दल–बदल के राजनीतिक प्रभाव
दल–बदल के राजनीतिक प्रभाव मुख्यतः हैं—
(1) राजनीतिक अस्थिरता
दल–बदल का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव राजनीतिक अस्थिरता है। चौथे आम चुनाव के पश्चात् पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के शासन में अस्थिरता आ गई तथा इन प्रान्तों में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा इन प्रान्तों में 2 वर्ष में अनेक मंत्रीपरिषदें बनीं तथा गिरीं। जुलाई 1979 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को दल– बदल के कारण त्यागपत्र देना पड़ा। केंद्र सरकार के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब किसी प्रधानमंत्री को दल– बदल के कारण त्यागपत्र देना पड़ा। फरवरी 1980 में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री शांता कुमार को दल– बदल के कारण त्यागपत्र देना पड़ा तथा जनता सरकार के स्थान पर कांग्रेस (इ) की सरकार स्थापित हुई। नवंबर 1980 में दल– बदल के कारण प्रधानमंत्री वी•पी• सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा तथा चंद्रशेखर ने सरकार बनाई। दल– बदल के कारण ही 30 दिसंबर, 1993 को कांग्रेस (इ) को लोकसभा में विश्वास का मत प्राप्त हुआ। अप्रैल–मई में 1996 में संपन्न लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण राजनीति अस्थिरता का जन्म हुआ। दो माह में तीन प्रधानमंत्री बदल दिए गए।
(2) नैतिक मूल्यों में कमी
दल–बदल के कारण विधायक तथा दल अपने उत्तरदायित्वों को भूलने लगे। प्रत्येक दल के समक्ष अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने की गंभीर समस्या पैदा हो गई। अतः कोई दल नैतिक मूल्यों की परवाह नहीं करता।
(3) छोटे-छोटे दलों का सदस्य
‘दल– बदल’ ने राजनीतिक दलों के विभाजन को भी प्रोत्साहित किया है। कुछ विधायक दल से अलग होकर अपना दल बना लेते हैं तथा पहले वाले दल से सौदेबाजी करते हैं। उदाहरण हेतु चौ• चरणसिंह ने भारतीय क्रांति दल बनाया, कुंभाराम आर्य ने राजस्थान में जनता पार्टी बनाई। राव वीरेंद्र सिंह ने हरियाणा में विशाल हरियाणा पार्टी की स्थापना की। अजय मुखर्जी ने बंगला कांग्रेस का निर्माण किया। भूतपूर्व मुख्यमंत्री बंशीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की।
(4) विधायकों के नैतिक स्तर में गिरावट
‘दल–बदल’ ने विधायकों को स्वार्थी बना दिया है। विधायकों ने सौदेबाजी की प्रवृत्ति दिन–प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। एक विधायक को जब दल बदलने के कारण लाभ होता है तो दूसरा विधायक भी दल बदलने हेतु उत्सुख हो जाता है जिससे वह भी अधिक लाभ प्राप्त कर सकें।
(5) मंत्रीपरिषद में अनावश्यक विस्तार
मंत्री परिषदों में अनावश्यक विस्तार की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई। 1977 से पूर्व मंत्री परिषद छोटी हुआ करती थी किंतु चौथी आम चुनाव के पश्चात अधिक से अधिक विधायकों को संतुष्ट करने हेतु मंत्री परिषदों का विस्तार किया गया। बिहार मंत्रिपरिषद् का आकार केंद्र सरकार के मंत्रिपरिषद् से भी बड़ा है।
(6) जनकल्याण की अपेक्षा–दल
बदल के कारण प्रत्येक मंत्री अपने पद को बचाने हेतु राजनीति में व्यस्त रहता है। जिस कारण मंत्री शासन की ओर ध्यान नहीं दे पाता। नीतियों को सही ढंग से लागू नहीं किया गया। कुव्यवस्था का फल जनता को भोगना पड़ता है।
(7) प्रजातांत्रिक अवस्थाओं पर कुठारघात
जनता की प्रजातांत्रिक आस्थाओं का गहरा कुठारघात हुआ है। जनता का अपने प्रतिनिधियों तथा नेताओं से विश्वास उठने लगा है। जनता सोचने लगी है कि स्वार्थी विधायक जनता का क्या हित करेंगें।
(8) विदेशों में प्रतिष्ठा की कमी
विदेश में भारत के सम्मान को धक्का पहुँचा है।
(9) राजनीतिक दलों का विघटन
‘दल– बदल’ के कारण राजनीतिक दलों के विघटन की प्रक्रिया का प्रारंभ हुआ है। आज कोई भी बड़े से बड़ा क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय राजनीतिक दल चाहे बाहरी रूप से एकता के सूत्र में बंधा हुआ दिखाई पड़ता है, किंतु आंतरिक रूप से उसमें विघटन की प्रक्रिया तीव्र हो रही है। राजनीतिक दलों में किसी भी विषय पर उठने वाला मतभेद विघटन पैदा करने वाला साबित हो जाता है। अतः ‘दल– बदल’ के कारण कोई भी राजनीतिक दल सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है।
(10) राजनीतिक संरचना
दल बदल के कारण राजनीति में राजनीतिक संरचना पर काफी हद तक प्रभाव पड़ता है। जिस कारण राजनीति की
संरचना में बदलाव देखने को मिलता है।
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