सूत्र अथवा लाइन अभिकरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकार तथा कार्य

सूत्र अथवा लाइन अभिकरण 

स्टाफ और लाइन शब्दों को सैनिक प्रशासन की शब्दावली से प्रशासन के क्षेत्र में ग्रहण किया गया है। सीना में सामान्यतः दो प्रकार की इकाइयां होती हैं — सूत्र या लाइन  इकाई तथा स्टाफ इकाई। सूत्र इकाई में हुए लोग आते हैं जो युद्ध के मैदान में सेना को आदेश देते हैं, उसका संचालन एवं नेतृत्व करते हैं। वस्तुत: इनके पास ही सेना की वास्तविक शक्ति होती है और ये ही युद्ध जीतते हैं। सेना में स्टाफ इकाइयां स्वयं युद्ध नहीं लड़ती हैं। बल्कि उनका उद्देश्य युद्ध में सेना को सहायता प्रदान करना होता है। उनकी सहायता के बिना सेना युद्ध नहीं जीत सकती है। इस प्रकार सूत्र और स्टाफ की अवधारणा सर्वप्रथम सैनिक संगठनों में ही विस्तृत हुई। इस अवधारणा को ही प्रशासन के क्षेत्र में लागू किया गया। 

सूत्र अथवा लाइन अभिकरण का अर्थ

अभिकरण वह है जो विभाग के प्राथमिक कार्य को संपन्न करता है। अन्य शब्दों में सूत्र अभिकरण के द्वारा हुए कार्य संपन्न किए जाते हैं जो मुख्य उद्देश्य प्राप्ति से सीधा एवं प्रत्यक्ष संबंध रखते हैं।

 इस प्रकार सूत्र अभिकरण प्रशासन का मुख्य या आधारभूत विभाग होता है। इसका कार्य सरकार के प्राथमिक किया मुख्य लक्षण की पूर्ति करना है। इसका कार्य नीति निर्माण करना व आज्ञाएं प्रसारित करना होता है। इस तरह यह प्रशासन संबंधी अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

 परिभाषाएं 

विरोधी के अनुसार, “प्राथमिक या मुख्य क्रियाएं जो स्वयं उद्देश्य हैं, जबकि संस्थागत क्रियाएं उद्देश्य की प्राप्ति मात्र हैं।” 

एल० डी० ह्वाइट के अनुसार, “सूत्र अभिकरण उन प्राथमिक उद्देश्यों की प्राप्ति से संबंधित है जिनके लिए प्रशासन स्थापित किया जाता है।” 

लेपावस्की के अनुसार, “सूत्र संगठन में सट्टा तथा उत्तरदायित्व की रेखाएं ऊपर से नीचे तक फैली होती है।”

संसदीय पद्धति में सरकार के विभागों का संगठन भी सूत्र पद्धति पर आधारित होता है। ये विभाग सूत्र विभाग के नाम से जाने जाते हैं क्योंकि इनका संबंध उसे मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति से होता है, जिसकी प्राप्ति के लिए सरकार प्रयत्नशील रहती है। सूत्र अभिकरण का ही क्रियात्मक उत्तरदायित्व होता है। किसी कार्य की सफलता अथवा असफलता के लिए सूत्र अभिकरण ही जिम्मेदारी होता है।

सूत्र अभिकरण के प्रकार

प्रशासन में सूत्र अभिकरण के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं 

(1) विभाग (Department) 

मुख्य कार्यपालिका के अधीन रहने वाले समझते सरकारी कार्यों का अनेक खण्डों में विभाजित किया जाता है। इन प्रत्येक खण्डों को ही पृथक रूप से विभाग कहा जाता है। इन विभागों का निर्माण इसलिए किया जाता है कि ये सभी मुख्य कार्यपालिका को उसके उद्देश्य की प्राप्ति में सहयोग दें। इसके साथ ही इन विभागों द्वारा सरकार के विभिन्न प्रकार के कार्यों को कार्य कुशलता पूर्वक संपन्न किया जा सके जैसे — शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, मानव संसाधन, उद्योग, रेल डाक तार, प्रतिरक्षा, वाणिज्य तथा सामुदायिक विकास साथी।

(2) लोक निगम (public corporation) 

लोक निगम राज्य द्वारा प्रशासन को सुधारो रूप से चलने के लिए, उद्योग धंधे चलाने के लिए तथा जनता को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करने के लिए स्थापित किए जाते हैं। 

(3) स्वतंत्रत नियामक आयोग (Indipendent Regulatory Commission) 

 स्वतंत्रत नियामक आयोग के कुछ लक्षण विभागीय संगठनों से तथा कुछ लोक निगमन से मिलते-जुलते हैं। ये मुख्य कार्यपालिका के नियंत्रण से प्रारंभ मुक्त रहते हैं अर्थात इन्हे स्वायत्ता प्राप्त होती है। ये प्रशासकीय अर्द्ध विधायी तथा अर्द्ध-न्यायिक कार्य करते हैं। इनका प्रमुख कार्य निजी संपत्ति तथा व्यक्तिगत आर्थिक क्रियो का इस प्रकार नियमन एवं नियंत्रण करना है कि जनहित की सुरक्षा हो सके।

सूत्र या सूत्र अभिकरण के कार्य 

सूत्र अथवा सूत्र अभिकरण के प्रमुख कार्य कुछ इस प्रकार हैं—

(1) सूत्र का कार्य नीतियों का क्रियान्वयन करना है।

(2) सूत्र अभिकरण के द्वारा वे सभी कार्य संपन्न किए जाते हैं जो मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति से सीधा एवं प्रत्यक्ष संबंध रखते हैं।

(3) सूत्र अभिकरण अथवा सूत्र इकाइयां आदेश देने का कार्य करती हैं।

(4) सूत्र अभियान के व्यक्ति सामने से कार्य करते हैं, वे निर्णयों के लिए भूमिका तैयार करते हैं तथा स्वयं ही निर्णय लेने का कार्य करते हैं।

(5) सूत्र अभिकरण संगठन के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं तथा यह अपने उच्च अधिकारी के प्रति उत्तरदाई होता है।

(6) सूत्र विकिरण की अधिकारी स्टाफ अभिकरण की तरह पढ़े लिखे वह अपने क्षेत्र के विषेशज्ञ हो, यह आवश्यक नहीं, अतः अधिकारी अनुभवी होने के कारण मुख्य उद्देश्यों की प्राप्ति में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

(7) सामान्यतया से प्रशासन में सूत्र अभिकरण मुख्य रूप से विभाग, लोक निगम तथा स्वतंत्र नियामक आयोग के रूप में होते हैं।

(8) विभागों का मुख्य कार्य मुख्य कार्यपालिका को उसके उद्देश्य की प्राप्ति में सहयोग प्रदान करना है तथा सरकार के विभिन्न कार्यों तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, वाणिज्य, कल्याण, कृषि आदि का कुशलता पूर्वक संपादन करना है।

(9) लोक निगम प्रशासन को स्वरूप से चलाने, उद्योग धंधों का संचालन करने तथा जनता को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करने का कार्य करते हैं।

(10) स्वतंत्र नियामक आयोग प्रशासकीय, अर्द्ध विधायी तथा अर्द्ध-न्यायिक कार्य करते हैं अर्थात ये निजी संपत्ति तथा व्यक्तिगत आर्थिक क्रियो का प्रभावी ढंग से नियंत्रण एवं नियमन का कार्य करते हैं, जिससे कि आम जनता के हितों की सुरक्षा हो सकें।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp