भारत में विभागीय संगठन
भारत सरकार की संपूर्ण संरचना को सरकारी कार्यों की कुशलतापूर्वक संपादित करने के लिए मंत्रालयों तथा विभागों में विभाजित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 77 की धारा (3) के अंतर्गत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रालयों की स्थापना करता है। वह प्रत्येक संबंधी को तत्संबंधी विभाग सकता है। भारत सरकार के मंत्रालयों में या तो केवल एक ही विभागीय मंत्रालय है या कुछ मंत्रालयों में दो या दो से अधिक विभाग भी शामिल है।
डॉक्टर एम० पी० शर्मा ने भारत के विभागीय संगठन को एक तीन मंजिला इमारत बताया है, जिसके ऊपर की मंजिल राजनीतिक स्तर, मध्य में सचिवालय तथा निम्न स्तर पर निदेशालय होते हैं। भारत में विभागीय संगठन का स्वरूप निम्नवत होता है—
(1) राजनीति अध्यक्ष
विभाग का राजनीतिक अध्यक्ष मंत्री होता है। मंत्री की सहायता करने के लिए राज्य मंत्री तथा उप मंत्री होते हैं। सभी सांसद के सदस्य होते हैं। इन सब की नियुक्ति का आधार उनका ज्ञान तथा योग्यता नहीं होती है बल्कि दल के अंदर उनकी शक्ति तथा स्थिति के कारण होती है। विभागीय मंत्री के कार्य कुछ निम्नवत है—
(1) विभागीय मंत्री विभाग द्वारा नीतियों के निष्पादन पर सामान्य अधीक्षण का कार्य करता है।
(2) विभागीय मंत्री उन व्यापक नीतियों का निर्माण करता है जिनके अनुसार विभाग अथवा मंत्रालय को कार्य करना होता है। विभागीय मंत्री विभाग के अंदर उठने वाले नीति संबंधी महत्वपूर्ण प्रश्नों का भी समाधान करता है।
(3) वह अपने विभाग की नीति एवं प्रशासन के लिए संसद के समक्ष स्पष्टीकरण देता है तथा दायित्व का निर्वाह करता है। वह अपनी विभाग तथा मंत्रालय के विषय में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देता है, आवश्यक विधेयक प्रस्तुत करता है तथा अन्य विभागों के संदर्भ में जनता के सम्मुख अपने विभाग का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत में लोक प्रशासन का संचालन राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा ही किया जाता है।
(2) सचिवालय
राजनीतिक अध्यक्ष से एकदम नीचे स्तर पर विभाग का सचिवालय का संगठन होता है। सचिवालय का कार्य नीतियों के निर्धारण के विषय में आवश्यक सामग्री एवं विशेष ज्ञान के आधार पर राजनीतिक अध्यक्ष की सहायता करना है। सचिवालय नीतियों के क्रियान्वयन यह तथा निष्पादन का निरीक्षण करता है। विभाग की सचिवालय के प्रमुख को ‘सचिव’ कहते हैं। सचिव अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है। विभाग की सचिवालय के कर्मचारियों में दो वर्ग के क्रमिक होते हैं—
(1) उच्च स्तर तथा अधिकारी वर्ग, (2) अधीनस्थ वर्ग।
उच्चतर वर्ग के में तीन पदक्रम पाए जाते हैं—
(1) सचिन, (2) उपसचिव, (3) अवर सचिव।
बड़े-बड़े विभागों में सचिव तथा उपसचिव के बीच अतिरिक्त संयुक्त सचिव भी होते हैं। इन अतिरिक्त सचिवों को विशेष शाखों का उत्तरदायित्व सोपा जाता है। संयुक्त तथा अतिरिक्त सचिव न्यूनाधिक मात्रा में लगभग सचिव के समान स्तर अथवा श्रेणी के अधिकारी होते हैं तथा उन्हें जो भी कार्य सौंपे पर जाते हैं, उनके संबंध में हुए प्रत्यक्ष मंत्री के साथ संपर्क स्थापित कर सकते हैं। उप सचिव एवं अवर सचिव, सचिन के अधीनस्थ कर्मचारी होते हैं। उनके पद अवरोही क्रम में होते हैं। सचिन, संयुक्त सचिव, उपसचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा के कार्मिकों से पदावधि प्रणाली के आधार पर नियुक्त किए जाते हैं। अवर सचिव प्रथम श्रेणी के, केंद्रीय सचिव सचिवालय सेवा के सदस्य होते हैं।
सचिवालय के अधीनस्थ कर्मचारियों में अनुभवी अधिकारी सहायक, आवर तथा प्रवर लिपिक आते हैं। अनुभाग अधिकारी की नियुक्ति प्रत्यक्ष भारतीय अथवा पदोन्नति द्वारा होती है। प्रवर लिपि को की भर्ती अवर लिपिक में से पदोन्नति द्वारा होती है। और लिपिको की भर्ती प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा होती है।
संबंधित कार्यालय
भारत सरकार के प्रशासनिक संगठन में सचिवालय के अलावा कई संबंधित कार्यालय भी होते हैं। इन कार्यालय की संख्या लगभग 30 होती है। जैसे— संघ लोक सेवा आयोग, आयात एवं निर्यात का मुख्य नियंत्रण, मुख्य श्रम आयुक्त, आयकर, मुद्रण नियंत्रण आदि। इनमें कुछ कार्यालय आत्मनिर्भर होते हैं जबकि कुछ विभागों के विभागाध्यक्षों के अधीन होते हैं।
(3) विभाग का कार्यकारी संगठन
कार्यालय संगठन मंत्रालय का सचिवालय विभाग नीति निर्धारण संबंधी अंग होता है। नीति के निष्पादन का कार्य जिस संगठन के हाथ में होता है, उसे भी भाग गया मंत्रालय का कार्यकारी संगठन कहा जाता है। सामान्य तौर पर उसे निदेशक, महानिदेशक, आयुक्त आदि नामों से संबोधित किया जाता है। विभागाध्यक्ष नीति क्रियान्वित के अधीक्षण एवं प्रशासन के संचालन के अलावा अपने विभाग से संबंधित विषयों में मंत्रालय या विभागीय सचिवालय को प्राविधिक शराबी देता है।
एक टिप्पणी भेजें