हॉब्स का व्यक्तिवाद तथा निरंकुशतावाद विचार
हॉब्स के व्यक्तिवादी विचार- हॉब्स ने अपने विचारों में निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया है, लेकिन उन्होंने व्यक्तिवाद को भी महत्व दिया है। वे व्यक्तिवादी अधिकारों को भी स्वीकार करते हैं, जिससे उन्हें एक व्यक्तिवादी विचारक के रूप में पहचाना जाता है।
हॉब्स को को व्यक्तिवाद का समर्थक बताने की दिशा में कुछ विद्वानों ने अपने मत दिए हैं—
(1) सेबाइन का मत है, “संप्रभु की निरंकुशता का सिद्धांत, जिसे सामान्यतः हॉब्स के नाम से जाना जाता है, वास्तव में उसके व्यक्तिवाद का आवश्यक अंग है।”
(2) डनिंग का मत है कि, "हॉब्स के सिद्धांत में राज्य की शक्ति असीमित होते हुए भी उसका मूल आधार व्यक्तिवादी है। वह सब व्यक्तियों की प्राकृतिक समानता का पूर्ण पक्षधर हैं।”
हॉब्स को व्यक्तिवादी सिद्ध करने में विद्वानों का तर्क
(1) व्यक्ति साध्य और राज्य साधन है
हॉब्स ने निरंकुश राजतंत्र का प्रतिपादन नहीं किया, लेकिन उन्होंने व्यक्ति को साध्य और राज्य को एक साधन के रूप में स्वीकार किया है। उनके अनुसार, राज्य का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की हित और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इस संबंध में सेबाइन का कथन है कि, “राज्य की शक्ति तथा कानून की सत्ता का औचित्य इसी बात पर निर्भर करता है कि वे व्यक्तिगत मनुष्यों की सुरक्षा में योगदान करें। सत्ता के प्रति निष्ठा तथा आज्ञाकारिता का एक मात्र आधार यही है कि वह अधिकाधिक व्यक्तिगत लाभ प्रदान करेंगे।"
(2) हॉब्स द्वारा व्यक्तिगत अधिकारों का समर्थन
हॉब्स ने अपने राजदर्शन की शुरुआत व्यक्तियों के अधिकारों के समर्थन में किया और अपने राजदर्शन का अंत संप्रभु की निरंकुशता का प्रतिपादक करके किया। उनका मानना है कि व्यक्तियों को उन सभी कार्यों का स्वतंत्रता से उपभोग करना चाहिए, जिन्हें संप्रभु ने नहीं रोका है। उनके अनुसार, व्यक्तियों का हित इसी बात में निहित है कि वे राज्य के आदेशों का पालन करें। राज्य के नागरिक कानून का पालन करते हुए, व्यक्तियों को पूर्ण स्वतंत्रता का अधिकार होता है।
(3) व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार
हॉब्स के अनुसार व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार प्राप्त है। वास्तव में हॉब्स ने व्यक्तियों को आत्मरक्षा का अधिकार प्रदान किया है। उसका कथन है कि प्राकृतिक अवस्था की असहनीय स्थितियों को समाप्त करने के लिए व्यक्तियों ने परस्पर एक समझौता करके राज्य को जन्म दिया और उसकी अधीनता को स्वीकार किया।
हॉब्स अपने राज्य में व्यक्तियों का अपना व्यापार करने, संपत्ति क्रय विक्रय करने, किसी भी स्थान पर रहने, शिक्षा प्राप्त करने जैसी स्वतंत्रताएं प्रदान करता है। हॉब्स का शासक व्यक्ति के विचारों में हस्तक्षेप नहीं करता है। हॉब्स का मत है कि यदि संप्रभुत जीवन रक्षा ठीक प्रकार करने में असमर्थ है तो नागरिक उसके प्रति अपनी राजभक्ति और निष्ठा को समाप्त करके, संप्रभु का पद सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नई सत्ता को समर्पित कर सकते हैं। इस प्रकार हॉब्स निरंकुश्तावादी होते हुए भी व्यक्तिवादी विचारक था। इसी प्रकार डनिंग का मत है कि, “उसके सिद्धांत में राज्य की शक्ति का उत्कृष्टि होने के बावजूद, उसका मूलाधार पूर्ण रूप से व्यक्तिवादी है।”
“हॉब्स अपने विचारों की शुरुआत व्यक्तिवादी दृष्टिकोण से करता है, लेकिन उसके विचारों का परिणाम निरंकुशतावाद में पहुंचता है।”
हॉब्स का निरंकुशतावाद
हॉब्स अपने विचारों की शुरुआत व्यक्तिवादी पर आधारित करते हैं, जो व्यक्ति के अधिकारों को महत्व देता है। लेकिन उनके विचारों का अंत निरंकुशतावाद में होता है, जो राजा या शासक को अधिकार का पूर्ण स्वामी मानता है। सेबाइन के शब्दों में, “हॉब्स ने एक व्यक्तिवादी के रूप में अपने विचारों का प्रारंभ में प्रतिपादन किया परंतु उसके विचारों का अंत निरंकुशतावाद में होता है।”
हॉब्स के विचारों में निरंकुशतावाद के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है—
(1) संप्रभुता असीमित
हॉब्स का संप्रभुता पूर्णतया असीमित एवं निरंकुश है। सेबाइन के शब्दों में,"बोंदा संप्रभुता पर जो असंगतिपूर्ण मर्यादाएं स्थापित की थी, हॉब्स ने उसे उनसे बिल्कुल मुक्त कर दिया।"
(2) संप्रभु समस्त कानूनों का स्रोत है।
(3) वह उस सिद्धांत का वह एकमात्र स्रोत है जो प्रशासनिक शक्तियों की उत्पत्ति करता है।
(4) अधिकार केवल संप्रभु में निहित है।
(5) चर्च संप्रभु के अधीन है।
(6) संप्रभुता का क्षेत्राधिकार सर्वव्यापी है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि हॉब्स निरंकुशतावाद की स्थापना करता है। वस्तुत: यह कथन सही है कि हॉब्स अपने विचारों का प्रारंभ व्यक्तिवादी के रूप में करता है,परंतु उसके विचारों का अंत निरंकुशतावाद में होता है।
समीक्षा अथवा निष्कर्ष
कतिपय विद्वानों ने हॉब्स के राज दर्शन की कटु आलोचना की है। मरे का कथन है कि," हॉब्स के विरोधियों की संख्या प्रशंसकों से कम है।"इसी प्रकार कैटलिन का मत है कि," हॉब्स के राज दर्शन में कुछ कमी बुरे मनोविज्ञान के कारण है।"अनेक विद्वानों की आलोचनाओं के बावजूद भी हॉपक्षब्स के राज दर्शन की महत्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती है सेबाइन ने तो हॉब्स को अंग्रेजी विचारों को में महानतम बताया है।
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