जर्मनी के एकीकरण का आंदोलन (सन् 1815 से 1848)

 जर्मनी के एकीकरण का आंदोलन

 (1) जर्मनी के एकीकरण के प्रयास

वियना कांग्रेस द्वारा निर्मित जर्मन परिसंघ का अध्यक्ष ऑस्ट्रिया और उपाध्यक्ष प्रशा था। वियना सम्मेलन की इस व्यवस्था से जर्मनी के उदारवादी नेता और दार्शनिक बहुत असंतुष्ट थे। जर्मनी के अनेक राजनीतिज्ञ एवं देशभक्त जर्मनी का एकीकरण करने के लिए लालायित थे, किंतु उनके समक्ष कुछ ऐसी कठिनाइयां या बाधाएं थी, जिनके कारण उनका कार्य बड़ा कठिन हो गया था। जर्मनी के एकीकरण के मार्ग में प्रमुख बाधाएं इस प्रकार थी—

  •   (१) जर्मनी के नेताओं में पारस्परिक मतभेद और विभिन्न कार्यक्रम।
  •   (२) जर्मनी की साधारण जनता की राष्ट्रीय भावना से अनभिज्ञता।
  •   (३) जनता के सहयोग का अभाव।
  •   (४) जर्मनी की विभिन्न रियासतें।
  •   (५) ऑस्ट्रेलिया और उसका प्रतिक्रियावादी चांसलर मैटरनिख।

(2) जर्मन परिसंघ

विएना कांग्रेस ने जर्मन राज्यों का जो संघ बनाया था, वह जर्मन जनता की इच्छाओं के प्रतिकूल था। इस संघ के संविधान के अनुसार जर्मनी के राज्यों के व्यवस्थापन का अधिकार व्यवस्थापिकाओं को दिया गया था। लेकिन ऐसी व्यवस्थापिका सभाओं की संख्या और अधिकार समिति थे। फ्रेंकफर्ट की राष्ट्रीय सभा में जर्मन राज्यों के प्रतिनिधि होते थे, जो मनोनीत किए जाते थे। इस सभा का अध्यक्ष ऑस्ट्रिलया का सम्राट था। इस संघ में गैर जर्मन हित प्रमुख थे जिसके कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रश्नों में जटिलता उत्पन्न हुई। यूरोप के सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी राजनीतिज्ञ मैटरनिख का इस सभा पर पूर्ण नियंत्रण था। जर्मनी के राज्यों की जनता को कोई अधिकार न दिए गए थे। जर्मनी का ना तो कोई राजा था, ना कोई झंडा और ना ही कोई नागरिक। इस प्रकार यह संघ प्रतिक्रियावादी शक्तियों के पूर्ण प्रभुत्व में था। इस प्रकार की व्यवस्था बनाने का एक महत्वपूर्ण कारण यह होता कि पिछले 25 वर्षों के अणुव्रत खूनी संघर्षों से थका हुआ यूरोप किसी भी कीमत पर शांति बनाए रखना चाहता था और जर्मनी स्वयं भी अपनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए संघर्ष या युद्ध करने को तत्पर न था।

