राज्यसभा (अर्थ, शक्तियाँ (अधिकार) एवं कार्य)
राज्यसभा भारतीय संविधान द्वारा स्थापित एक संसदीय संस्था है जो भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह संसद की ऊपरी प्रतिनिधि सभा होती है, जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधित्व होता है। यह सदस्यों द्वारा निर्वाचित होती है और उनकी कुल संख्या 245 होती है, जिनमें 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामांकित होते हैं। राज्यसभा का मुख्य कार्य राज्यों के हितों की रक्षा और समर्थन करना है, और यह कई कानूनी प्रक्रियाओं में भी भाग लेती है।
राज्यसभा की शक्तियाँ (अधिकार) एवं कार्य
राज्यसभा की शक्तियों (अधिकारों) तथा कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है—
(1) विधायिनी शक्तियाँ
धन अथवा वित्त विधेयक के अतिरिक्त अन्य विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत हो सकते हैं। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तावित हो सकता है। साधारण विधेयक तब तक पारित नहीं समझा जाएगा, जब तक वह राज्यसभा से भी पारित न हो जाए।
(2) संविधान में संशोधन
संविधान में प्रत्येक संशोधन के लिए राज्यसभा के 2/3 बहुमत की स्वीकृति आवश्यक है अन्यथा संशोधन नहीं हो सकता है।
(3) राज्य सूची से संबंधित विषय
संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार, राज्यसभा राज्य सूची से संबंधित किसी भी विषय को दो / तीन बहुमत से राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर सकती है। इस प्रस्ताव के पारित होने के उपरांत संसद को 1 वर्ष तक के लिए उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। राज्यसभा यदि चाहे तो इस कानून को पुनः एक-एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ा सकती है। यह शक्ति लोकसभा को प्राप्त नहीं होती है। यह राज्यसभा का विशिष्ट अधिकार है।
(4) न्यायिक शक्तियाँ
राज्यसभा को लोकसभा के साथ राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति पर महाभियोग का आरोप लगाने या उसकी जाँच करने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने का अधिकार भी राज्यसभा को लोकसभा के समान ही प्राप्त है।
(5) वित्त संबंधी अधिकार
वित्त विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में ही पेश किया जाता है, राज्यसभा में नहीं। राज्यसभा अनुमोदन हेतु प्रेषित वित्त विधेयक को अधिक से अधिक 14 दिन के लिए रोक सकती है। वह विधेयक को पारित करें या ना करें, परंतु 14 दिन के बाद वह वित्त विधेयक राज्यसभा द्वारा भी पारित हुआ मान लिया जाता है।
(6) कार्यपालिका संबंधी अधिकार
राज्यसभा केवल मंत्रियों से प्रश्न एवं पूरक प्रश्न पूछ सकती है, उनके कार्य व नीति की आलोचना कर सकती है परंतु वह मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित नहीं कर सकती।
(7) अखिल भारतीय सेवाएँ प्रारंभ करने का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार, राज्यसभा अपने उपस्थिति तथा मत देने वाले सदस्यों को दो-तिहाई बहुमत से नई अखिल भारतीय सेवाएँ प्रारंभ करने का अधिकार केंद्र सरकार को दे सकती है। यह शक्ति भी लोकसभा को प्राप्त नहीं है। यह राज्यसभा का विशिष्ट अधिकार है।
(8) संकटकालीन उद्घोषणा संबंधित शक्ति
राष्ट्रपति की संकटकालीन घोषणा की स्वीकृति दोनों सदनों के द्वारा प्राप्त होनी विशेष रूप से आवश्यक है। यदि घोषणा उस समय की गई हो जब लोकसभा विघटित हो गई हो तो उस समय घोषणा का राज्यसभा के द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है।
(9) विविध शक्तियाँ
मनोनीत सदस्यों को छोड़कर संपूर्ण राज्यसभा भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावों में भाग लेती है। राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर की गई उद्घोषणाओं को जारी रखने के लिए लोकसभा के साथ राज्यसभा का अनुमोदन भी अति आवश्यक है।
(10) कानून बनाने का अधिकार (अनुच्छेद 249)
राज्यसभा की यह महत्वपूर्ण भूमिका है कि वह संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है। राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने के लिए राज्यसभा एक अहम विधायिका के रूप में काम करती है, जिससे राज्यों के प्रतिनिधियों को संबंधित मुद्दों पर अपने पक्ष को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है। इसके जरिए, राज्यसभा राज्यों के हितों और प्रतिनिधियों की आवाज को सुनती है और वे कानून बनाने में सहायक होती हैं।
समीक्षा अथवा निष्कर्ष
राज्यसभा की शक्तियों के विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि राज्यसभा न केवल द्वितीय सदन है, वरन् यह द्वितीय महत्व का सदन है तथा उसकी शक्तियों से उसका महत्व भी स्पष्ट होता है। लोकसभा की तुलना में निर्बल होते हुए भी उसकी शक्तियों का अत्यंत महत्व है। पायली के शब्दों में, “राज्यसभा एक निरर्थक अथवा व्यवस्थापन पर रोक लगाने वाला सदन ही नहीं है। वास्तव में, राज्यसभा शासन तंत्र का आवश्यक अंग है, केवल दिखावे मात्र का दूसरा सदन नहीं।”
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