अलबरूनी (Alberuni)
अलबरूनी का जीवन परिचय ; अलबरूनी का जन्म 973 ई० में आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म में हुआ था। वे फारस (फ़ारसी) के प्रसिद्ध विद्वान थे और महमूद गजनवी के भारत आक्रमण के दौरान उनके साथ भारत आए थे। अलबरूनी ने भारतीय संस्कृति और परंपरा के व्यापक अध्ययन किया था। उन्होंने अरबी और फारसी के अलावा ग्रीक और संस्कृत की भी अद्भुत जानकारी हासिल की थी। यद्यपि उन्हें यूनानी भाषा का ज्ञान नहीं था, अलबरूनी को यूनानी भाषा का ज्ञान न होने के कारण, प्लेटो और अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों को पूरी तरह से समझने में समर्थ थे। लेकिन उन्होंने इन कार्यों का अरबी अनुवाद किया और उनकी गहन अध्ययन किया।
अलबीरूनी भारत में रहते हुए भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और 1030 में “किताब-उल-हिन्द” (भारत के दिन) नामक पुस्तक लिखी। उनकी मृत्यु गज़नी, अफ़गानिस्तान में हुई।
अलबरूनी द्वारा जाति व्यवस्था की व्याख्या
(1) अलबरूनी ने जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी विचारों को नकारा, उन्होंने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया। उन्होंने व्यक्त किया कि प्राकृतिक नियमों के अनुसार, हर अपवित्र वस्तु अपनी पवित्रता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है। सूर्य हवा को शुद्ध करता है और समुद्र नमकीन पानी को गंदा होने से बचाता है। अल-बिरूनी यह विचार प्रमाणित करते हैं कि यदि इस प्रकार का प्रयास नहीं होता, तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता। उनके अनुसार, जाति व्यवस्था में अपवित्रता की धारणा प्रकृति के नियमों के विपरीत थी।
(2) अलबरूनी के अनुसार, जाति व्यवस्था प्रकृति के नियमों के विपरीत थी। उन्होंने महसूस किया कि जाति व्यवस्था वास्तव में उतनी कठोर नहीं थी जितनी संस्कृत ग्रंथों में चित्रित की गई थी।
(3) अलबरूनी के अनुसार, शुरुआती समय में फ़ारसी समाज चार श्रेणियों में विभाजित था, और उन्होंने यह भी महसूस किया कि यह सामाजिक विभाजन केवल भारत के लिए ही नहीं था।
(4) अलबरूनी के अनुसार, भारत में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी। उन्हें शासक वर्ग, पुरोहित और चिकित्सक वर्ग, खगोल शास्त्री और अन्य वैज्ञानिक वर्ग, और अंत में कृषक और शिल्पकार के रूप में विभाजित किया जाता था। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इन वर्गों के बीच धार्मिकता के पालन में भिन्नताएं थीं।
(5) अलबरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था को अन्य समुदायों में प्रचलित प्रतिरूपों के माध्यम से समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया है। उन्होंने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों की प्राधान्य थी, जैसे घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, अनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक वर्ग, खगोलशास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक वर्ग और अंत में कृषक वर्ग।
(6) अलबरूनी ने बताया कि जाति व्यवस्था अधिक कठोर और दमनकारी थी। लोग अधिक अंधविश्वासी थे और धार्मिक नियमों का पालन किया जाता था। महिलाओं का समाज में पुराना सम्मानित स्थान भी खो दिया था और अब उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता था। उनके अनुसार, जाति व्यवस्था में सामाजिक प्रदूषण की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी, क्योंकि यह लोगों को उनके सामाजिक और आर्थिक वर्गों में स्थापित था और उन्हें अन्यायपूर्ण और असमान करता था।
निष्कर्ष
अलबरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था को उन तत्वों के माध्यम से समझाया जो फारसी समाज में भी प्रचलित थे। उन्होंने समाज को चार वर्गों में विभाजित किया जिन्हें वह लोगों की समृद्धि, व्यवस्था और कार्यों के आधार पर वर्णन किया। उनकी व्याख्या में, प्राचीन फारसी समाज में चार वर्ग थे- शासक वर्ग, पुरोहित और चिकित्सक वर्ग, खगोलशास्त्री और अन्य वैज्ञानिक वर्ग और अंत में किसान और शिल्पकार। उन्होंने इसे उन्हीं वर्गों की तुलना में किया जो भारतीय समाज में प्रचलित थे। इस प्रकार, उन्होंने भारतीय समाज की जाति व्यवस्था को फारसी समाज की संरचना के साथ तुलना करके समझाने की कोशिश की।
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