(3) उदारवादी आंदोलन

वियना सम्मेलन के निर्णय से असंतुष्ट होकर जर्मनी के बुद्धि वादी वर्ग ने देश में राष्ट्रीयता का प्रचार करके एक उदारवादी संविधान के निर्माण की मांग की। जर्मनी का एक वर्ग यह महसूस करता था कि जर्मनी केवल एक भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्रा नहीं है वरन ऑस्ट्रिया के अाधिपत्य राजाओं और राज्यों के व्यक्तिवाद के नीचे एक आध्यात्मिक और बौद्धिक एकता है जिसे संध्या और कूटनीति नहीं तोड़ सकती। इसमें विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और छात्रों ने सक्रिय भाग लिया। 18 अक्टूबर 1817 ई को उदारवादियों ने वाटबर्ग नामक स्थान पर लिपजिंग युद्ध और धर्म सुधार की स्मृति में एक विशाल उत्सव मनाया। इस उत्सव में उदारवादियों ने राष्ट्रीयता, देशभक्ति तथा उदारवादी सिद्धांतों का व्यापक प्रचार किया और प्रतिक्रियावादी साहित्य की होली जलाई। इसी समय कुछ छात्रों ने काटजेब्यू नामक पत्रकार को रुसी समझ कर मार डाला। इस घटना से क्षुब्ध होकर ऑस्ट्रिया के चांसलर मैटरनिख जर्मन संघ के प्रतिनिधियों का काल्सबर्ग नामक स्थान पर एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में अनेक दमनकारी कानून पारित किए गए ।इन कानून के अनुसार जर्मनी के उदारवादी आंदोलन का कठोरता पूर्वक दमन कर दिया गया।

(4) जर्मनी का आर्थिक एकीकरण 

सन् 1819 ई में प्रशा के सम्राट ने 12 जर्मन राज्यों से एक व्यापारिक संधि करके एक चुंगी संघ स्थापित किया। इस संधि को जौलवेरीन की संधि कहा गया। इस संधि ने 60 से अधिक चुंगी व्यवस्थाओं का अंत करके उसके स्थान पर एक चुंगी व्यवस्था को जन्म दिया। इससे व्यापार की प्रगति होने लगी और स्वतंत्र व्यापार को बड़ा प्रोत्साहन मिला। परंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण लाभ यह हुआ कि इसमें जर्मनी को एक इकाई बना दिया, चाहे केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से ही सही। जर्मनी की यह आर्थिक एकता जर्मनी के एकीकरण के लिए बड़ी महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। यदि विश्वविद्यालय में नैतिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक और भौतिक एकता को जन्म दिया तो जौलवेरीन ने आर्थिक एकता का सूत्रपात किया।

(5) जर्मनी में क्रांतियां 

सन् 1830 और 1848 ईस्वी में जर्मनी में अनेक क्रांतियां हुई, लेकिन मैटरनिख के प्रभाव के कारण इन क्रांतियां को सफलता न मिल सकी। मैटरनिख वतन के बाद जर्मनी के देशभक्ति ने फ्रेंकफर्ट नामक स्थान पर एक राष्ट्रीय सभा का अधिवेशन बुलाया ।इस अधिवेशन में जर्मनी के सभी राज्यों के निर्वाचित 500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया इस सभा का उद्देश्य संपूर्ण जर्मनी के लिए एक उदारवादी संविधान का निर्माण करना था। लेकिन यह सभा अपना कार्य सुचारू रूप से करने में असफल रही क्योंकि इसने काफी समय मौलिक अधिकारों पर बहस करने में ही नष्ट कर दिया। अंत में एक-एक वर्ष बाद राष्ट्रीय सभा ने एक संविधान बनाया, जिसके अनुसार दो सदन वाली एक 'व्यवस्थापिका' निर्मित की गई कार्यपालिका का प्रमुख दशा के सम्राट फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ को बनाया गया, जिसका पद वंशानुगत रखा गया। फ्रेडरिक यद्यपि जर्मनी की एकता के लिए तो उत्सुक था, लेकिन जब समझने उसे जर्मनी का राजमुकुट ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया तो उसने रूढ़िवादी स्वभाव के कारण जर्मनी का राजमुकुंद स्वीकार करने से इनकार कर दिया। चूँकि वह ताज उसे‌ क्रांतिकारियों द्वारा दिया जा रहा था इसलिए वह उसे 'अपमानजनक ताज' को लेकर 'क्रांति का दास' नहीं बनना चाहता था। 3 अप्रैल 1849 ई को प्रशा के सम्राट की अस्वीकृति ने जर्मनी के देशभक्ति के आशाओं पर पानी फेर दिया। इस प्रकार जर्मनी में 1848 ई की क्रांति भी सफल हो गई।

Post a Comment

और नया पुराने
Join WhatsApp