राज्यपाल क्या होता है? नियुक्ति, कार्यालय तथा कार्य एवं शक्तियां

 राज्यपाल

राज्य में राज्यपाल की वह स्थिति होती है, जो केंद्र में राष्ट्रपति की होती है। राष्ट्रपति की तरह राज्यपाल भी राज्य की कार्यपालिका का वैधानिक अध्यक्ष है। राज्य के समस्त कार्य राज्यपाल के नाम से होते हैं, परंतु कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति राज्य की मंत्रिपरिषद के पास होती है। वस्तुत: राज्यपाल केवल औपचारिक तथा वैधानिक अध्यक्ष होता है। के० एम० मुंशी के शब्दों में, “राज्यपाल संवैधानिक व्यवस्था का प्रहरी है। वह ऐसी कड़ी है, जो कि राज्य को संघ से जोड़कर भारत की संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने में योग देती है।” संविधान के अनुच्छेद 154 में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि राज्य कि समस्य कार्यकारिणी शक्तियाँ उसे राज्य के राज्यपाल में निहित होंगी किन्तु इन शक्तियों का प्रयोग वह संविधान के अनुसार या तो स्वयं अथवा अपने अधीनस्थ पदाधिकारों द्वारा करेगा। संविधान के अनुसार तथा कुछ सीमा तक उसे स्वविवेक से कार्य करने का भी अधिकार प्राप्त है।

राज्यपाल क्या होता है? नियुक्ति, कार्यालय तथा कार्य एवं शक्तियां

  राज्यपाल की नियुक्ति 

अनुच्छेद 156 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। वह देश के किसी भी नागरिक को जो निर्धारित शर्तें पूरी करें, राज्यपाल नियुक्त कर सकता है। साधारणतया एक राज्य के लिए दूसरे राज्य के निवासी को इस पद पर नियुक्त किया जाता है। यद्यपि संविधान में योग्यता संबंधी कोई प्रावधान नहीं किया गया है तथापि सामान्यतः पुराने राजनीतिज्ञों , शिक्षाविदों, सेनानिवृत्त वरिष्ट अधिकारियों आदि को राज्यपाल पद पर नियुक्त किया जाता रहा है। राज्यपाल के पद के लिए निम्नांकित आर्हताएँ होनी चाहिए–

1– वह भारत का नागरिक हो।

2– वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो अथवा व्यक्ति को 35 वर्ष हो गए हो।

3– वह संसद या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य ना हो।

4– वह किसी सरकारी लाभ के पद पर कार्य न कर रहा हो।

राज्यपाल का कार्यकाल

संविधान के अनुच्छेद 156(१) के अनुसार, “राष्ट्रपति के प्रासादपर्यंन्त राज्यपाल पद धारण करेगा।” दूसरे शब्दों में राज्यपाल उसी समय तक अपने पद पर बना रह सकता है, जब तक राष्ट्रपति का उसमें विश्वास है। साधारणतः राजपाल की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए होती है; किंतु वह स्वेच्छा से राष्ट्रपति के पास त्यागपत्र भेजकर निर्धारित अवधि से पूर्व भी अपना पद त्याग सकता है। निर्धारित अवधि से पूर्व उसे पदच्युत करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को ही है।

वेतन या भत्ते

राज्यपाल को राज्यपाल परिलब्धियाँ, भत्ते एवं विशेषाधिकार संशोधन विधेयक के अनुसार, 36,000 रूपये प्रति माह वेतन निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त उसके लिए राज्य की राजधानी में निशुल्क निवास की व्यवस्था की गई है। 1987 के अधिनियम 17 द्वारा राज्यपाल को प्राप्त होने वाली परिलब्धियाँ और भत्ते उसके कार्यकाल के समय कम नहीं किया जा सकते हैं।

शपथ ग्रहण 

राज्यपाल पदभार सँभालने से पूर्व राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष संविधान की सुरक्षा, राज्य के कार्यों का न्यायपूर्वक संचालन और जन कल्याण आदि करने के लिए प्रयत्नशील रहने की शपथ लेता है।

          राज्यपाल की कार्य एवं शक्तियाँ

राज्यपाल राज्य का मुख्य व्यक्ति होता है। उस पर राज्य शासन के संचालन का समस्त दायित्व होता है। राज्यपाल की राज्य में वही स्थिति है, जो राष्ट्रपति की केंद्र में है। वस्तुतः दोनों की शक्तियों में कुछ क्षेत्रों को छोड़कर बहुत कुछ समानता है। डी•डी• बसु के शब्दों में, “ राज्यपाल की शक्तियाँ राष्ट्रपति की शक्तियों के समान हैं, सिर्फ कूटनीतिक, सैनिक तथा आपातकालीन अधिकारों को छोड़कर। ” इसलिए उसे अनेक अधिकार दिए गए हैं। इन अधिकारों को हम निम्नलिखित पाँच प्रमुख भागों में विभक्ति कर सकते हैं—

(1) कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ 

राज्यपाल के कार्यपालिका से संबंधित अधिकारों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है–

