विकेंद्रीकरण का अर्थ तथा गुण एवं दोष - Decentralisation

विकेंद्रीकरण

विकेंद्रीकरण का अर्थ ; विकेंद्रीकरण शासन व्यवस्था के अंतर्गत सत्ता को क्षेत्र एवं स्थानीय संस्थाओं के बीच विभाजित कर दिया जाता है। इस शासन व्यवस्था में कार्य का विभाजन इस प्रकार से किया जाता है कि केंद्र एवं प्रांत को यह निश्चित रूप से पता होता है कि इसका विशेष कौन सा है। फिफनर के अनुसार, “विकेंद्रीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें इस स्थान पर निर्णय ले लिया जाता है। जहां की कार्य हो रहा है।” इस प्रकार से स्पष्ट है कि विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था में स्थानीय अधिकारियों को प्रशासनिक निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होता है।

विकेंद्रीकरण शासन व्यवस्था के गुण

विकेंद्रीकरण शासन व्यवस्था में सत्ता के कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को वितरित करने के बाहर से दबी हुई केंद्रीय सत्ता को राहत मिलने के साथ इसमें क्षेत्रीय एजेंसियां तथा जनता से संपर्क रखने वाली इकाइयां मजबूत बनती हैं। विकेंद्रित शासन व्यवस्था के गुण कुछ इस प्रकार हैं—

(1) निर्णय में शीघ्रता

इशासन व्यवस्था में स्थानीय अधिकारियों को केंद्रीय सत्ता से पूर्व अनुमति की आवश्यकता ना होने के कारण हुए शीघ्र निर्णय लेते हैं। जिस कार्य में विलंब नहीं होता है। विकेंद्रीकरण में, निर्णय लेने की प्रक्रिया केंद्रीय स्तर पर समर्थित होती है, जिससे निर्णय शीघ्र हो सकता है। एक ही स्तर पर निर्णय लेने से विभिन्न क्षेत्रों के बीच समन्वय बढ़ता है और निर्णयों की घड़ी घड़ी प्रक्रिया को तेज़ करता है।

(2) प्रशासनिक लचीलापन

इस शासन व्यवस्था में स्थानीय कर्मचारी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं तथा उसे जिन लोगों के लिए कार्य करते हैं उनका उनसे निकटता का संबंध होता है। इसीलिए हुए उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी सुविधा के अनुसार तुरंत कर लेते हैं। जिसमें प्रशासन में लचीलापन बना रहता है।

(3) केंद्र पर अनावश्यक भार का अभाव 

इस शासन व्यवस्था में केंद्रीय सत्ता के कार्य काम हो जाते हैं जिससे केंद्र को राहत मिलती है। विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में विकास की आवश्यकताएं अलग हो सकती हैं। केंद्रीय सरकार की नीतियां या योजनाएं समस्त क्षेत्रों के लिए एकसमान नहीं हो सकतीं, जिससे सामाजिक और आर्थिक असमानता बढ़ सकती है।

(4) लोकप्रिय शासन

विकेंद्रित शासन व्यवस्था में शासन जनता की संपर्क में रहता है। लोकतंत्र उतना ही व्यापक एवं वास्तविक होता जितना व्यापक जनसंपर्क होगा। जनता का प्रशासन में सक्रिय सहयोग होगा। ऐसी व्यवस्था आम जनता को प्रशासन के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

(5) भ्रष्टाचार का अभाव

केंद्रीय अधिकारी अपनी मनमानी नहीं कर पाते हैं, जिससे जिससे प्रशासन के अनेक दोष दूर हो जाते हैं।

(6) स्थानीय समस्याओं के लिए उचित है

स्थानीय समस्याओं का उचित समाधान केंद्रीत शासन व्यवस्था में संभव नहीं हो पाता है। क्योंकि केंद्रीय अधिकारी स्थानीय समस्याओं से दूर रहते हैं इसीलिए उनका निर्णय सदैव सही नहीं होता परंतु वह केंद्रित शासन व्यवस्था में स्थानीय समस्याओं पर तुरंत सुनवाई की जाती है और उनका समाधान किया जाता है। इसीलिए ही हो शासन व्यवस्था स्थानीय समस्याओं के लिए उचित मानी मानी।

विकेंद्रीकरण शासन व्यवस्था के दोष

(1) प्रशासनिक कार्यों में समन्वय का अभाव 

प्रत्येक अवस्था में विकेंद्रीकरण प्रशासकीय कार्यों में समन्वयी एवं एकीकरण को कठिन बना देता है।

(2) अराजकता को बढ़ावा

अत्यधिक विकेंद्रीकरण अराजकता को जन्म दे सकता है। विकेंद्रीकरण के कारण, सत्ता और नियंत्रण केंद्रीय सरकार के पास होता है, जिससे विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा जा सकता। यह आराजकता और असमानता को बढ़ा सकता है, क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में विकास की आवश्यकताएं अनदेखी जा सकती हैं। यदि केंद्र और राज्यों के बीच संघर्ष होता है, तो यह अराजकता को बढ़ा सकता है और देश को समृद्धि से वंचित कर सकता है।

(3) अपव्यय

इस शासन व्यवस्था में केंद्रीय एवं स्थानीय दो प्रकार के अधिकारियों की व्यवस्था करनी होती है जिससे अधिकारियों की संख्या अधिक बढ़ जाती है। जिससे इस शासन व्यवस्था पर व्यय अधिक होता है।

(4) केंद्र के नियंत्रण की अपर्याप्त 

इस शासित व्यवस्था में केंद्रीय सत्ता का नियंत्रण अपर्याप्त रहता है जिसे स्थानीय कर्मचारियों में सोचा जारी प्रवृत्ति बल पड़ती है। और निर्माण करा रोपण आदि कतिपय कार्य एक केंद्रीकृत व्यवस्था द्वारा अधिक अच्छी तरह संपन्न किया जा सकते हैं।

(5) स्थानीय राजनीति का दुष्प्रभाव

विकेंद्रित व्यवस्था में सदैव यह खतरा रहता है कि स्थानीय राजनीतिक स्थानीय शासन पर हावी हो सकती है। स्थानीय राजनीति के प्रवेश से क्षेत्रीय सेवा में भ्रष्टाचार, पक्षपात आदि गंभीर रूप से घर कर जाते हैं।

(6) स्थानीय हित को प्राथमिकता

विकेंद्रीकरण शासन व्यवस्था में कर्मचारी राष्ट्रीय हित को भूल सकता है क्योंकि कर्मचारियों में स्थानीयता की भावना इतनी तीव्र हो जाती है कि वह राष्ट्रीय हित को भूलकर अपने स्थानीय हितों की पूर्ति में लग जाते हैं।

(7) प्रशासन में एकरूपता का अभाव

इस शासन व्यवस्था में स्थानीय अधिकारी भिन्न प्रकार के कार्य प्रणाली बनाते हैं। इसीलिए शासन में एकरूपता का अभाव रहता है।

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