बेसिन की संधि
बेसीन की संधि भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसके द्वारा पेशवा ने मराठों के सम्मान और स्वतंत्रता को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया। पेशवा मराठा संघ का प्रधान था। इस संधि से संपूर्ण महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचा। पेशवा के समर्पण का अभिप्राय था मराठों का समर्पण। यह भारत के भेज की विडंबना है कि जहां मराठा जाति से अंग्रेजों के उन्मूलन की आशा की जाती थी वहां उनका प्रधान स्वयं अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया। इतना ही नहीं, सिंधिया ने भी जो उसे समय भारत का सबसे बड़ा सरदार था, बेसन की संधि को स्वीकार कर लिया। मैराथन के लिए यह अत्यंत अपमानजनक संधि थी।
बेसिन की संधि क्या है?
जब मराठा प्रदेशों के राजाओं में आपस में संघर्ष चल रहा था तो पेशवा बाजीराव भाग कर बसई पहुँचे और ब्रिटिश सत्ता से शरण माँगी। ब्रिटिश अधिकारियों ने इसके लिए बाजीराव को अपमानजनक शर्तों पर संधि करने को मजबूर किया। इस संधि के तहत, उन्हें सत्ता में बनाए रखने के लिए कुछ शर्तें स्वीकृत करनी पड़ीं। इसमें शामिल थीं उनकी स्वतंत्रता की सीमा, सामंजस्यपूर्ण राजनीतिक आत्मनिर्भरता और उनकी सहायक सेना के अधिकार।
बसीन की संधि की मुख्य धाराएं
इस संधि के माध्यम से पेशवा बाजीराव ने अपनी स्थिति को सुरक्षित करने का प्रयास किया, परंतु इसने उनकी स्वतंत्रता और सत्ता को कमजोर कर दिया था। ब्रिटिश सत्ता ने उन्हें अपनी इच्छाओं के अनुसार स्थिति बनाए रखने के लिए अन्यायपूर्ण शर्तों पर सहमत होना पड़ा। यह घटना मराठा साम्राज्य के अंत की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने ब्रिटिश को भारत में अधिक नियंत्रण प्राप्त करने में मदद की।
(1) साझेदारी का आदान-प्रदान
इस शर्त के तहत, ब्रिटिश और मराठा सेनाएं एक दूसरे के साथ मिलकर खतरे के समय साथी बनने के लिए सहमत होने का समझौता किया गया था।
(2) सैन्य सहायता और राशि की विनिमय
इस शर्त के तहत, मराठा सेना ने ब्रिटिश को तोप और सैनिकों की मदद करने के लिए अग्रिम रूप में इकट्ठा किए गए धन की राशि ली और उसके बदले में ब्रिटिश ने मराठा सेना को साथी सेना के रूप में स्वीकार किया।
(3) नौकरी पर इजाजत
इस शर्त के तहत, मराठा किसी भी यूरोपीयन को बिना इंग्लैंड की इजाजत के अंतर्गत नौकरी पर नहीं रख सकता था।
(4) युद्ध और संधि के लिए इजाजत
इस शर्त के तहत, मराठा किसी भी अन्य राज्य के साथ युद्ध और संधि के लिए इंग्लैंड की इजाजत के बिना समझौता नहीं कर सकता था।
ये शर्तें संधि के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सत्ता को मराठा साम्राज्य के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से सांघरित होने का अवसर प्रदान करती हैं।
बेसिन की संधि का महत्व एवं प्रभाव
(1) बेसिन की संधि का इसी दृष्टि से भी अत्यधिक महत्व है कि इसके फलस्वरूप अंग्रेजों को दक्षिण भारत में पैर जमाने का अवसर मिल गया। रॉबर्ट्स के अनुसार बेसिन की संधि ने कंपनी को दक्षिण में सर्वोच्चता प्रदान कर दी। सिडनी ओवन के अनुसार इस संधि ने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से कंपनी को भारत का साम्राज्य दिला दिया। परंतु बहुत से इतिहासकार इस संधि को इतना महत्व नहीं देते। अपनी शक्ति और सत्ता को चिरस्थाई बनाने के लिए अभी अंग्रेजों को बहुत कुछ करना था। संधि के फलस्वरूप तो अंग्रेज मराठा साम्राज्य की पेचीदगियों में भी फस गए।
(2) 1800 ई० में, मराठा सम्राट पेशवा के मंत्री नाना फड़नवीस की मृत्यु के बाद, ‘मराठा महासंघ’ विभिन्न आंगणों में मतभेदों से जूझ रहा था। नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात्, सम्राटीय सत्ता के लिए विभिन्न प्रतिस्थानों में विवाद उत्पन्न हुआ था और इससे मराठा सम्राटों के आपसी संघर्षों का सिलसिला शुरू हो गया।
(3) "बसई की सन्धि” या “बसीन की सन्धि” 31 दिसम्बर 1802 में हुई थी, जिसमें पुणे के मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय और ब्रिटिश (अंग्रेजों) के बीच समझौता हुआ। इस संधि के परिणामस्वरूप, कई महत्वपूर्ण शर्तें और विवादित प्रावधानें निकले थे।
(4) मराठा महासंघ के आंतरिक विवादों और मतभेदों ने इसे तोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बनाया। इससे विशाल साम्राज्य का संरचनात्मक और आत्मनिर्भरता में कमजोर होने लगा और ब्रिटिश सत्ता को भारत में अधिक नियंत्रित करने का मौका मिला।
(5) बसीन की संधि ने 31 दिसंबर, 1802 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजी राव द्वितीय के बीच हस्ताक्षर की गई थी, जो पुने की लड़ाई के बाद हुई थी। इस संधि ने मराठा साम्राज्य के संकट का कारण बना दिया और आगे बढ़कर 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी को पश्चिमी भारत में साम्राज्य के क्षेत्रों को हासिल करने का मौका दिया।
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