मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार
स्वतंत्रता पर विचारों की चर्चा होते ही मिल का नाम स्वत: ही आ जाता है। उन्होंने अपने ग्रंथ “स्वतंत्रता पर” में स्वतंत्रता के संबंध में विचार लिखे हैं, उनकी पृष्ठभूमि यह है कि उसके देश इंग्लैंड में विभिन्न कारणों से व्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई थी। हीगल और स्पेनसर ने इस विचारधारा को और भी तीव्र कर दिया। बेंथम यद्यपि व्यक्तिवाद का समर्थक था, परंतु उसने “अधिक से अधिक लोगों का अधिकतम सुख” का सिद्धांत अपना कर यह निष्कर्ष निकला है कि विधायिका बहुमत द्वारा व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर नियंत्रण वह हस्तक्षेप कर सकती है, परंतु मिल इन विचारों से सहमत नहीं था। वह इंग्लैंड की सरकार के उन कानूनों का विरोधी हो गया था जो व्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्यान कर रहे थे।
बेंथम के सुधारवादी कार्यों से नागरिकों के जीवन पर शासन का नियंत्रण बढ़ता जा रहा था। अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख को लेकर शासकीय अधिकार क्षेत्र इतना व्यापक हो चला था कि स्वयं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए ही संकट उत्पन्न होने लगा था। ऐसे कठिन समय में मिल ने स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपनी कलम उठायी। मिल ने अपने स्वतंत्रता संबंधी विचारों का प्रतिपादन दो दृष्टियों से किया—व्यक्ति तथा समाज।
मिल ने व्यक्ति की स्वतंत्रता पर निम्नलिखित दो पहलुओं से विचार किया—
(1) विचार स्वतंत्रता
मिल विचारों की स्वतंत्रता का कट्टर समर्थक है। विचारों के संघर्ष में केवल सत्य की विजय होती है। प्रत्येक व्यक्ति को विचार अभिव्यक्ति की संपूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। किसी भी विचार का दमन करना सत्य का दमन करना है। किसी व्यक्ति का विचार सत्य हो सकता है या मिथ्या या आंशिक रूप से सत्य या आंशिक रूप से मिथ्या। अधिकारी वर्ग का यह दावा गलत है कि वह समाज को हानि पहुंचाने वाले विचार को रोककर जनता की भलाई कर रहे हैं। यदि कोई विचार आंशिक रूप से भी सत्य है तो भी उसे पर प्रतिबिंब नहीं लगाना चाहिए। सत्य के अनेक पक्ष होते हैं। मिल का विचार था कि स्वतंत्रता के लिए सबसे बड़ा खतरा सरकार की ओर से न होकर बहुमत की ओर से होता है। मिल के अनुसार, मिल बहुमत को सदैव ठीक नहीं मानता। उनका मत है कि किसी भी परिस्थिति में अल्पमत का दामन नहीं होना चाहिए। उनके अनुसार, सर्वोत्तम सरकार को भी सबसे बुरी सरकार से अधिक अधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए।
(2) कार्य की स्वतंत्रता
मिल की दृष्टि में कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकट होता है और उसकी आत्म उन्नति का मार्ग खुल जाता है। व्यक्तित्व विकास के लिए विचारों की स्वतंत्रता ही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि कार्य की स्वतंत्रता भी उतनी महत्वपूर्ण होती है। विचारों की स्वतंत्रता तो निरपेक्ष रूप से प्राप्त हो सकती है, किंतु कार्य की स्वतंत्रता का रूप केवल सापेक्षिक है। कार्य की स्वतंत्रता को मिल निम्नांकित दो भाग में विभाजित करता है—
(क) स्व–विषयक
इस क्षेत्र में मिल उन कार्यों का विवेचन करता है जिनका संबंध व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से होता है। उदाहरण के लिए सोना, पहनना, खाना तथा आचार–विचार अदि कार्य इसके अंतर्गत आते हैं। इसके संबंध में मिल व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रत बनाने के पक्ष में है। यदि कोई व्यक्ति अपने यहाँ जुआ खेलते हैं, अथवा शराब पीता है और यदि उसके विचार इन कार्यों का प्रभाव समाज पर नहीं होता तो व्यक्ति की इन कार्यों को कराकर पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
(ख) पर-विषयक
इस क्षेत्र में व्यक्ति के वे कार्य आते हैं, जिनका प्रभाव अन्य व्यक्तियों पर पड़ता है। इस संदर्भ में व्यक्ति के लिए वह मिल समिति स्वतंत्रता का समर्थन करता है। इस क्षेत्र में वह व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं देता। राज्य की अथवा अन्य व्यक्तियों को हस्तक्षेप करने की आज्ञा देता है। राज्य को किन बातों में हस्तक्षेप कर सकता है–
1- यदि व्यक्ति स्वतंत्रता का अनुचित प्रयोग करता है।
2- स्वतंत्रता की अनुचित प्रयोग से वह कर्तव्य पालन से विमुख हो जाता है।
3- संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए भी व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता कुछ अंश त्यागने के लिए विवश किया जा सकता है।
“मिल खोखली स्वतंत्रता और अपूर्ण व्यक्ति का पैगंबर था।”
मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार के मूलभूत लक्षण
मिल ने व्यक्ति और समाज दोनों के हितों को ध्यान में रखकर जो स्वतंत्रता संबंधी विचार प्रकट किए हैं, मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं–
(1) मिल की स्वतंत्रता संबंधी धारणा समाज की व्यक्तिवादी धारणा हैं।
(2) यद्यपि मिल व्यक्ति और समाज दोनों की स्वतंत्रता की बात करता है फिर भी यह स्पष्ट है कि जैसा कि हारमांन ने कहा है कि, “मिल ने व्यक्ति पर इतना अधिक बल दिया है कि हम निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उसने समाज की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया है।”
(3) मिल स्वतंत्रता की व्याख्या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से करता है।
(4) मिल रूढ़िवादी का विरोधी था, इसलिए उसने व्यक्तित्व के विकास में बाधक सामाजिक कानूनों, प्रथाओं और रूढिंयों आदि को अनुचित बताया है।
(5) मिल द्वारा प्रतिपादित स्वतंत्रता केवल निषेधात्मक ही नहीं है, सकारात्मक भी है क्योंकि वह व्यक्ति की आत्मरक्षा व उसे दूसरों की गिनती करने से बचने के लिए राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का भी अधिकार देता है।
(6) मिल ने स्वतंत्रता पर जो विचार रखे हैं, यद्यपि वे उपयोगितावाद के आधार पर रखें परंतु वास्तविकता यह है कि उसके विचार उपयोगितावाद का अतिक्रमण करते हैं। उपयोगितावाद का मूल सिद्धांत है कि अधिक से अधिक व्यक्तियों का अधिकतम सुख, परंतु मिल स्वतंत्रता की रक्षा संपूर्ण मानव जाति के विरुद्ध भी चाहता था।
(7) मिल ने पिछड़े हुई राष्ट्रों के लोगों के लिए स्वतंत्रता न देने की ही बात कही है, ऐसे अपरिपक्व लोगों के हित के लिए वह राजतंत्र की बात करता है।
(8) मिल व्यक्ति की स्वतंत्रता में उसके विवेक के साथ भावना को भी महत्व देता है।
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