्ड विवाह को लेकर हाईकोर्ट का क्या जवाब था?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने महिला की दलीलों को अस्वीकार किया, कहते हुए कि याचिकाकर्ता ने सपिंड विवाह के उचित सबूत प्रदान नहीं किया, जो इस प्रथा को स्वीकृति देने के लिए आवश्यक हैं। न्यायालय ने यह भी बताया कि विवाह में साथी का चयन विनियमन के अधीन हो सकता है।

सपिंड शादी पर रोक में कानून की क्या कोई छूट है?

सपिंड शादी पर रोक में कानून की क्या कोई छूट है? जी हां बिल्कुल छूट मिल सकती है लेकिन इसके लिए कुछ नियमों का ध्यान रखना पड़ता है जो कि यह है— यदि लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिंड शादी का रिवाज है, तो उन्हें इस नियम के तहत छूट मिलती है और वे ऐसी शादी कर सकते हैं। 

भारत में सपिंडा विवाह कानूनी है? 

धारा 5(v) में उल्लिखित हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की यह धारा विशेषता से सपिंड विवाह को नियंत्रित करने के लिए है। यहां इस धारा का एक अंश है— 

“यदि कोई विवाह सपिंड विवाह होने की धारा 5(v) का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है और ऐसी कोई स्थापित प्रथा नहीं है जो इस तरह की प्रथा की अनुमति देती हो, तो इसे शून्य घोषित कर दिया जाएगा।”

इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति सपिंड विवाह के निर्देशों का उल्लंघन करता है और उसमें कोई स्थापित प्रथा नहीं है जो उसे इस प्रथा के तहत विवाह करने की अनुमति देती हो, तो उस विवाह को शून्य घोषित किया जाएगा।

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