भारत में स्वतंत्रता के पश्चात आरक्षण संबंधी व्यवस्थाएं - letest education

आरक्षण से संबंधित जिन महत्वपूर्ण बिंदुओं को या बिंदुओं पर चर्चा करेंगे वे कुछ इस प्रकार होंगे— 

1- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आरक्षण के संबंध में उठाए गए कदम।

2- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा आरक्षण व्यवस्था के संबंध में जो विभिन्न प्रावधान किए गए उनकी विवेचनाएं।

3- संविधान में आरक्षण व्यवस्था।

4- आंग्ल भारतीय समुदाय को आरक्षण संबंधी व्यवस्थाएं।

5- अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की आरक्षण संबंधी व्यवस्थाएं।


स्वतंत्रता के पश्चात आरक्षण व्यवस्था

भारतीय संविधान सामान्य तथा भ्रातृतृव के विचार पर आधारित है। आधार संविधान निर्माता ने यह विचार किया कि यदि समानता को वास्तविकता की स्थिति प्रदान करनी है तो समाज के अछूत, दलित तथा पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएं प्रदान करनी होगी। इन विशेष सुविधाओं के आधार पर ही समाज के यह दलित और पिछड़े वर्ग अन्य वर्गों के समान विकास की स्थिति को प्राप्त कर सकेंगे। आरक्षण के संबंध में निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए- 

संविधान में आरक्षण की व्यवस्था

सन 1950 ईस्वी में भारतीय संविधान को लागू किया गया तथा आरक्षण को संविधान में संवैधानिक आधार प्रदान किया गया। ‘मूलाधिकार’ से संबंधित संविधान के भाग 3 अनुच्छेद 16 में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है, “सब नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान आपसे प्राप्त होंगे और इस संबंध में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर सरकारी नौकरी अथवा पद प्राप्त तो प्रदान करने में भेदभाव नहीं किया जाएगा।” इस प्रकार से संविधान का यह अनुच्छेद भारत के समस्त नागरिकों को समान रूप से सरकारी नौकरियों में समान अवसर प्रदान करता है। परंतु इस स्थिति में, यद्यपि दोनों देशों के बीच कुछ दूरी होने के बावजूद, भारतीय सरकार ने अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थानों का आरक्षण करने का अधिकार बनाए रखा है। 

संविधान के अभ्यास 16 में 13 अनुच्छेदों (अनुच्छेद 330 से 342 तक) के द्वारा कुछ विशेष वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अस्थाई है और इसी संविधान के लागू होने के बाद 10 वर्ष तक अर्थात 1960 ई तक बनाए रखने की व्यवस्था की गई थी, परंतु बाद में संवैधानिक संशोधन के आधार पर इन विशेष व्यवस्थाओं की अवधि बढ़ा दी गई। 8वें,  23वें  और 45वें संवैधानिक संशोधन में से प्रत्येक के द्वारा आरक्षण की अवधि 10 वर्ष से बधाई गई तथा बाद में 62वें संविधान संशोधन (1990 ई०) की आधार पर 25 जनवरी, 2000 तक के लिए बढ़ा दी गई।  79वें संविधान संशोधन अक्टूबर (1999 ई०) के अनुसार अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए सांसद तथा राज्य विधान मंडलों के आरक्षक रखने की व्यवस्था को 26 जनवरी, 2010 ई० तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की आरक्षण संबंधी व्यवस्थाएं

(1) प्रतिनिधित्व के संबंध में विशेष व्यवस्था

संविधान में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था की गई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन जातियों की उम्मीदवार सुरक्षित स्थानों के अतिरिक्त अन्य निर्वाचन क्षेत्र से भी चुनाव लड़ सकते हैं। लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए 79 तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 40 स्थान सुरक्षित किए गए हैं। राज्य के विधान मंडलों में भी अनुसूचित जाति तथा जनजाति के उम्मीदवारों के लिए स्थान सुरक्षित किए जाने की व्यवस्था है।

(2) विशेष पदाधिकारी 

इन जातियों के हितों की सुरक्षा के लिए तथा उनसे संबंधित विषयों की जांच करने के लिए संविधान अनुच्छेद 338 में एक विशेष पदाधिकारी की व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था को और भी मजबूत बनाने पर विचार विमर्श किया जा रहा है।