1– शासन संचालन संबंधित अधिकार

राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का वैधानिक प्रधान होता है। संपूर्ण राज्य के शासन के संचालन का भार राज्यपाल पर होता है, इसलिए उसे शासन संबंधी अनेक अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त हैं। वह राज्य के शासन संचालन हेतु अनेक कानूनों का निर्माण कराता है, मंत्रियों में शासन संबंधी कार्यों का वितरण करता है। वह अपने मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य से कभी भी शासन संबंधित सूचना प्राप्त कर सकता है अथवा प्रश्न पूछ सकता है। साथ ही मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य भी होता है कि वह कैबिनेट के निर्णय से राज्यपाल को अवगत कराता रहे। यहाँ यह बात स्मरणीय है कि व्यवहार में राज्य कार्यपालिका का अध्यक्ष मुख्यमंत्री ही होता है। राज्यपाल को मुख्यमंत्री से किसी भी प्रकार की सूचना माँगने का अधिकार है। वह मुख्यमंत्री से किसी भी मंत्री की व्यक्तिगत निर्णय को मन्त्रिपरिषद् के समक्ष पुनर्विचार के लिए रखने को कहा सकता है।

2– अधिकारियों की नियुक्ति

राज्यपाल विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करता है। परंतु विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने की स्थिति में राज्यपाल स्वविवेक से कार्य करता है। 1952 ई• से आज तक का अनुभव यह बताता है कि राज्यपाल ने स्वविवेक से ही कार्य किया है। और ऐसा प्रतीत होता है कि इस विषय में उसने केंद्रीय सरकार के अभिकर्ता की भूमिका निभाई है। विगत कुछ वर्षों से उत्तरप्रदेश विधानसभा की स्थिति त्रिशंकु विधानसभा की रही है। फरवरी, 2002 में आम चुनाव में यह स्थिति और भी गंभीर हो गई। कोई भी दल बहुमत सिद्ध करने की स्थिति में न होने के कारण अंततः राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने प्रदेश में मार्च 2002 में राष्ट्रपति शासन लेने की घोषणा की। इसे स्वविवेक के प्रयोग के उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। उसके उपरांत वह मुख्यमंत्री के परामर्शानुसार मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। इसके अतिरिक्त वह राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) तथा राज्य के अन्य उच्च पदाधिकारियों आदि की नियुक्ति भी करता है। उच्च न्यायालय की न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करता है।

3– विशेषाधिकार 

 राज्यपाल को कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त होते हैं, जिन्हें स्वविवेक से अधिकार कहा जाता है; क्योंकि इन अधिकारों का प्रयोग करने के लिए राज्यपाल पूर्ण स्वतंत्रता होता है। इनका प्रयोग राज्यपाल अपने विवेक से करता है।

4— आपातकालीन अधिकार 

   यदि राज्यपाल यह अनुभव करता है कि राज्य में संविधान के अनुसार शासन का संचालन असंभव हो गया है तो वह राष्ट्रपति को इसकी सूचना देता है। उसकी सूचना के आधार पर राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में आपातकाल की घोषणा कर देता है। तथा राष्ट्रपति के आदेश अनुसार वह राज्य के शासन का समस्त कार्यभार अपने हाथ में ले लेता है।

(2) न्याय संबंधी अधिकार 

संविधान के अनुच्छेद 161 के अनुसार राज्यपाल को अधिकार है कि वह राज्य सूची से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध दंड प्राप्त व्यक्ति के दंड को कम कर सकता है, दंड को कुछ समय के लिए रोक सकता है या पूर्णतया समाप्त भी कर सकता है। परंतु प्राण दंड से दंडित व्यक्ति का  दंड राज्यपाल क्षमा नहीं कर सकता है, यह अधिकार केवल राष्ट्रपति को ही प्राप्त है। राज्यपाल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति को परामर्श भी देता है।

(3) विधायिनी अधिकार 

राज्यपाल राज्य का प्रधान होता है। उसे विधि निर्माण से संबंधित के अनेक अधिकार प्राप्त होते हैं। उसकी विधायिनी नहीं शक्तियां या अधिकार कुछ इस प्रकार है—

1- विधानमंडल के सदस्यों की नियुक्ति 

राज्यपाल विधान परिषद के 1/6 सदस्यों को मनोनीत करता है, जो साहित्य, कला, विज्ञान तथा सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान व स्थान रखते हैं। राजपाल को विधानसभा के लिए एक एंग्लो-इंडियन सदस्य को मनोनीत करने का भी अधिकार है।

2-  कार्यवाही संबंधित अधिकार 

विधायी क्षेत्र में राज्यपाल को विस्तृत अधिकार प्राप्त है। वह विधानमंडल के अधिवेशन को आमंत्रित करता है, स्थगित करता है तथा उसका सत्रावसान करता है। मुख्यमंत्री के परामर्श अथवा संतुष्टि पर वह विधानसभा का विघटन भी कर सकता है। विधानमंडल के दोनों सदनों में से वह किसी में भी अपना भाषण दे सकता है।

3- अध्यादेश जारी करने का अधिकार 

राज्यपाल अध्यादेश जारी करता है; किंतु वह इस समय अध्यादेश जारी करता है जिस समय विधानमंडल का अधिवेशन न चल रहा हो। इन अध्यादेशों को विधानमंडल में आवश्यक स्वीकृत करना होता है। राज्यपाल के इन अध्यादेशों का प्रभाव विधानसभा के कानून जैसा ही होता है।

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