जैव प्रौद्योगिकी का अर्थ एवं परिभाषा
जैव प्रौद्योगिकी का अर्थ ; जैव प्रौद्योगिकी अंग्रेजी शब्द ‘Biotechnology’ का हिंदी रूपांतरण है जिसकी उत्पत्ति बायोलॉजी (जीव विज्ञान) तथा Technology (प्रौद्योगिकी) शब्दों को मिलाकर हुई है। जैविक कारकों— सूक्ष्मजीवों जंतु एवं पादप कोशिकाओं अथवा अवयवों के नियंत्रित उपयोग से मानव के लिए उपयोगी उत्पादकों का उत्पादन ‘जैव प्रतियोगिकी’ है। अतः जैव प्रौद्यगिकी के अंतर्गत विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के सिद्धांतों के उपयोग तथा जैविक कारकों की सहायता से उपयोगी उत्पादों का उत्पादन किया जाता है।
जैव प्रौद्योगिकी परिभाषा
जैव प्रौद्योगिकी की सबसे उपयुक्त परिभाषा अमेरिकी रसायन संस्था द्वारा 1988 में दी गई थी जो इस प्रकार है— “ऐसी कोई भी तकनीक, जिसमें जीवाणु अथवा उनकी घटकों द्वारा उत्पादकों का निर्माण अथवा रूपांतरण और पादपो एवं जीवधारी में सुधार होता है अथवा विशेष प्रयोग हेतु नए जीवाणुओं का विकास किया जाता है ‘जैव प्रतियोगिकी’ है।”
परिभाषाओं का सार
इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि जैव प्रौद्योगिकी की प्राकृतिक अथवा कृत्रिम जीवाणु अथवा उनके घटकों का कार्य क्षेत्र है। इसका प्रमुख लक्ष्य आर्थिक लाभ एवं मालूम कल्याण के लिए जीव विज्ञान का व्यापक प्रयोग करना है। वस्तुत: जैव प्रतियोगिकी में अनेक विषयों का समावेश है जैसे— जीव विज्ञान, अनुवंशिकी, कोशिका विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, कृषि विज्ञान, विषाणु विज्ञान, जैव रसायन अभियांत्रिकी, रसायन अभियांत्रिकी, संगणक विज्ञान आदि। इसके अलावा जैव प्रौद्योगिकी की उचित उपयोगिता को सुनिश्चित करने के लिए प्रबंध शास्त्र, अर्थशास्त्र व समाज तथा राजनीति शास्त्र को भी इनमें शामिल करना होगा। क्योंकि ये इसके अनुप्रयोगों को विपणन प्रौद्योगिकी में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
जैव प्रौद्योगिकी की उपादेयता
आज विश्व के लगभग सभी देशों के सामने भोजन, पानी एवं पर्यावरण की सुरक्षा मुख्य मुद्दे हैं। अनेक विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्य उत्पादन एवं वितरण में पर्याप्त वृद्धि जनसंख्या एवं चिकित्सा के साथ-साथ शिक्षा तथा जीवन स्तर में सुधार आवश्यक हो गया है। विश्व जनसंख्या की तेजी से बढ़ाने के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है अधिक अपशिष्ट पदार्थ पैदा हो रहे हैं और पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है। जैव प्रतियोगिकी की सहायता से पर्यावरण के साथ तालमेल बैठे हुए प्राकृतिक संसाधनों का टिकाऊ प्रयोग किया जा सकता है। कृषि उत्पादकता बढ़ाकर भोजन सुरक्षा प्रदान की जा सकती है तथा पोषण को सुधारा जा सकता है। गरीबी और बीमारी की समस्या को हल करने, रोजगार के अवसर पैदा करने तथा ऐसी व्यापारिक वस्तुओं के विकास में जिससे कि देश समृद्ध बन सके, जैव प्रतियोगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अतः कृषि, जैव द्रव्य उत्पादन, सुधरी नस्लों, रोग प्रतिरोधी पौधों, पशुपालन, चिकित्सा, गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों तथा पर्यावरण संरक्षण एवं सुरक्षा के क्षेत्र में शक्तिशाली साधन का आधिकारिक उपयोग किया जा सकता है।
किसी देश में जैव प्रौद्योगिकी की उपादेयता बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि उसे देश की जैव विविधता कैसी है। मध्य पूर्व के कुछ राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी और जैव विविधता दोनों में पिछड़े हैं जबकि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की कुछ देश जैव विविधता में संपन्न परंतु जैव प्रौद्योगिकी में पिछड़े हैं। इसी प्रकार अमेरिका, जापान और यूरोप के देश जो जैव प्रौद्योगिकी की दृष्टि से तो उन्नत है परंतु जैव विविधता की दृष्टि से निर्धन है। अतः इस समय विश्व में कोई ऐसा देश नहीं है जो जैव प्रौद्योगिकी की दृष्टि से भी उन्नत हो और जैव विविधता में भी संपन्न हो। बल्कि भारत एवं चीन यद्यपि जैव प्रतियोगिकी में उतनी उन्नत नहीं है, फिर भी जैव विविधता की दृष्टि से धनी राष्ट्रों में गिने जा सकते हैं। यह दोनों देश जैव प्रतियोगिकी के क्षेत्र में उन्नति करने की क्षमता भी रखते हैं। अतः इन देशों में जैव प्रौद्योगिकी की उपादेयता स्वत: सिद्ध है।
जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र
जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र ; जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र अब बहुत अधिक विस्तृत हो चुका है। जय प्रौद्योगिकी गेम में एक और जहां सूक्ष्म जीवों के उपयोग से सस्ते एवं सुलभ पदार्थ का उपयोग करके अधिक उपयोगी एवं ज्यादा मूल्यवान पदार्थ का उत्पादन किया जाता है जैसे शर्करा आदि से अल्कोहल, अमीनो अम्ल आदि से दूसरी ओर अत्यंत कठिन एवं जटिल प्रक्रियाओं जैसे पुनर्गिज डी. एन. ए. टेक्नोलॉजी एंजाइम टेक्नोलॉजी, एंजाइम इंजीनियरिंग आदि के उपयोग से उत्पादों का निर्माण किया जाता है।
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