(3) सेवाओं तथा शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु विशेष आरक्षण

 संविधान के अनुच्छेद 355 के अंतर्गत अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उम्मीदवारों के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों की प्रशासनिक सेवाओं में प्रशासनिक कुशलता के अनुरूप स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है। संविधान आरक्षित स्थानों का प्रतिशत एवं समय सीमा निर्धारित नहीं करता है। इन्हीं प्रशासन द्वारा नियमों के अंतर्गत निर्धारित करने की व्यवस्था की गई है। इन जातियों के लिए शासकीय सेवाओं में प्रतिनिधित्व देने के लिए जो रियासतें प्रदान की गई है, उनमें से प्रमुख यह हैं — आयु सीमा में छूट, योग्यता स्रत में छूट, कार्य कुशलता का निम्नतम स्तर पूरा करने पर भी उनका चयन, नीचे की श्रेणियां में उनकी नियुक्ति तथा पदोन्नति का विशेष प्रबंध। 1950 ई० में गृह मंत्रालय द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार इन जातियों के लिए 12.5% से 16% तक स्थान आरक्षित किया जाने की व्यवस्था थी। परंतु बाद में यह व्यवस्था की गई कि अनुसूचित जातियों के लिए 15% तथा जनजातियों के लिए 7.5% स्थान आरक्षित किए जाएंगे।

(4) कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना 

संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार अनुसूचित जातियों के विकास के उद्देश्य से बनाई गई योजनाओं के लिए राज्य सरकारों को विशेष अनुदान देने की व्यवस्था है। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की विद्यार्थियों को छात्रवृतियां दिए जाने, निशुल्क शिक्षा देने तथा प्राविधिक एवं व्यवसायिक शिक्षा संस्थानों में स्थान सुरक्षित रखना के प्रावधान किए गए हैं।

(5) जांच आयोग की नियुक्ति 

 संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति दो आयोगों की नियुक्ति करेगा। प्रथम अनुसूचित क्षेत्र में प्रशासन व अनुसूचित जातियों के कल्याण संबंधी मामलों की जांच करेगा तथा दूसरा पिछली जातियों की शैक्षणिक तथा सामाजिक स्थिति की जांच करेगा। इसके अतिरिक्त हुए आयोग उनकी उन्नति के उपायों की ओर संघ तथा राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित करेंगे। संविधान के द्वारा कीमती सरकार को यह अधिकार है कि वह प्रथम आयोग की सिफारिश पर अमल करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दें। दूसरी आयोग की सिफारिश को अपनाने के लिए केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों को परामर्शित दो दे सकती है, परंतु निर्देश नहीं। उनका पालन करना राज्य सरकारों की इच्छा तथा साधनों पर निर्भर करता है। अयोगी के द्वारा तैयार किए गए प्रतिवेदन संसद के दोनों सदनों के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं।

आंग्ल भारती समुदाय को आरक्षण संबंधित व्यवस्था

आंगल भारतीय समुदाय के लिए संविधान में दो प्रकार की आरक्षण संबंधी विशेष व्यवस्थाएं की गई है। प्रथम, केंद्रीय सांसद तथा राज्य विधान मंडलों में स्थान का आरक्षण तथा द्वितीय, सरकारी सेवाओं में विशेष सुविधाएं। इस वर्ग के लिए सरकारी सेवाओं में विशेष सुविधाएं अब समाप्त हो गई हैं, लेकिन केंद्रीय सांसद तथा राज्य विधान मंडलों में स्थान के आरक्षण की स्थिति इस वर्ग को अभी तक प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 231 के अंतर्गत राष्ट्रीय को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि लोकसभा में राष्ट्रपति के विचार में आंग्ल भारतीय वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त न हुए हों तो वह लोकसभा में अधिक से अधिक दो आंग्ल भारतीयों को नियुक्त कर सकता है। अनुच्छेद 336 के अंतर्गत राज्यों के राज्यपालों को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि इनके विचार में विधानसभाओं में आंग्ल भारतीय समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हुआ है तो वे एक प्रतिनिधि को मनोनीत कर सकते हैं।

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